रांची(ब्यूरो)। राजधानी के थानों को बार-बार स्मार्ट थाना बनाने की बात होती है। लेकिन आज तक सिटी पुलिस स्टेशन को कबाड़ फ्री भी नहीं बनाया जा सका है। अलग-अलग पुलिस स्टेशन में करीब साढ़े छह करोड़ की गाडिय़ां कबाड़ होती जा रही हैं। सिटी के 16 पुलिस स्टेशन में 4300 टू व्हीलर, 1300 फोर व्हीलर और करीब पांच सौ बड़े वाहन बेकार पड़े हुए हंै। इन वाहनों को नीलाम करने की कई बार योजना बन चुकी है, लेकिन हर बार यह सिर्फ फाइलों तक सीमित रह जाती है। एक ओर जहां दिनों दिन इन वाहनों के वैल्यू गिरते जा रहे हैैं, वहीं कबाड़ गाडिय़ों की वजह से थाने भी कबाड़खाने नजर आने लगे हंै।

तो मिलती अच्छी-खासी रकम

जब्त गाडिय़ों को कबाड़ में भी बेचा जाए, तो सरकार को करीब साढ़े छह करोड़ रुपए की आमदनी हो सकती है। यह राशि अगर थानों में ही खर्च कर दी जाए, तो इसे स्मार्ट लुक दिया जा सकता है। लेकिन इच्छाशक्ति में कमी और उदासीन रवैये के कारण सरकार को डबल लॉस हो रहा है। इसके बाद भी विभाग के वरीय अधिकारी आंखें बंद किए बैठे हैं। पुलिस प्रशासन की लापरवाही के कारण सरकार को खासा नुकसान हो रहा है। विभाग के ही एक पदाधिकारी ने बताया कि ज्यादातर गाडिय़ों की कंडीशन खराब है। इसे निलामी में भी कबाड़ी वाले ही खरीदेंगे। यदि कंडीशन ठीक रहता, तो आम पब्लिक भी वाहन खरीदने में इंटरेस्ट दिखाती। इससे ज्यादा रेवेन्यू आ सकता था। लेकिन अब ऐसा संभव नहीं। दिनों दिन गाडिय़ों की स्थिति खराब होती जा रही है। वाहनों में जंग लग गई है।

क्या है नीलामी का प्रोसेस

जैसे-जैसे गाड़ी पुरानी होती जाती है, उसका मूल्य 10-10 परसेंट कम होता जाता है। नीलामी से पहले यह भी जांच की जाती है कि उस गाड़ी का जिला परिवहन विभाग में कोई रेवेन्यू बकाया तो नहीं है। इसके अलावा 18 परसेंट जीएसटी भी जोड़ा जाता है। नीलामी से आई राशि सरकारी कोषागार (ट्रेजरी) में जमा की जाती है। सरकार उस राशि को अपने हिसाब से विकास कार्यों में खर्च कर सकती है। थाना और मालखाने में पड़े वाहनों की हटाने का निर्णय बीते साल ही लिया गया था। इसकी तैयारी भी शुरू की गई, लेकिन फिर बीच में ही यह कवायद ढीली पड़ गई। ऐसे वाहन जिनका मामला कोर्ट से निष्पादित हो चुका है, उनकी सूचि तैयार करने का आदेश दिया गया था। लिस्ट तैयार कर भेजी भी जा चुकी है। वहीं जिनपर मामले लंबित हैैं, उन्हें भी चिन्हित कर थानों से हटा कर किसी सुरक्षित स्थान पर रखने का निर्णय लिया गया है। हालांकि, अबतक इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है।

इन कारणों से सड़ रहे हैं वाहन

नहीं है मालखाना प्रभारी

वाहनों को सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी मालखाना प्रभारी की होती है। मालखाना का प्रभार लेने या मिलने की प्रक्रिया भी काफी जटिल है, जिसे पूरी होने में सालों लग जाते हैं। थानेदार भी समय-समय पर बदल जाते हैं, जिस कारण जब्त गाडिय़ों पर अफसर भी ध्यान नहीं देते।

रिलीज ऑर्डर आने में लगता है लंबा समय

एक्सीडेेंटल केस में वाहन का रिलीज आर्डर आने में महीनों वक्त लग जाता है।

आपराधिक या दुर्घटना मामले में केस सुलझने में भी लंबा समय लगता है। इस बीच सही रखाव के अभाव में गाडिय़ा कबाड़ में बदल जाती है।

कागजी प्रक्रिया जटिल

लावारिस हालत में बरामद वाहन का दावेदार 6 माह तक थाना नहीं पहुंचता है तो थानेदार एसडीओ से आदेश लेने के बाद नीलामी कर सकता है। लेकिन इसकी भी कागजी प्रक्रिया जटिल है, जिस कारण थानेदार इसमें रूचि नहीं दिखाते।

थानों में नहीं है मुक्कमल इंतजाम

थानों में वाहनों को सुरक्षित रखने के लिए कोई मुक्कमल इंतजाम नहीं है। थाना परिसर और आसपास में वाहन ऐसे ही खुले में पड़े रहते हैं। सभी मौसम में खुले में रहने से वाहन दिनों दिन कबाड़ होते चले जाते हैं।

किस थाने में कितने वाहन

कोतवाली 500

सदर 600

चुटिया 500

सुखदेव नगर 400

लालपुर 500

डेली मार्केट 200

हिंदपीढ़ी 300

बरियातू 500

लोअर बाजार 400

गोंदा 400

खेलगांव 100

डोरंडा 400

अरगोड़ा 400

जगन्नाथपुर 400

धुर्वा 400

एयरपोर्ट 100

वाहनों की निलामी की प्रक्रिया चल रही है। निलाम होने लायक गाडिय़ों की लिस्ट तैयार की जा रही है। जल्द ही थाना कबाड़ मुक्त होगा।

-नौशाद आलम, प्रभारी सिटी एसपी