रांची (ब्यूरो)। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने खुद माना है कि झारखंड में मौजूद 80 उद्योग सबसे अधिक प्रदूषित हैं। इसमें कॉस्टिक सोडा की एक, 18 थर्मल पावर प्लांट, एक डिस्टिलरी, तीन आयरन स्टील प्लांट, 48 स्पंज आयरन इंडस्ट्रीज, छह सीमेंट फैक्ट्री और दो कॉपर इंडस्ट्रीज शामिल हैं। बावजूद इसके इन इंडस्ट्रीज को कन्सेंट टू ऑपरेट दिया गया है।

जिंदगी के पांच साल कम

झारखंड में बढ़ते प्रदूषण ने यहां के लोगों की उम्र औसतन साढ़े चार साल तक कम कर दी है। सबसे ज्यादा गोड्डा में लोगों की उम्र पांच साल तक घटी है। वहीं रांची सहित 17 जिलों में लोगों की करीब चार साल उम्र कम हुई है। लोग ज्यादा बीमार हो रहे हैं। यह दावा शिकागो यूनिवर्सिटी की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो (ईपीआईसी) ने प्रदूषण के असर के विश्लेषण के जरिए किया है।

तैयारियों के आधार पर होगी रेटिंग

रांची सहित राज्यभर में जो इंडस्ट्रीज हैं, उनके लिए एक अप्रैल से स्टार रेटिंग शुरू की जाएगी। झारखंड पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा इंडस्ट्रीज को स्टार रेटिंग देने के लिए कई तरह की प्रक्रिया तय की गई है, इस एरिया में आने वाली इंडस्ट्री को 1 से लेकर 5 स्टार की रेटिंग दी जाएगी। इसमें प्रदूषण नियंत्रण के उपाय संचालन अनुमति और पर्यावरण क्लीयरेंस के किस तरह की व्यवस्था इंडस्ट्री ने कर रखी है, उस आधार पर उनको रेटिंग दी जाएगी। स्टार रेटिंग के आधार पर इंडस्ट्रीज को संचालन अनुमति, पर्यावरण क्लीयरेंस देने में प्राथमिकता देकर प्रोत्साहित भी किया जाएगा।

17 तरह की इंडस्ट्रीज में होगा लागू

राज्य की औद्योगिक इकाइयों के लिए स्टार रेटिंग कार्यक्रम एक अप्रैल से शुरू होगा। झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी)के एक पदाधिकारी ने बताया कि राज्य की 17 श्रेणी की इकाइयों के लिए स्टार रेटिंग कार्यक्रम लागू किया जाएगा। पहले पीएम 2.5 के मॉनिटर के आधार पर स्टार रेटिंग दी जाएगी। चरणबद्ध तरीके से प्रदूषण के दूसरे मानकों को शामिल किया जाएगा। हर एक महीने के बाद प्रदूषण के दूसरे मानकों को स्टार रेटिंग के मानदंड में शामिल किया जाएगा। अगले चरण में पीएम 10 को शामिल किया जाएगा।

स्टार रेटिंग प्रोग्राम के फायदे

स्टार रेटिंग के संचालन के बाद उत्सर्जन से जुड़े आंकड़ों को आसानी से प्राप्त किया जा सकेगा और आंकड़ों की सटीकता और विश्वसनीयता की भी जांच की जा सकेगी, जिससे इस प्रक्रिया में व्याप्त कमियों को आसानी से दूर किया जा सकेगा। इस प्रक्रिया के माध्यम से लोगों को औद्योगिक प्रदूषण के संबध में बेहतर जानकारी उपलब्ध कराई जा सकेगी। जन-जागरूकता और उत्सर्जन के विश्वसनीय आंकड़ों को उपलब्ध कराकर इंडस्ट्रीज पर मानकों के अनुपालन के संदर्भ में दबाव बनाया जा सकेगा।