रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची में पानी की भीषण समस्या है लेकिन इसके समाधान की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लगातार पानी का दोहन तो हो ही रहा है, लेकिन इसके संरक्षण को लेकर कोई बात भी नहीं करता है। पानी बचाने को लेकर भले कई तरह की योजनाए चलाए जाने की बात कही जाती है। लेकिन धरातल पर यह कहीं नजर नहीं आता। हर साल बारिश के मौसम में करोड़ों लीटर पानी नाले में बह जाता है। बता दें कि बडग़ाई के लेम में एक सीवर प्लांट का निर्माण कराया गया है, लेकिन इसका अबतक इस्तेमाल नहीं हो सका है। सीवरेज-ड्रेनेज प्रोजेक्ट पर काम तो शुरू हुआ लेकिन वह भी अधर में ही लटका है। बारिश के पानी को यदि स्टोर करने की व्यवस्था कराई गई होती है तो इसके परिणाम काफी अच्छे देखने को मिल सकते थे। ग्राउंड वाटर भी रिचार्ज होता रहता, जिससे लोगों के घरों की बोरिंग सूखने की समस्या भी काफी हद तक कम हो जाती।

डैम व तालाब का एन्क्रोचमेंट

पानी स्टोरेज के लिए डैम और तालाब को सबसे बेहतर साधन माना जाता है। लेकिन लोगों ने इसे भी नहीं छोड़ा। डैम और तालाब का एन्क्रोचमेंट कर वहां बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। कई तालाब तो ऐसे थे, जिनका अब नामोनिशान भी नहीं बचा। तालाब को भर कर ही उसपर अपार्टमेंट खड़े कर दिए गए हैं। वहीं जो तालाब बचे हैं उनका भी बुरा हाल है। कभी तालाबों के शहर के नाम से जाना जाने वाले इस शहर में आज गिने-चुने तालाब बचे हैं। वहीं डैम का भी कुछ ऐसा ही हाल है। डैम के आसपास भी भारी संख्या में अतिक्रमण कर लिया गया है। डैम में वर्षा का पानी संरक्षित होता है। समस्या यह है कि डैम में बारिश के पानी के पहुंचने का स्रोत ही खत्म कर दिया गया है। कंक्रीट के जंगल ने पानी को डैम तालाब तक पहुंचने से रोक दिया है।

साल भर से बन रहा एसटीपी

स्वामी विवेकानंद सरोवर (बड़ा तालाब) में जा रहे नाले के गंदे पानी को रोकने के लिए एसटीपी बनाने का काम चल रहा है। बीते एक साल से इस प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है, लेकिन अब भी यह अधूरा है। जल संचयन के लिए कई योजनाएं बनती हैं। लेकिन उन्हें अमलीजामा पहनाने में विभाग हमेशा से फेल साबित होता रहा है। कई योजनाएं हैं जिनपर वर्षों से काम हो रहा है, लेकिन आज भी ये योजनाएं आधी-अधूरी हैं। इन्हीं में एक सीवरेज-ड्रेनेज का प्लान भी है। इस योजना पर बीते 15 सालों से काम चल रहा है। काफी मशक्कत के बाद साल 2014 में काम शुरू तो हुआ लेकिन यह आजतक पूरा नहीं हो सका है।

एसटीपी बना, सीवर लाइन से कनेक्ट नहीं

राजधानी में एक सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया है। लेकिन समस्या यह है कि इसे अबतक सीवर लाइन से कनेक्ट नहीं किया गया है। नतीजन, इसका कोई फायदा नहीं। नाले से बह कर आने वाले गंदे पानी का ट्रीटमेंट कर पानी को इस्तेमाल लायक बनाया जा सकता है। इस पानी का इस्तेमाल कृषि या सिंचाई के लिए भी हो सकता है। साथ ही ग्राउंड वाटर भी रिर्चाज किया जा सकता है। सीवर लाइन का काम पूरा नहीं होने के पीछे एनओसी का न मिलना एक बड़ी वजह है। रोड कंस्ट्रक्शन विभाग, एनएचएआई और सीसीएल की ओर से एनओसी नहीं मिलने की वजह से प्रोजेक्ट पर ग्रहण लग गया है। कांके रोड में सीसीएल, बरियातू रोड में पथ निर्माण विभाग और बूटी मोड़ से आगे एनएचएआई ने मेन लाइन बिछाने के लिए एनओसी नहीं दिया है। इस वजह से काम की रफ्तार नहीं बढ़ रही है। जबकि बडग़ाईं के लेम में एसटीपी तैयार है।

जमीन अधिग्रहण बड़ी बाधा

एनओसी के अलावा जमीन अधिग्रहण भी इसमें बाधक बन रही है। दरअसल, बोड़ेया रोड स्थित वृंदावन कॉलोनी से आगे रैयती जमीन से पाइपलाइन गुजर रही है। रैयतों ने इसका विरोध कर दिया था। इसलिए अब रैयती जमीन अधिग्रहण के बाद ही पाइपलाइन बिछाने का काम शुरू हो सकेगा। इस प्रक्रिया में छह माह और लगने की संभावना है। 2007 में मैनहर्ट ने शहर को चार जोन में बांटकर सीवर प्राजेक्ट की योजना तैयार की थी। लेकिन यह विवादों में फंसा रहा। इस वजह से काम शुरू नहीं हुआ। साल 2015 में ज्योति बिल्डकॉन को काम सौंप दिया गया। जोन-1 के 9 वार्ड में सीवरेज का काम करने का ठेका 356 करोड़ में दिया गया। इसमें कंपनी को करीब 80 करोड़ का भुगतान भी किया गया। 2 वर्ष में यह काम पूरा होना था, लेकिन तीन बार कंपनी को एक्सटेंशन देने के बाद भी मात्र 113 किमी सीवर लाइन ही बिछ सकी।