रांची(ब्यूरो)। अपनों की जान बचानी है तो खुद लगाइए दौड़ क्योंकि, रिम्स में सिक्योरिटी गाड्र्स की हड़ताल है। राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल रांची स्थित रिम्स में पिछले दो दिनों से व्यवस्था बेपटरी है। मरीजों के परिजन खुद हाथों में सिलिंडर ढो रहे हैैं और खुद से ही ट्रॉली खींचकर अपनों को डॉक्टर तक पहुंचा रहे हैैं। रिम्स में बुधवार से शुरू हुई सिक्योरिटी गाड्र्स की हड़ताल के बाद लोगों की जान सांसत में है और इस अव्यवस्था के बीच बुधवार को तीन और गुरुवार को दो लोगों की जान चली गई। इन 5 मौतों के लिए आखिर कौन है जिम्मेवार? इन सबके बावजूद न तो सिक्योरिटी गाड्र्स को मतलब है, न इनको बहाल करनेवाली एजेंसी को, न रिम्स मैनेजमेंट और न ही राज्य सरकार को। इस मामले में सभी अपनी-अपनी दलील देकर मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। गोद में मरीज, हाथ में सिलिंडर

गुरुवार को रिम्स की भयावह तस्वीर दिखी। जिदंगी और मौत से लड़ते मरीजों को उनके अपनों के अलावा किसी का साथ नहीं मिला। सुरक्षा गार्ड, ट्रॉली मैन से लेकर अन्य वार्ड ब्वाय भी नदारद रहे। एंबुलेंस से मरीज को हॉस्पिटल पहुंचाने में कोई मदद नहीं मिल रही थी। मरीज के परिजन जैते-तैसे एंबुलेंस से उन्हें उतार कर डॉक्टर के पास इलाज के लिए भाग रहे थे। छोटे बच्चों की हालत देख कर भी रिम्स में किसी का दिल नहीं पसीजा। सुरक्षाकर्मियों को अपनी मांग के आगे कुछ नजर नहीं आ रहा। वे मानव सेवा से लेकर संवेदना तक भूल चुके हंै।

प्रबंधन ने हाथ खड़े किए

सुरक्षाकर्मियों का कहना है कि उन्हें अगर नौकरी से हटा दिया गया तो घर कैसे चलेगा, वे सड़क पर आ जाएंगे। वहीं दूसरी ओर प्रबंधन का कहना है की सभी सुरक्षाकर्मी एवरेस्ट ह्यूमन रिसोर्स एजेंसी के माध्यम से आउटसोर्स किए हुए हैं। सरकारी निर्देश के बाद इन्हें रखने वाली एजेंसी को हटाया जा रहा है। इनकी नौकरी के लिए एजेंसी जिम्मेदार होगी, सुरक्षाकर्मियों को एजेंसी से वार्ता करनी चाहिए। आगे उनके लिए वे क्या विकल्प रखते हैं। रिम्स प्रबंधन की ओर से कुछ नहीं किया जा सकता।

एजेंसी की गलती का खामियाजा

रिम्स में सुरक्षाकर्मी और प्रबंधन के बीच का रगड़ा नया नहीं है। पहले भी दोनो आमने-सामने आते रहे हैं। यहां तैनात सुरक्षाकर्मियों पर ही अवैध रूप से ड्यूटी करने का आरोप लगा है। दरअसल 2013 में एवरेस्ट ह््यूमन रिर्सोस प्रा। लि। को रिम्स की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। तीन साल बाद 2016 में समय समाप्त होने के बाद भी सुरक्षा कर्मी यहां जमे रहे हैं। रिम्स ने फिर से टेंडर जारी किया, जिसमे यहां की सुरक्षा की कमान नई कंपनी को दी गई थी, लेकिन कुछ ही दिन बाद नई कंपनी ने काम बंद कर दिया। इसके बाद फिर से पुरानी कंपनी के कर्मचारी यहां हावी हो गए। यही स्थिति आज भी बनी हुई है। अब जब सरकार ने निजी सुरक्षाकर्मियों को हटा कर वहां होमगार्ड के जवानों को जिम्मेवारी सौंपने का निर्णय लिया है। ऐसे में यहां के सुरक्षाकर्मी रिम्स की व्यवस्था बेपटरी करा कर अपनी मांग मंगवाने का प्रयास कर रहे हैं।

कर्मियों को आधी सैलरी

रिम्स के निजी सुरक्षाकर्मियों को हटाकर होमगार्ड के जवानों को तैनात करने की खबर के बाद से ही सुरक्षाकर्मी आंदोलन कर रहे हैैं। इसके अलावा चार महीने के बकाए वेतन की भी मांग कर्मियों द्वारा की जा रही है। हालांकि प्रबंधन का कहना है अगस्त तक वेतन क्लियर है। सितंबर, अक्टूबर और नवंबर का वेतन ट्रेजरी में है। वेतन मामले में भी एजेंसी पर आरोप है। एजेंसी रिम्स प्रबंधन से प्रति कर्मचारी 15 से 18 हजार रुपए लेती है, जबकि वह अपने कर्मचारियों को साढ़े नौ हजार रुपए के हिसाब से वेतन देती है। ऐसे में कर्मियों को अपने आउटसोर्सिंग एजेंसी से सवाल करना चाहिए। लेकिन कर्मचारी रिम्स की व्यवस्था चौपट कर यहां मरीजों और उनके परिजनों को दर्द देने में जुटे है।

बदसलूकी का आरोप

सालों से जमे सुरक्षाकर्मी खुद को रिम्स का सर्वेसर्वा समझने लगे हैं। कई बार इन कर्मचारियों पर मरीज और परिजनों के साथ अभद्र व्यवहार, बदतमीजी करने और परिजन के साथ मारपीट करने का भी आरोप लगा है। यहां तक मरीज को सर्विस देने के लिए पैसा मांगने का भी आरोप रिम्स के सुरक्षाकर्मी और ट्रॉलीमैन पर लग चुका है। मरीज को बेड दिलाना हो या फिर कंबल या अन्य कोई सुविधा, हर काम के लिए अटेंडेंट से खर्चा पानी देने को कहते हंै।

मंत्री का आश्वासन

इधर व्यवस्था बेपटरी होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने पहल करते हुए 10 जनवरी की मींिटंग में इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। इसके बाद गुरुवार की रात सिक्योरिटी गाड्र्स ने हड़ताल समाप्त कर काम पर वापस लौटने का निर्णय लिया है।

सुरक्षाकर्मियों को हटा कर उनकी जगह होमगार्ड को तैनात करने का निर्णय राज्य सरकार का है। उनकी शिकायत एजेंसी से होनी चाहिए, रिम्स प्रबंधन इस पर कुछ नहीं कर सकता।

-शैलेस त्रिपाठी, सुपरिंटेंडेंट रिम्स