रांची : (ब्यूरो)। नगर निगम का हॉस्पिटल बीते कई सालों से क्वारंटीन है। न यहां इलाज होता है न कोई हेल्थ एक्टिविटी। इस हॉस्पिटल की हालत देखकर लगता है कि इसे खुद बूस्टर डोज देने की दरकार है। नगर निगम द्वारा आम लोगों की स्वास्थ्य सुविधा को ध्यान में रखते हुए अस्पताल का निर्माण कराया गया था, लेकिन हॉस्पिटल बने 8 साल से अधिक वक्त गुजर चुका है। आजतक यहां ढंग से मेडिकल फैसिलिटीज शुरू ही नहीं हो पाईं। जिन एजेंसियों को नगर निगम ने जिम्मेवारी दी, उन्होंने सालों इसे अपने अधीन तो रखा लेकिन इसका उपयोग उस तरीके से नहीं किया जैसा करना चाहिए था। जी हां, हम बात कर रहे हैं रांची नगर निगम द्वारा रातू रोड चौराहे के समीप बनाए गए हॉस्पिटल की। हॉस्पिटल का निर्माण आर्थिक से रूप से कमजोर लोगों के अलावा निगम कर्मियों को रियायत दरों पर हेल्थ सर्विस उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया गया था।

2014 मेें ही हुआ निर्माण

नगर निगम ने 2014 में अपने क्षेत्र के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इस अस्पताल की शुरुआत की थी। उस वक्त एक प्राइवेट अस्पताल के साथ निगम के इस अस्पताल को 10 साल तक चलाने का एग्रीमेंट हुआ था। नगर निगम ने इस प्राइवेट अस्पताल को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर यह अस्पताल चलाने के लिए दिया गया था। निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को इलाज में 10-20 प्रतिशत छूट का प्रावधान था। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। नगर निगम की शर्तों की अवहेलना की वजह से साल 2020 में एग्रीमेंट रद्द कर दिया गया। दस साल के करार को छह साल में ही रद्द कर दिया गया। इसके बाद प्रॉमिस हेल्थ केयर को यह जिम्मेवारी सौंपी गई, लेकिन बीते दो सालों में इस एजेंसी ने भी कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया।

2021 में आइसोलेशन वार्ड

निगम के अधिकारियों के मुताबिक, इस प्राइवेट अस्पताल से एग्रीमेंट रद्द होने के बाद पूरे मामले की देखरेख के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। इसमें पता चला कि अस्पताल संचालन से कोई राजस्व निगम को नहीं दिया गया। फिर 2021 में जिला प्रशासन की मांग पर निगम के इस अस्पताल को आइसोलेशन वार्ड बना दिया गया। यहां कोरोना मरीजों का इलाज किया जाने लगा। लेकिन कोरोना की लहर खत्म होने के बाद भी अस्पताल का सही से इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। इस अस्पताल के शुरू होने पर यहां मामूली बीमारी का इलाज और मेडिसीन का भी इतंजाम हो सकता था। अस्पताल के सुचारू तरीके से संचालित होने पर रिम्स और सदर में मरीजों के दवाब को कम किया जा सकता था।

अस्पताल सरकारी, फी प्राइवेट जैसी

इस हॉस्पिटल को सरकारी अस्पताल के रूप में डेवलप किया गया था, जहां सरकारी दरों पर इलाज की भी सुविधा उपलब्ध कराने का दावा किया गया था। लेकिन जब मरीज यहां इलाज या टेस्ट कराने पहुंचते तो उनसे प्राइवेट क्लिनिक की तरह ही पैसा वसूला जाता है। इतना ही नहीं, मरीजों को प्राइवेट हॉस्पिटल की तरह ही कंसल्टेंसी फीस भी चुकानी पड़ती थी। नगर निगम ने जब हॉस्पिटल की शुरुआत की थी तो मरीजों से रजिस्ट्रेशन के लिए 5 रुपए लिए जाते थे। वहीं, दवाएं भी उन्हें मुफ्त में उपलब्ध कराई जाती थी। लेकिन निजी हाथों में सौंपने के बाद मरीजों को डॉक्टर से दिखाने के लिए दो से ढाई सौ रुपए तक फीस कर दी गई। दवा के लिए भी उन्हें काफी पैसे खर्च करने पड़ते थे। मॉनिटरिंग नहीं होने के कारण यहां के कर्मचारी मनमानी करने लगे थे, जिसके बाद धीरे-धीरे लोगों ने यहां जाना बंद कर दिया। आज आलम यह है कि अब यहां ताला लटका हुआ है।

हकीकत बयां कर रहा रजिस्टर

हॉस्पिटल में रखा रजिस्टर यहां की हकीकत बयां कर रहा है। हॉस्पिटल में एक रजिस्टर रखा गया है जिसमें 2021 के बाद एंट्री ही नहीं है। दो साल से यहां कोई आया ही नहीं। सिर्फ यहां के गार्ड और कुछ सफाई कर्मी हॉस्पिटल में देखरेख करने आते हैं। न मरीज आता है और न ही डॉक्टर। अस्पताल को अपग्रेड करने के लिए कई बार कदम उठाए गए हैं। हर बार यह फेल ही साबित हुआ है। एक बार फिर नगर निगम की टीम हॉस्पिटल पहुंची और यहां की स्थिति का जायजा ली है। खबर है कि इस अस्पताल को जल्द से जल्द शुरू करने का निर्णय लिया गया है।

अस्पातल को सुचारू तरीके से संचालित करने का निर्णय लिया गया है। जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे।

-शशि रंजन, नगर आयुक्त, आरएमसी