रांची(ब्यूरो)। राजधानी में ऐसा कोई भी दिन नहीं है, जब किसी ना किसी इलाके की सप्लाई वाटर पाइपलाइन नहीं फटती हो और हजारों लीटर पानी बर्बाद ना होता हो। लोगों के घरों तक पहुंचने वाला पानी सड़कों पर बह जाता है। गर्मी के मौसम में यह समस्या और भी ज्यादा विकराल रूप ले लेती है। लोगों के घरों में बोरिंग जब सूखने लगती है तो आम पब्लिक सरकार की ओर से भेजे जाने वाले सप्लाई वाटर पर ही आश्रित हो जाती है। लेकिन इससे भी जब लोगों की जरूरत पूरी न हो तो आम नागरिक पानी के लिए कहां जाए। जी हां, इन दिनों सिटी में कुछ ऐसा ही हो रहा है। सप्लाई पानी लोगों के घरों तक समय से नहीं पहुंच पा रहा है। इसके पीछे की वजह पेयजल विभाग खुद है। दरअसल, सिटी में बिछाई गई राइजिंग पाइपलाइन काफी पुरानी और जर्जर हो चुकी है, जिस वजह से बार-बार पाइपलाइन डैमेज हो जाती है और इससे लाखों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है।
जर्जर व पुरानी पाइपलाइन
राजधानी में पाइप लाइन पुरानी होने और पानी का प्रेशर अधिक होने के कारण पाइपलाइन अक्सर फट जाती है। पुरानी पाइपलाइन की वजह से शहर के लोगों को हमेशा परेशानी झेलनी पड़ती है। शहर में तकरीबन 60 वर्ष पुरानी जर्जर वाटर सप्लाई पाइपलाइन आए दिन क्षतिग्रस्त हो रही है और इससे हजारों गैलन पानी की बर्बादी हो रही है। इसके बावजूद पेयजल स्व'छता विभाग के अधिकारियों की नींद नहीं खुल रही है।
1966 में बिछी टाउन पाइपलाइन
टाउन पाइप लाइन करीब 58 साल पुरानी है। वर्ष 1966 में बिछी यह पाइप लाइन अब काफी कमजोर हो चुकी है, जिसकी वजह से लगातार पाइप फटती रहती है। बूटी पहाड़ स्थित स्टोरेज से ही टाउन पाइप लाइन में जलापूर्ति की जाती है। 58 साल पहले जब यह पाइपलाइन शहर में पानी देने के लिए बिछाई गयी थी। उस समय शहर की आबादी बहुत कम थी। लेकिन लगातार शहर की आबादी बढ़ते-बढ़ते 20 लाख हो गई और पाइप लाइन वही पुरानी ही रही। लोगों ने कनेक्शन भी बहुत अधिक संख्या में ले ली। लेकिन पाइपलाइन बदली नहीं जा सकी है, जिस कारण शाम और सुबह एक बार जब बहुत अधिक घरों में पानी पहुंचने लगता है उसी समय पाइपलाइन कहीं ना कहीं से फट जाती है। इस कारण घरों तक सही तरीके से पानी नहीं पहुंच पा रहा है।
1952 में बना गोंदा डैम
गोंदा डैम से वाटर सप्लाई के लिए 1952-53 में पाइपलाइन बिछाई गई थी और आज भी उसी पाइपलाइन से पेयजल व स्व'छता विभाग शहर में जलापूर्ति कर रहा है। नतीजा यह है कि पाइपलाइन जगह-जगह बार बार फट रही है और उसके जरिए लोगों के घरों में गंदा पानी पहुंच रहा है। इस दूषित पानी को कई बार लोग घर में फिल्टर कर पीने के लिए यूज कर रहे हैं, लेकिन बड़ी आबादी आज भी इसी दूषित पानी को पीने के लिए मजबूर है। डैम की स्थापना होने से अब तक पाइपलाइन नहीं बदली गई है। लगभग 60 वर्ष होने के बावजूद आज तक पाइपलाइन बदली नहीं गई है।
15 साल से बिछ रही नई पाइपलाइन
रांची में जलापूर्ति योजना का विस्तार 15 साल में भी पूरा नहीं हो पाया। 2009-10 में जवाहर लाल नेहरू शहरी विकास पुनरुद्धार योजना ली गयी थी। इसमें रांची शहर की चार लाख की आबादी को पीने का पानी पहुंचाने की भारी-भरकम योजना नगर विकास विभाग ने ली थी। इस योजना का क्रियान्वयन पेयजल और स्व'छता विभाग को सौंपा गया। हैदराबाद की कंपनी आइवीआरसीएल को 256 करोड़ की योजना का कार्यादेश दिया गया। 24 महीने में योजना का काम पूरा करना था। सरकार ने सितंबर 2013 में आइवीआरसीएल को यह कहते हुए काली सूची में डाल दिया कि उसने निर्धारित समय में 30 परसेंट से कम उपलब्धि हासिल की। इसके बाद राज्य मंत्रिमंडल की तरफ से एलएनटी को बचे हुए काम का कार्यादेश दिया गया। 2014-15 में एलएनटी को 290.88 करोड़ का काम दिया गया। यह काम भी 24 महीने में पूरा नहीं हो पाया। अब अमृत योजना के तहत रांची के एक लाख घरों तक पानी पहुंचाने की घोषणा की गई है, वह भी 2020 तक। सरकार की योजना में न तो नया डैम बनाया गया है और न ही जल स्रोत का कोई आधार है, जहां से पानी लाया जाएगा।
शहरी जलापूर्ति का हाल
जेएनयूआरएम के तहत रांची शहरी जलापूर्ति फेज-1 के अंतर्गत रुक्का डैम में 110 मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाना है। यहीं पर इंटेक वेल भी बनाया जाना है। साथ ही साथ हटिया, डोरंडा के 56 सेट, ललगुटूवा, पुनदाग, अरगोड़ा समेत छह जगहों पर पीने के पानी का ओवरहेड टैंक बनाया जाना है। 300 किलोमीटर से अधिक दूरी तक पाइपलाइन भी बिछायी जानी है। पहले से रांची शहर में 21 से अधिक जलमीनार के जरिए 30 मिलियन गैलन प्रति दिन की आपूर्ति नगर निगम क्षेत्र के 80 परसेंट हिस्से में की जा रही है।
खुंटी के मुरहू व गुमला के नागफेनी से पानी लाने की योजना भी फेल
2010 में रा'य सरकार की तरफ से खूंटी के मुरहू और गुमला के नागफेनी से पानी रांची तक लाने की योजना बनी थी। पेयजल और स्वछता विभाग, योजना विभाग और नगर विकास विभाग तथा जल संसाधन विभाग की उ'च स्तरीय टीम ने दोनों जगहों का दौरा भी किया। टीम ने मुरहू की योजना को दरकिनार कर दिया। नागफेनी से पानी लाने की योजना को आगे बढ़ाए जाने की अनुशंसा भी की है।
क्या कहती है पब्लिक
रांची में पानी की समस्या पिछले कई सालों से है, लेकिन इसको ठीक करने पर कोई काम नहीं किया जा रहा है। हर साल गर्मी शुरू होते ही प्रशासनिक महकमा तैयारी शुरू करता है लेकिन गर्मी पिक पर आते-आते लोगों को पानी की किल्लत शुरू हो जाती है।
-रवि कुमार

पिछले कई साल से रांची में लोगों को घर-घर पानी पहुंचाने के लिए अरबों रुपए खर्च किए गए, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। राजधानी का अगर यह हाल है तो दूसरे शहरों की क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इसमें सारी गलतियां प्रशासनिक पदाधिकारी की है, जिनके कारण रांची में अभी तक लोगों को घर-घर पानी मिलना शुरू नहीं हो पाया है।
-रौशन कुमार

सरकारी लेवल पर भी उदासीनता देखने को मिलती है। कोई अधिकारी जब रांची आते हैं और पानी की समस्या का काम करना शुरू करते हैं इसी बीच उनका ट्रांसफर कर दिया जाता है। दूसरे अधिकारी आते हैं तो इसमें इंटरेस्ट नहीं लेते हैं, जिसके कारण जो स्थिति पहले बनी रहती है, वो तत्काल बनी ही रह जाती है। कोई इसका निराकरण करने का उपाय नहीं मिल पाता है।
-नंदकिशोर चंदेल

राज्य बने हुए 24 साल होने को हैं और रांची के लोगों को शुद्ध पानी और भरपूर पानी नहीं मिल रही है। यह सरकार की कर्मियों को उजागर करता है। रांची में पानी की पाइपलाइन बिछाने के लिए सड़कों को भी खुद डाला गया, लेकिन अभी तक लोगों के घरों में पानी नहीं मिल पा रहा है।
-अनिल कुमार

रांची में जो पाइप लाइन बिछाई गई है, वह बहुत पुरानी हो गई है। पहले शहर की आबादी के अनुसार यह पाइपलाइन ठीक थी, अब आबादी बढऩे के बाद इस पाइप पर प्रेशर बढ़ जाता है, जिससे पाइप फट जाती है। इसे मरममत करके काम पूरा किया जा रहा है। नई पाइप लाइन बिछाने का काम भी चल रहा है।
-चंद्रशेखर, कार्यपालक अभियंता, पेयजल स्व'छता विभाग, रांची