RANCHI: बस ओनर्स को बसों के फिटनेस सर्टिफिकेट लेने में पसीने छूट रहे हैं। सर्टिफिकेट नहीं होने की वजह से दर्जनों बसें खड़ी हो गई हैं वहीं लगभग सात सौ बसें बिना सर्टिफिकेट के ही चलने पर मजबूर हैं। दरअसल परिवहन विभाग द्वारा नए नियम से बसों के फिटनेस सर्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं। जबकि अधिकतर बस ओनर पूर्व के नियमानुसार फिटनेस सर्टिफिकेट ले रखे हैं। विभाग अब उन बसों के सर्टिफिकेट को फेल बता रहा है। बस ओनर सर्टिफिकेट के फेल और पास के बीच में फंस कर रह गए हैं। डिपार्टमेंट से मिले आंकड़ों के अनुसार, लगभग 700 बसों के सर्टिफिकेट फेल हो चुके है.बस ओनर बार-बार डिपार्टमेंट का चक्कर तो लगा रहे हैं, लेकिन सर्टिफिकेट बनवाने में सफलता नहीं मिल रही।

नहीं मिल रहा फिटनेस सर्टिफिकेट

बस ओनर ने बताया कि कई बसें ऐसी हैं जिनका बॉडी कोड नहीं है। इस कारण सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है। 2018 से पहले से बॉडी कोड नहीं दिया जाता था। अब इसका खामियाजा बस ओनर्सं को उठाना पड़ रहा है। सर्टिफिकेट नहीं मिलने के कारण कई बसें तो खड़ी कर दी गई हैं। कुछ रोड पर चल रही हैं, उसमें भी हर दिन कुछ न कुछ परेशानी होती रहती है। बॉडी कोड नहीं होने से परमिट भी नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में बस को रोड पर लेकर निकलने पर फाइन का डर बना रहता है।

बॉडी कोड देने का लाइसेंस नहीं

राजधानी में एक भी बॉडी बिल्डर के पास बॉडी कोड देने का लाइसेंस नहीं है। बल्कि पूरे राज्य में सिर्फ जमशेदपुर में ही एक बॉडी बिल्डर है जिसके पास यह लाइसेंस है। वॉल्वो और स्लीपर बसें जो यहां बनती है उसे एमवीआई फिटनेस प्रमाण पत्र देते हैं। राजधानी से हर दिन ग्यारह सौ से भी अधिक बसें खुलती हैं। सिटी में दो बस स्टैंड आईटीआई और कांटाटोली स्थित बिरसा मुंडा बस स्टैंड हैं। आईटीआई से हर दिन चार सौ बसें खुलती हैं, जबकि कांटाटोली से सात सौ से भी अधिक बसें रोजाना खुलती हैं।

बस मालिकों में रोष

बस ओनर राजीव मेहता ने बताया कि अचानक टैक्स में बढ़ोतरी कर सभी बस मालिकों पर आर्थिक बोझ डाल दिया गया है। इसके अलावा नियमों को उलट फेर कर मानसिक रूप से प्रताडि़त करने का प्रयास है। बॉडी कोड के नाम पर बॉडी बिल्डर भी मनमाना पैसे की डिमांड करते हैं। हर तरफ से सिर्फ बस मालिकों को ही परेशान किया जा रहा है। बसें खड़ी-खड़ी सड़ रही हैं, वहीं कई व्यवसायी बिजनेस बंद करने के बारे में सोच रहे हैं।