रांची (ब्यूरो) । राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल रिम्स में सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के भी मरीज इलाज कराने आते हैैं। इस हॉस्पिटल में डॉक्टर और सुरक्षाकर्मियों से ज्यादा ब्रोकर अलर्ट रहते हैं। तभी तो वार्ड में पेशेंट के एडमिट होते ही ब्रोकर एक्टिव हो जाते हैं। दरअसल रिम्स में दवा, बेड से लेकर खून की भी दलाली हो रही है। यह बात न तो प्रशासन से छिपी है और न ही रिम्स प्रबंधन से। फिर भी दलालों से बचाव के लिए रिम्स में किए गए उपाय हास्यास्पद लगते हैं। दलालों से बचाव के नाम पर रिम्स प्रबंधन ने सिर्फ दीवारों को रंगवाने के अलावा और दूसरा काम नहीं किया है। हॉस्पिटल की दीवारों पर कई जगह दलालों से सावधान के संदेश जरूर लिखवा दिए गए हैं, लेकिन एक भी दलाल को पकड़ कर रिम्स प्रबंधन उसे सजा नहीं दिला पाया है। और न ही अंजान और संदिग्ध लोगों पर किसी तरह की नजर रखी जाती है, जिसका फायदा दलाल उठाते हैं।

गुमराह कर रहे दलाल

रिम्स में एक बार फिर दलाल एक्टिव हो चुके हैैं और इनकी सक्रियता इतनी बढ़ गई है कि रिम्स में होने वाली जांच के लिए भी मरीजों को गुमराह कर निजी जांच केंद्र ले जाया जा रहा है। एक बार फिर से खून की दलाली का मामला सामने आया है। ताजा मामला रिम्स के सर्जरी विभाग के डॉ आरजी बाखला के यूनिट में भर्ती साहिबगंज जिले के एक मरीज का है। मरीज के परिजन भी दलाल के झांसे में आकर करीब चार हजार रुपए गवां चुके हैं। दलाल ने मरीज को परिजन को 4200 रुपए में दो यूनिट ब्लड दिलाने का वादा किया था। अपने मरीज को बचाने की चाह में मरीज के परिजनों ने दलाल को पैसा दे दिया, लेकिन न तो उन्हें ब्लड मिला और न ही पैसा वापस। हालांकि इस मामले में बरियातू थाना ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया है। इस तरह के ठगी के मामले रिम्स में आए दिन आते ही रहते हैं।

मरीज के परिजनों से ठगी

रिम्स मेें घूमने वाले दलाल पूरे दिन अपने शिकार की तलाश में घूमते रहते हैं। रिम्स के जांच घर से लेकर ओपीडी और ब्लड बैंक के आसपास सेंधमारी करते रहते हैं। किसे ब्लड की आवश्यकता है, किसे दवा नहीं मिल रही है। किस मरीज को बेड को चाहिए। ये लोग इस बारे में जानकारी इकट्ठा करते रहते हंै। यहां तक कि शव दिलाने के नाम पर भी ब्रोकर लोगों से पैसे की ठगी कर रहे हैैं। इसके अलावा रिम्स में जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के नाम पर भी ठगी की शिकायतें आ रही हैं। मरीज और उसके परिजनों की आवश्यकता को जानकर दलाल उसे बहलाना शुरू कर देते हैं। कम समय में आसानी से उनकी जरूरत पूरी करने का भरोसा दिलाते हैं और मरीज के परिजन से पैसा लेकर फरार हो हो जाते हैं। रिम्स प्रबंधन की ओर से ऐसे लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जबकि ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनकी बड़ी-बड़ी तस्वीर रिम्स परिसर मेें लगाने की जरूरत है, ताकि लोग ऐसे लोगों के चंगुल में आने से बच सकें।

आर्थिक रूप से कमजोर मरीज

रिम्स एक सरकारी अस्पताल है। यहां आर्थिक रूप से कमजोर मरीज अपना इलाज कराने आते हैैं, लेकिन यहां के सुस्त रवैये के कारण मरीज दलालों के चक्कर में पड़ जाते हैं। वैसे तो रिम्स में सारी सुविधाएं सस्ती दर पर उपलब्ध है। लेकिन इसका संचालन ईमानदारी से नहीं किया जाता है। अक्सर रिम्स में खून की कमी बनी रहती है। कोई न कोई मशीन भी खराब रहती है, जिसका फायदा दलाल उठाते हैं। इनकी सेटिंग प्राइवेट टेस्ट सेंटर से भी है। मरीज लाने पर उन्हें अलग से कमीशन दिया जाता है। इन सब पर रोकथाम करने और दलालों पर नजर रखने के लिए रिम्स में होमगार्ड के जवानों को तैनात किया गया है, लेकिन इनकी नियुक्ति अभी नई-नई हुई है, जिस वजह से ये लोग भी रिम्स में टाइट सिक्योरिटी नहीं कर पा रहे हैैं।