रांची(ब्यूरो)। रिम्स के मेडिसीन वार्ड में बेड़ो के रहने वाले उदय महतो चार दिनों से भर्ती हैं। सीने में दर्द की शिकायत, उल्टी और बुखार के कारण उदय को डॉक्टर ने भर्ती होने की सलाह दी है। गुरुवार को उदय को काफी जोर से प्यास लगी। उदय के परिजन भागते हुए रिम्स में लगे प्याऊ के पास पहुंचे। लेकिन प्याऊ बंद था। बगल में लगे नल से गंदा पानी आ रहा था जो सेहत के लिए ठीक नहीं था। वहीं रिम्स के प्रवेश द्वारा पर लगे प्यूरीफायर के समीप पहुंचे वहां पांच रुपए में एक लीटर पानी मिल रहा था। लेकिन उदय की पत्नी बिना पैसा लिये ही आ बोतल में पानी लेने आ गई। पैसे नहीं होने के कारण उसे वापस जाना पड़ा। वह फिर से दौड़ते हु़ए गई और दस मिनट में दस रुपए लेकर फिर पहुंची, तब जाकर दो लीटर पानी ले सकी। यह राज्य के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल की सरकारी सच्चाई है, जहां इलाज तो फ्री में होता है लेकिन पीने के पानी के लिए रुपए देने पड़ रहे हैं।

रिम्स में बिक रहा पानी

रिम्स राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों से भी मरीज अपना इलाज कराने रिम्स आते हैं। लेकिन बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि जिस संस्थान को गरीब-गुरबों, जरूरतमंदों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का फ्री में इलाज के लिए बनाया गया है वहां पीने के पानी का सौदा हो रहा है। रिम्स में पांच रुपए में एक लीटर पानी बेचा जा रहा है। जबकि एक मरीज को इस भीषण गर्मी में औसतन सात से आठ लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा मरीज के परिजन भी पानी पीते हंै। ऐसे में रिम्स में एडमिट मरीज एक दिन में करीब सौ रुपए का पानी रिम्स से खरीद रहा है। हॉस्पिटल में हर दिन करीब दो हजार मरीज भर्ती रहते हैं। आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो यदि एक मरीज हर दिन कम से कम पांच लीटर पानी भी ले रहा है तो रिम्स प्रबंधन गरीब मरीजों से रोज का 50 हजार रुपए कमा रहा है। सिर्फ पानी बेच कर रिम्स महीने में करीब 15 लाख रुपए गरीब और असहाय लोग से वसूल कर रहा है। जबकि प्राइवेट हॉस्पिटल में भी पानी के बदले किसी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता है। फिर रिम्स में यह व्यवस्था क्यों है और पानी से आया पैसा किसके खाते में जा रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि जिस हॉस्पिटल में खाना भी मरीजों को फ्री में दिया जाता है वहां पानी किसके कहने पर बेचा जा रहा है।

पैसा नहीं होने पर बाहर का पानी

तपती गर्मी में सबसे ज्यादा जो जरूरी है वह है पानी। सिर्फ मरीज के लिए ही नहीं, बल्कि मरीज के परिजनों को भी इसकी जरूरत पड़ती है। रिम्स के अंदर के प्याऊ खराब हैं। खराब इसलिए छोड़ दिया गया है ताकि रिम्स में पानी का बिजनेस चलता रहे। क्योंकि जिस मशीन से पैसे देकर पानी निकल रहा है वह तो दुरुस्त है, लेकिन जहां से फ्री और स्वच्छ पानी लिया जा सकता है, उसे खराब छोड़ दिया गया है। वहीं जिस नल से पानी आ रहा है पीने योग्य नहीं है। इधर रिम्स परिसर के बाहर एक नल है जहां पानी लेने वालों की भीड़ लगी रहती है। पानी का बोतल रिम्स के बाहर भी बिकता है। कैंपस के बाहर दस, पंद्रह और बीस रुपए में पानी बिकता है।

एजेंसी ने मशीन लगवाई है। इसका पैसा भी एजेंसी को ही जाता है। रिम्स में कुछ सामाजिक संस्थाओं ने भी प्याऊ बनवाया है, जो भी प्याऊ खराब पड़े हैं, उन्हें बनवाया जाएगा।

-डॉ डीके सिन्हा, पीआरओ, रिम्स