-निकाय चुनाव में जीत के लिए प्रत्याशी ले रहे सोशल मीडिया का सहारा

-हाईटेक हुआ नगर निगम चुनाव का प्रचार, पीआर एजेंसियां ले रहीं ठेका

RANCHI(04 April): निकाय चुनावों में प्रचार प्रसार के लिए तमाम प्रपंचों के भ्रमजाल में प्रत्याशी उलझे हुए हैं। वे अपने एजेंडों को समझाने के लिए पीआर एजेंसी की तलाश में हैं। जमीनी सरोकार के इतर सोशल सरोकार का बोलबाला है। डोर टू डोर कनेक्ट होने का प्रयास तो चल ही रहा है, लेकिन मोबाईल पर थिरकती ऊंगलियां भी सोशल मीडिया की बैशाखियों के सहारे मतदाताओं के मिजाज को टटोल रही हैं। जिन्हें एंड्रायड से वास्ता था लेकिन सोशल मीडिया से सरोकार नहीं था, वो भी आज फेसबुक और ट्विटर पर अपने शुभचिंतकों की तलाश में हैं। निकाय चुनाव में सोशल मीडिया विपक्ष पर हमला करने का हथियार है, ज्यादा से ज्यादा लाइक्स बढ़ाने के लिए एटीएम स्वैप करें और फॉलोवर्स बढ़ाएं।

मेयर-डिप्टी मेयर प्रत्याशियों पर एक्सपर्ट की नजर

राजधानी में कई ऐसे लोग हैं जो पीआर यानी पब्लिक रिलेशन के काम से जुड़े हुए हैं। इनकी नजर थैलीशाह प्रत्याशियों पर ज्यादा है। साथ ही ऐसे प्रत्याशियों पर भी है जिन्हें सोशल मीडिया की ताकत का एहसास तो हैं लेकिन जानकारी नहीं है। पीआर का काम करने वाले लोग तरह-तरह के आइडिया मेयर और डिप्टी मेयर के उम्मीदवारों को दे रहे हैं। यू टयूब, फेसबुक, ट्विटर सहित वाट्सअप के जरिए कैसे आम जनता तक पहुंचा जाए इसके रास्ते बता रहे हैं। इतना ही नहीं, प्रत्याशियों के लिए चुनाव का एजेंडा, स्टीकर और बैनर-पोस्टर डिजाईन के लिए पीआर विशेषज्ञों ने टीम भी बना रखी है।

फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए भुगतान

प्रत्याशी सोशल मीडिया पर फॉलोवर्स बढ़ाने के एवज में भुगतान तो कर ही रहे हैं, साथ ही दोस्तों को टैग कर उनसे अन्य लोगों को टैग करने के लिए अपील भी की जा रही है। मोहल्ला स्तर पर वाटसअप गु्रप बनाकर प्रत्याशी के एजेंडों का प्रचार किया जा रहा है, उनकी सोच का परचम लहराया जा रहा है।

बढ़ा सोशल मीडिया से प्रचार

वर्षो से सोशल मीडिया एवं प्रचार प्रसार का काम करने वाले फिरोज आलम का कहना है कि पिछले चार सालों में सोशल मीडिया प्रचार प्रसार का एक मजबूत माध्यम बन गया है। विचारों का आदान प्रदान तो सोशल मीडिया के माध्यम से होता ही है साथ ही आपके विचारों का आकलन भी लोग कर लेते हैं। शायद यही वजह है कि सोशल मीडिया के कारोबार में बड़े सेक्टर आ रहे हैं।

एफबी पर फॉलोअर्स, पड़ोसी से बात नहीं (बॉक्स)

निकाय चुनावों में कुछ ऐसे भी प्रत्याशी हैं जिनके फेसबुक में पांच हजार फ्रेंड्स हैं, लेकिन पड़ोसियों से वास्ता नहीं है। जिनसे मिले नहीं वो सोशल मीडिया में अजीज होते हैं और जिनसे रोज मिलते हैं वो अजनबी हो सकते हैं। यही है वर्चुअल दुनिया की हकीकत। लेकिन निगम चुनाव में खड़े प्रत्याशी अब पड़ोस में रहने वाले चाचा-चाची, भैया -भाभी से भी कनेक्ट होने की कोशिश में हैं।