रांची(ब्यूरो)। राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल रिम्स में बदइंतजामी के हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैैं। लगातार हाईकोर्ट के ऑर्डर के बावजूद प्रबंधन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। मरीजों के इलाज के साथ यहां उन्हें मिलने वाली सुविधाओं के साथ भी मजाक किया जा रहा है। रिम्स जैसे बड़े हॉस्पिटल में जहां हर दिन सैकड़ों मरीजों का आना-जाना रहता लगा रहता है। वहां बदइंतजामी के हालात प्रबंधन की लापरवाही बयां करते हंै।

हेल्थ मिनिस्टर की फटकार

स्वास्थ्य मंत्री भी रिम्स में व्यवस्था को लेकर मैनजेमेंट को फटकार लगा चुके हैं, लेकिन फिर भी हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ते ही जा रहे हैं। बात करें यदि रिम्स में लगी लिफ्ट की तो इसकी भी पूरी सुविधा मरीज और उनके परिजनों को नहीं दी जा रही है। हॉस्पिटल की अलग-अलग बिल्डिंग में 38 लिफ्ट लगी हैैं। इनमें आधी लिफ्ट अधिकारियों, कर्मचारियों और विशेष मरीजों के लिए रिजर्व रहते हैं। शेष लिफ्ट में आधी से अधिक ज्यादातर समय खराब रहती हैं। इन दिनों भी रिम्स के 13 लिफ्ट खराब पड़ी हैैं। जो लिफ्ट चल रही हैं, उनकी भी स्थिति ठीक नहीं है। कभी भी लिफ्ट अटक सकती हौ और हादसा हो सकता है।

चली गई थी जान

रिम्स की अव्यवस्था के कारण पिछले महीने एक किशोर की जान चली गई थी। बिहार के रहने वाले 12 वर्ष के आदित्य रिम्स की खराब लिफ्ट में फंस कर अपनी जान गवां चुके है। आदित्य को किडनी की समस्या थी, रिम्स में डायलिसिस में लम्बा वक्त देख परिजन उसे निजी क्लीनिक में ले जाने लगे, चौथे फ्लोर से ग्राउंड फ्लोर पर आने के लिए परिजनों ने लिफ्ट का सहारा लिया तो लिफ्ट बीच में ही अटक गई। इसी बीच बच्चे की हालत बिगड़ गई, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई। इस घटना को दो हफ्ते से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन फिर भी रिम्स प्रबंधन की ओर से व्यवस्था में कोई सुधार नहीं किया गया। रिम्स के खराब पड़ी लिफ्ट की अबतक रिपेयरिंग नहीं कराई गई है। लिफ्ट की हालत ऐसी है कि इसमें जाने वाले व्यक्ति भयभीत रहते हैं कि न जाने कब लिफ्ट बीच में ही अटक जाए।

डायरेक्टर बिल्डिंग की लिफ्ट चकाचक

रिम्स डायरेक्टर के लिए बनाने गए भवन में भी दो लिफ्ट लगी हुई है। ये लिफ्ट हमेशा चकाचक रहती हैैं। हर दिन समय से इसकी सफाई होती है। समय-समय पर टेक्निकल खराबी की जांच और मरम्मत होती रहती है। दूसरी ओर आम नागरिकों के लिए लगाई गई लिफ्ट की कहानी ठीक इसके विपरित है। यहां शायद ही कभी सफाई होती है। टेक्निकल जांच भी जब तक खराबी न आ जाए तब तक नहीं होती है। रिम्स में लगी लिफ्ट के मेनटेनेंस का जिम्मा एबी इलेक्ट्रिकल, आरोही, जॉन्सन और कोने ये चार कंपनियों को दिया गया है, लेकिन भुगतान नहीं मिलने के कारण कंपनी हॉस्पिटल के लिफ्ट का मेनटेनेंस नहीं कर रही है।

सालाना 450 करोड़ खर्च

रिम्स राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल है, जहां राज्य के 24 जिलों और पड़ोसी राज्यों के सैकड़ों मरीज बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर आते हैं। लेकिन दुर्भाग्य ऐसा कि हकीकत जान कर सभी परेशान हैं। लचर चिकित्सीय व्यवस्था के कारण उम्मीदें बिखर जाती हैं। मरीज बेहाल रह जाते हैं। यहां लगी जांच मशीनें खराब पड़ी रहती हैं। मजबूरी में मरीजों को प्राइवेट क्लिनिक में ज्यादा पैसे देकर जांच कराना पड़ रहा है, जबकि व्यवस्था सुधारने और इक्विपमेंट के लिए हर साल सरकार रिम्स को 450 करोड़ रुपए देती है। इसके बावजूद रिम्स की तस्वीर नहीं बदल रही।

ट्रॉलियां भी बदहाल

रिम्स में कोई एक समस्या नहीं बल्कि यहां समस्याओं का अंबार है। एक ढूंढो हजार मिलते हंै। लिफ्ट के अलावा रिम्स के टॉयलेट की स्थिति खराब है। बेड की समस्या अब भी बरकरार है। मरीजों को साफ चादर नहीं मिल रही है। यहां तक की जीवन रक्षक दवाएं भी रिम्स के औषधि केंद्र में उपलब्ध नहीं रहती। मरीजों को लाने ले जाने के लिए हर हॉस्पिटल में ट्रॉली की व्यवस्था रहती है, यहां भी है। लेकिन दूसरे अस्पतालों के मुकाबले रिम्स की ट्रालियां काफी बेकार और जर्जर है। रिम्स में करीब 130 ट्रॉली है। इसमे 80 से अधिक ट्रॉली कंडम हो चुकी हैैं। किसी के पहिए नहीं हैं, तो किसी में जंग लग चुकी है।