RANCHI: रांची को स्मार्ट बनाया जा रहा है। डेवलपमेंट के नाम पर काम भी चल रहे हैं। लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हालत खराब है। राजधानी होने के बावजूद यहां पर ढंग की व्यवस्था नहीं है। यही वजह है कि आज भी खस्ताहाल गाडि़यों में पैसेंजर ढोए जा रहे हैं, जो जाने-अनजाने हादसों को न्योता दे रहे हैं। जबकि पिछले महीने ही रोड सेफ्टी मंथ में लोगों को अवेयर किया गया। साथ ही बताया गया कि कैसे वे हादसों को कम कर सकते हैं। इसके बाद भी न तो विभाग की नींद खुली और न ही ओनर मानने को तैयार हैं। इसका खुलासा दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रियलिटी चेक में हुआ।

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ट्रेकर स्टैंड

इस्ट जेल रोड स्थित ट्रेकर स्टैंड से हर दिन रामगढ़ के लिए गाडि़यां खुलती हैं। इसके अलावा कई अन्य जगहों के लिए भी छोटे वाहन चलते हैं, जहां पर गाडि़यां ऊपर से तो चकाचक दिखती हैं। लेकिन उसके पुर्जे खराब हो चुके हैं। इसके बाद भी इन गाडि़यों में कैपासिटी से अधिक पैसेंजर बिठाए जा रहे हैं। वहीं मालवाहक गाडि़यों की तरह ओवरलोड सामान भी लाद दिया जा रहा है, जिससे समझा जा सकता है कि बैलेंस बिगड़ा तो क्या स्थिति होगी।

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सिरमटोली चौक

शहर में डीजल ऑटो चल रहे हैं, जिसमें कुछ को छोड़कर बाकी सभी आउटडेटेड हो चुके हैं। वहीं कई ऑटो तो जर्जर हालत में हैं, जो रोड पर चलने लायक नहीं हैं। इसके बावजूद चालक किसी तरह जुगाड़ से आटो में सवारी ढो रहे हैं। इससे साफ है कि उसे केवल कमाई से मतलब है। पैसेंजर्स की सेफ्टी से कोई मतलब नहीं है। इतना ही नहीं, पैसेंजर्स को भी ठूंस-ठूंस कर बिठाते हैं ताकि एक ट्रिप में उनकी ज्यादा कमाई हो सके। वहीं, पैसेंजर्स के पास भी कोई चारा नहीं है चूंकि इस आटो में लंबी दूरी जाने पर उन्हें किराया कम लगता है।

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करमटोली चौक

इस रूट पर छोटे-बड़े सभी आटो चलते हैं। जल्दी-जल्दी सवारी बिठाने के लिए इनमें होड़ लगी रहती है। लेकिन सेफ्टी को लेकर डीजल आटो में कोई इंतजाम नहीं होता। वहीं इसमें बैठने के बाद तो बाहर से कोई आवाज भी सुनाई नहीं देती, जिससे कि अंदर बैठे पैसेंजर को फोन पर बात करने में भी दिक्कत होती है। वहीं पूरे सफर में पैसेंजर्स को आराम से बैठने का अहसास भी नहीं होता। चूंकि गाड़ी को चालक किसी तरह जुगाड़ से चला रहे हैं।

क्या कहते हैं पैसेंजर्स

सिटी बसें तो चलती हैं लेकिन इसका टाइम फिक्स नहीं है। ऐसे में आटो में जाना मजबूरी है। उसमें भी डीजल आटो इसलिए चूंकि इसका किराया अन्य आटो से कम है। लेकिन खटारा गाडि़यों को हटाने की जरूरत है।

अंकित जायसवाल

जिस तरह से गाडि़यों में पैसेंजर और सामान भरे जाते हैं, उससे हादसा होना तय है। गाडि़यों की भी एक लिमिट होती है। नई गाड़ी हो तो बात समझ में भी आती है। अब पुरानी गाडि़यों में इतना लोड कर देते हैं तो हादसा हो सकता है।

जो गाड़ी पहले आती है, उसमें बैठ जाते हैं। अब हर दिन यह देखेंगे कि कौन सी गाड़ी अच्छी और कौन खराब तो इसमें समय निकल जाएगा। लेकिन पैसेंजर्स की सेफ्टी को देखते हुए इसे हटाने की जरूरत है।

अजय कुमार