रांची (ब्यूरो) । रांची विमेंस कॉलेज में सरहुल पर्व के अवसर पर सरहुल पूर्व संध्या महोत्सव का आयोजन किया गया। जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की तरफ से प्रस्तुत इस आयोजन में विशिष्ट अतिथि के तौर पर रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अजीत कुमार सिन्हा, कुलसचिव प्रो मुकुंद मेहता, वित अधिकारी ए.एन.शाहदेव, कुलपति की ओ.एस.डी डॉ स्मृति सिंह उपस्थित थीं।

प्राचार्या डॉ सुप्रिया ने गूंगु पत्ते की बनी टोपी तथा सरई के फूलों से अतिथियों का स्वागत किया।

प्राचार्या ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि हमें प्रकृति पर्व सरहुल से सीखना चाहिए कि हम प्रकृति का दोहन न करें।

हम प्रकृति पर निर्भर

उन्होंने कहा कि प्रकृति हम पर निर्भर नहीं है बल्कि हमारा अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है। यदि हम इसकी सुरक्षा के प्रति सचेत रहेंगे तो यह भी हमारे जीवन को खुशहाल बनाने में मदद करेगी। सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है। इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। सरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य पारंपरिक नृत्य सरहुल नृत्य किया जाता है.इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग मुख्य रूप से धान, पेड़ों के पत्ते, फूलों और फलों का उपयोग कर सकते हैं। नागपुरी भाषा की विभागाध्यक्ष डॉ करमी मांझी ने कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आयोजित किया।

डांस से सबको झूमाया

मौके पर छात्राओं ने विभिन्न सांस्कृतिक गीत एवं नृत्य के माध्यम से सबको झूमाया। बड़ी संख्या में उपस्थित छात्राओं और शिक्षिकाओं ने कार्यक्रम का खूब आनंद उठाया। डॉक्टर पूनम चौहान ने सरहुल मंत्र का पाठ किया जिसे पूरे सभागार ने दोहराया। अपने संबोधन और आशीर्वचन में कुलपति ने कहा कि हमारे बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है। सरहुल के शानदार आयोजन को देखते हुए मुझे कहना पड़ रहा है कि विमेंस कॉलेज में एक ट्राइबल फूड फेस्ट भी होना चाहिए। कालेज की बेहतरी के लिए जो कुछ भी आवश्यक है वह विश्वविद्यालय करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरहुल प्रकृति का सबसे बड़ा पर्व है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने का संदेश यह पर्व देता है। प्रकृति पर्व सरहुल वसंत ऋतु में मनाए जाने वाला आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है।

महाभारत के काल से जुड़ी कहानी

वसंत ऋतु में जब पेड़ पतझड़ में अपनी पुरानी पतियों को गिरा कर टहनियों पर नई-नई पत्तियां लाने लगती हैं, तब सरहुल का पर्व मनाया जाता है। कार्यक्रम को रांची विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी श्री ए। एन। शाहदेव ने भी संबोधित किया। शाहदेव ने अपना संबोधन नागपुरी भाषा में दिया। उन्होंने कहा कि सरहुल में आदिवासी समुदाय के लोग सखुआ के पेड़ को खास तौर से पूजते हैं, इसकी कहानी महाभारत के काल से जुड़ी है और इसी के बाद से जनजातीय समुदाय के लोगों की आस्था इस पेड़ से जुड़ी है। सरहुल परंपरा, संस्कृति, रहन-सहन से जुड़ा हुआ पर्व है। कार्यक्रम का संचालन शैलजा बाला तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ सीमा प्रसाद ने किया।