- नयी बस्तियां बसी, काटे गये अनगिनत पेड़

- दस वर्षो से लगातार 40 के पार जा रहा है पारा

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RANCHI (12 July) : झारखंड गठन से पहले रांची को गर्मियों की 'राजधानी' के रूप में मान्यता मिली हुई थी। एकीकृत बिहार के काल में यहां की आबो-हवा इतनी अच्छी थी कि गर्मी में सूबे के राज्यपाल रांची आकर रहते थे। यही वजह थी कि सिटी में काफी पहले ही राजभवन बना दिया गया था। दूसरी ओर, झारखंड बनने के बाद रांची को जैसे ही वास्तविक राजधानी का दर्जा मिला, वैसे ही यहां लोगों की 'बाढ़' आ गयी। नतीजा यह हुआ कि शहर के ग्रीन जोन कंक्रीट के जंगल में तब्दील होने लगे। आबादी के बोझ ने पर्यावरण पर ऐसा असर डाला कि पहले जहां लोग इसे हिल स्टेशन कहते थे, वहीं इसे 'हेल स्टेशन' कहने लगे।

जंगल कटते गये, तपिश्ा बढ़ती गयी

सिटी के आसपास के इलाकों से जंगल लगातार कम होते जा रहे हैं। हर साल करीब एक लाख नये लोगों के रहने के लिए मकानों का भी निर्माण हो रहा है। इसलिए हरियाली भी घटती जा रही है। सिटी के पर्यावरण पर नजर रखने वाले पुराने लोग बताते हैं कि अस्सी के दशक में मौसम इतना अच्छा हुआ करता था कि मेसरा जैसे इलाकों में ठंड के मौसम में छतों पर रखे पानी बर्फ में तब्दील हो जाती थी। तब एसी का जमाना भी नहीं था और उसकी जरूरत भी नहीं पड़ती थी। सिटी के इतिहासकार हुसैन कच्छी बताते हैं कि पिछले 18 वर्षो में रांची में आठ नये मोहल्ले बसे हैं। इनमें करीब 5 लाख नये लोग बस गये हैं। उन स्थानों पर पहले सिर्फ हरियाली दिखती थी। आज चारों ओर कंक्रीट के जंगल नजर आते हैं।

बढ़ गया पॉल्यूशन का लेवल

सिटी में एयर पॉल्यूशन का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ा है। बढ़ती आबादी का बोझ किस तरह सिटी की आबो-हवा पर असर डाल रहा है, यह समझने के लिए अल्ट्रा वॉयलेट रे के स्तर का आंकड़ा ही काफी है। गर्मियों में यूवी रेज दोपहर 1.30 बजे 10 के स्तर पर पहुंच जाता है। इसका छह से अधिक होना ही खतरनाक होता है। पिछले दस वर्षो के तापमान का रिकॉर्ड भी बताता है कि सिटी तेजी से गर्म होती जा रही है

कोट

बढ़ती आबादी ने पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। रांची में पिछले सालों में हर क्षेत्र में विकास हुआ है, पर यहां विकास वर्टिकली हुआ है, होरिजेंटली नहीं। पर्यावरण पर दबाव बढ़ने से रांची के मौसम में बदलाव आया है। आबादी दिनोंदिन बढ़ रही है, पर पर्यावरणीय संसाधन सिकुड़ते जा रहे हैं।

- नितीश प्रियदर्शी, पर्यावरण विश्लेषक

बाक्स

पिछले दस वर्षो में इस तरह चढ़ा पारा

2009 - 42.2

2010 - 42.4

2011 - 37.7

2012 - 40.2

2013 - 40.2

2014 - 39.2

2015 - 39.0

2016 - 42.4

2017 - 40.4

2018 - 42.3