RANCHI : रांची यूनिवर्सिटी में दो लाख डिग्रियां एक कबाड़खाने जैसे कमरे में धूल फांक रही हैं। जो डिग्रियां आज स्टूडेंट्स के हाथ में होनी चाहिए थीं, वो यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन की लापरवाही के कारण जैसे-तैसे फेंकी पड़ी हैं। आज के कॉम्पीटेटिव और प्रोफेशनलिज्म एरा में अगर हाथ में डि‌र्ग्री न हो तो हर डगर पर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन, आरयू से पढ़ाई पूरी कर चुके लाखों ऐसे स्टूडेंट्स हैं, जो पिछले कई सालों से डि‌र्ग्री के लिए यूनिवर्सिटी का चक्कर लगा रहे हैं। वीसी और प्रो वीसी के सिग्नेचर के अभाव में लगभग दो लाख डिग्री धूल फांक रही है।

कॉलेजों को नहीं भेजी डिग्री

रांची यूनिवर्सिटी दो लाख से ज्यादा डिग्रियों को दबाए बैठी है। 2009 सेशन से ही कॉलेजों को डिग्री नहीं भेजी गई है। इसकी वजह डिग्रियों पर वीसी व प्रो वीसी का सिग्नेचर नहीं होना है। कॉलेजों को डिग्री नहीं मिलने से कॉलेज सेरेमनी के आयोजन पर भी पानी फिर रहा है।

सात सेशन की डिग्री पेंडिंग

रांची यूनिवर्सिटी की ओर से सेशन 2009 से 2015 तक की डिग्री कॉलेजों को नहीं सौंपी गई है। कई स्टूडेंट्स पढ़ाई पूरी कर यूनिवर्सिटी छोड़ चुके हैं, लेकिन उनकी हाथों में आजतक डिग्री नहीं आई है। हालांकि, 2011 की डिग्रियां कॉलेजों को भेजी जा चुकी है, पर इसमें वीसी और प्रो वीसी के सिग्नेचर की जगह मुहर का इस्तेमाल किया गया था। इस तरह सात सेशन की करीब दो लाख डिग्री रांची यूनिवर्सिटी में पेंडिंग पड़ी है।

शॉट सर्किट हुआ तो स्वाहा

जिस स्थिति में रांची यूनिवर्सिटी में डिग्रियां पड़ी हैं, अगर वहां शॉट सर्किट हुआ तो सभी जल जाएंगी। कुछ पुरानी डिग्रियों की दशा तो और भी खराब है। अगर इन डिग्रियों के रख-रखाव पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये रखे-रखे ही बर्बाद हो जाएंगी। दरअसल वीसी और प्रो वीसी का सिग्नेचर नहीं होने से डिग्रियों को डिस्ट्रिब्यूट नहीं किया जा सका है।

आरयू के खाते में 12 करोड़ रुपए

रांची यूनिवर्सिटी में एग्जाम फॉर्म भरते वक्त ही 600 रुपए प्रति छात्र की दर से पेमेंट करना होता है। डिग्री देने के नाम पर यह रकम ली जाती है। फीस नहीं देने पर फॉर्म एक्सेप्ट ही नहीं किया जाता है। फिलहाल रांची यूनिवर्सिटी के खाते में डिग्री मद में 12 करोड़ रुपए जमा हैं।

प्रो वीसी ने सिग्नेचर करने से किया था इन्कार

18 जून को रांची यूनिवर्सिटी में प्रो वीसी के पद पर डॉ शैलेंद्र शुक्ला ने योगदान किया था। लेकिन, जैसे ही उन्हें पता चला कि दो लाख डिग्रियां पेंडिंग है, तो उन्होंने इसपर सिग्नेचर करने से इन्कार कर दिया था। उनका कहना था जिस प्रो वीसी के कार्यकाल की डिग्रियां हैं, वही सिग्नेचर करें। वह बैकडेट में सिग्नेचर नहीं करेंगे। इसे लेकर यूनिवर्सिटी में हंगामा भी हुआ था। अगस्त महीने में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद से रांची यूनिवर्सिटी में प्रो वीसी का पद खाली है।

नहीं हैं प्रो वीसी, वीसी कर रहे हैं सिग्नेचर

नियम के मुताबिक, ग्रेजुएशन की डिग्रियों पर प्रो वीसी और वीसी का सिग्नेचर होना अनिवार्य है, लेकिन रांची यूनिवर्सिटी में पिछले पांच महीने से प्रो वीसी का पद खाली है। ऐसे में वीसी डॉ रमेश पांडेय अब खुद ही डिग्रियों पर सिग्नेचर कर रहे हैं।