रांची(ब्यूरो)। कहा गया है कि हेल्थ इज वेल्थ। लेकिन, वर्तमान हालात जो हैं उसमें खुद का हेल्थ मेंटेन रखना बहुत बड़ा चैलेंज हो गया है। दिनोंदिन स्वास्थ्य की देखभाल की लागत आसमान छूती जा रही है। नतीजन मिडिल क्लास फैमिली की पॉकेट पर असर पड़ रहा है। ऐसे में जरूरतमंद और आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए गवर्नमेंट की ओर से रियायती दर पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। लेकिन यहां भी कुछ डॉक्टर्स ने अपना और निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के चक्कर में मरीज और उनके परिजनों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा दिया है, जिसका नतीजा है कि आम लोगों के लिए जरूरी चिकित्सा उपचार का खर्च उठाना भी कठिन हो गया है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल रिम्स को आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के लिए ही संचालित किया जाता है। लेकिन यहां भी कुछ डॉक्टर्स महंगी और ब्रांडेड दवाएं लिखकर मरीज और उनके परिजनों की कमर तोड़ रहे हैं। रिम्स निदेशक के आदेश के बाद भी डॉक्टर्स महंगी दवाएं प्रेसक्राइब करना बंद नहीं कर रहे हैं।
500 के बजाय 2000 का बिल
स्वास्थ्य देखभाल को अधिक किफायती बनाने का एक तरीका जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल है, जो ब्रांड-नाम वाली दवाओं का सस्ता विकल्प हैं। रिम्स के मेडिसीन स्टोर में भी जेनरिक दवाएं अवेलेबल हैं। मेडिसीन स्टोर में जो दवा उपलब्ध हैं डॉक्टर उसे न लिखकर महंगी और दूसरी ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं, जिसका कांबिनेशन भी रिम्स के मेडिकल स्टोर पर नहीं मिल पाता है।
प्राइवेट क्लिनिक की मजबूरी
मजबूरी में परिजन प्राइवेट क्लिनिक की ओर बढ़ते है जहां 500 रुपए की दवा के लिए 2000 या इससे भी अधिक का बिल बन जाता है। रामगढ़ से अपनी मां का इलाज कराने आए सुदर्शन महतो ने बताया कि पांच दिन में करीब 7000 रुपए खर्च हो चुके हैं। अब भी पूरी तरह से मां ठीक नहीं हुई हैं। डॉक्टर महंगी दवा लिखते हैं, जो रिम्स के मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलती है। हालांकि, ऐसी भी शिकायत आई है कि रिम्स में सस्ती दवा उपलब्ध नहीं होने की वजह से डॉक्टर को ब्रांडेड दवाएं लिखनी पड़ रही हैं।
सर्जरी आईटम्स भी बाहर से
रिम्स में हर दिन करीब 2000 भर्ती मरीजों का इलाज किया जाता है। इसमें सिर्फ दस प्रतिशत मरीज ही जेनरिक दवा लेते हैं। 90 फीसदी मरीज महंगी दवा खरीदने को विवश हैं। रिम्स में प्रधामंत्री जन औषधि की दुकानों पर मेडिसीन में 70 से 80 प्रतिशत की छूट दी जाती है। वहीं अमृत फार्मेसी में जेनरिक पर 80 फीसदी तक और ब्रांडेड दवाओं पर भी 40 फीसदी की छूट जाती है। लेकिन डॉक्टर मरीज की पर्ची पर वैसी दवाएं लिखते हैं जो इन दोनों दुकानों में उपलब्ध ही नहीं होती हैं। सिर्फ मेडिसीन ही नहीं, बल्कि सर्जरी के सामान भी मरीजों को बाहर की दुकानों से लाने पड़ रहे हैं। जिन मरीजों को इंप्लांट की जरूरत होती है, वह भी डॉक्टर बाहर के दुकानों से मंगवाते हैं। इसके लिए मरीज के परिजनों को दोगुना रुपए खर्च करना पड़ता है।

क्या कहते हैं डॉक्टर्स
जेनरिक दवा असर नहीं करती है, इसलिए मरीज की जरूरत को देखते हुए दवा प्रेस्क्राइब की जाती है। अधिकतर मरीज को जेनरिक दवा ही दी जाती है।
-डॉ डीके मिश्रा

ऐसा नहीं है कि जेनरिक दवा नहीं प्रेस्क्राइब की जाती है। रिम्स में ज्यादातर सस्ती दवाएं ही दी जाती हैं। लेकिन कुछ मामलों में मजबूरन थोड़ी अलग मेडिसीन देनी पड़ती है।
- डॉ बी कुमार

रिम्स के डॉक्टरों को जनऔषधि और अमृत फार्मेसी में उपलब्ध दवा ही लिखनी हैं। यदि आदेश का पालन नहीं हो रहा है तो इसकी जांच करवाई जाएगी।
-डॉ राजीव कुमार गुप्ता, डायरेक्टर, रिम्स