रांची (ब्यूरो) । हिन्दी की भावना प्रेम की भावना है और प्रेम की भावना ही पूरे विश्व को बचा सकती है। बुधवार को ये बातें ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के कुलपति डॉ चक्रधर त्रिपाठी ने कहीं। वे अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर हिन्दी की दशा और दिशा विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हिन्दी में भक्ति काव्य के माध्यम से प्रेम की भावना का दिन-प्रतिदिन प्रचार हो रहा है। कार्यक्रम में संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ जंगबहादुपर पांडेय ने कहा कि हिन्दी भारत मां की बिन्दी है और यह भारत के जन-जन की भाषा है। हिन्दी आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी विजय पताका लहरा रही है।

उपासना की संस्कृति

वहीं, मंच संचालन कर रहे डॉ कमल कुमार बोस ने अपने वक्तव्य में कहा कि जो व्यक्त करता है वही व्यक्ति है। उन्होंने कहा कि हिन्दी शांति की उपासना करनेवाली संस्कृति है। हिन्दी जीवित रहेगी तो यह संस्कृति भी जीवित रहेगी। संगोष्ठी में प्रेसिडेंसी कॉलेज कोलकाता की डीन डॉ तनुजा मजूमदार ने कहा कि भाषा मनुष्यों को जोड़ती है। भाषा में वह शक्ति है जो विश्व को परिवार बना सकती है। कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय स्तर की कवयित्री डॉ पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि अंग्रेजी का सबसे अधिक प्रचार भारतीयों ने किया। हिन्दी को बचाने का काम हिन्दी के प्रोफेसर कम और किसान-मजदूर ज्यादा करते हैं।

मनुष्यता में विश्वास

उन्होंने कहा कि हिन्दी हमारी मां है और इसे विश्व की मां बनाने की जरूरत है। कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ अनिल सुलभ ने कहा कि भारत मनुष्यता में विश्वास करता है और हिन्दी भाषा जोडऩे में विश्वास करती है। संगोष्ठी में डॉ सुधेन्दु मंडल, डॉ संजीत कुमार दास और डॉ एनसी पंडा ने भी अपनी बातें रखीं। कार्यक्रम में मैं भी सीता बन जाती पुस्तक का विमोचन किया गया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बड़ी संख्या में हिन्दी के विद्वानों ने अपनी बात रखीं। इस दौरान एक काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें कवियों ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ रानी सिंह ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन मयूरी मिश्रा ने किया।