रांची(ब्यूरो)। Misconduct by Bus operators in Ranchi: राजधानी रांची सहित राज्य भर में दस हजार से अधिक बसें चलती हैं, लेकिन इन बसों में चलने के लिए सिर्फ 11 कंडक्टर ने ही परिवहन विभाग से लाइसेंस लिया है। यह आंकड़ा बहुत हीं चौंकाने वाला है। स्किल्ड कंडक्टर नहीं होने की वजह से बस में यात्रियों के साथ कंडक्टर का हमेशा लड़ाई-झगड़ा होते रहता है। परिवहन विभाग भी इस पर कभी कड़क नहीं होता है, सिर्फ बस चलाने वाले ड्राइवर का लाइसेंस देखकर ही अपना काम पूरा कर लेता है। टिकट काटने वाले कंडक्टर हनक में रहते हैं। कई बार बदतमीजी भी करते हैैं। वजह यह है कि ये न तो प्रॉपर ट्रेनिंग लेते हैैं और न ही इनके पास कंडक्टरी का लाइसेंस ही होता है।

हर बस कंडक्टर को लाइसेंस जरूरी

वर्तमान स्थिति यह है कि रांची समेत राज्य भर में केवल 11 कंडक्टर के पास ही लाइसेंस है। दूसरी ओर राज्य में अभी 15 हजार कंडक्टर विभिन्न बसों के तारणहार बने हुए हैैं। मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार, बस में टिकट काटने वाले हर कंडक्टर का लाइसेंस होना अनिवार्य है, ताकि यात्रियों के साथ अगर बस कंडक्टर मिसबिहेव करते हैं, तो उनकी शिकायत की जा सके।

बस वाले विभाग की भी नहींसुनते

परिवहन विभाग से प्राप्त आंकड़े के अनुसार, राज्य भर में सिर्फ 11 कंडक्टर के पास ही परिवहन विभाग की ओर से जारी लाइसेंस है। विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सभी बस वालों को निर्देश दिया गया है कि बस कंडक्टर का लाइसेंस जरूर ले लें। लेकिन, बस वाले विभाग की नहीं सुन रहे हैं। लाइसेंस के लिए परिवहन विभाग के पास आवेदन भी नहीं देते हैं। यही वजह है कि विभाग लाइसेंस ही जारी नहीं कर पा रहा है। परिवहन विभाग भी इस पर कभी कड़क नहीं होता है, सिर्फ बस चलाने वाले ड्राइवर का लाइसेंस देखकर ही अपना काम पूरा कर लेता है।

नाममात्र के लाइसेंस

झारखंड में दस हजार से अधिक बसें हैं, जो राज्य के अलग-अल जिलों में चलती हंै। एक बस में अमूमन दो कंडक्टर होते हैं। इस तरह राज्य भर में चल रही बसों में करीब 20 हजार से अधिक कंडक्टर हैं। इनमें से सिर्फ 11 लोगों के पास ही कंडक्टरी करने का लाइसेंस मौजूद है। बाकि जो लोग कंडक्टरी कर रहे हैं, वे बस मालिकों की मर्जी से करते हैं।

कंडक्टर से यात्री परेशान

बूटी मोड़, खादगढ़ा, आईटीआई बस स्टैंड, बिरसा चौक, कांके रोड चांदनी चौक से जो भी बसें खुलती हैं, वहां दबंग किस्म के लोग ही कंडक्टरी करते नजर आते हैं। पैसेंजर चाहे वो महिला हो या पुरुष हाथ पकड़कर जबरदस्ती अपनी बसों में बैठाते हैं। इनकार करने पर उनके साथ बहस भी करते हैं। कोई पैसेंजर अगर किराया को लेकर बोल देता है, तो कंडक्टर अपने असली रूप में आ जाते हैं। पैसेंजर के साथ बदतमीजी शुरू कर देते हैं।

बस के साथ ही लेना है लाइसेंस

परिवहन विभाग के अनुसार, 23 सालों में सिर्फ 11 लोगों के पास ही लाइसेंस है। 2015 के बाद राज्य में सिर्फ चार कंडक्टर को ही लाइसेंस जारी किया गया है। जबकि देश के दूसरे राज्यों में इनकी संख्या बहुत अधिक है। दूसरे राज्यों में कंडक्टर का लाइसेंस बस ओनर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन लेने के साथ ही लेते हैं। जबकि झारखंड में लाइसेंस के लिए आवेदन भी नहीं देते हैं।

मैट्रिक पास होना जरूरी

मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार, बसों में सवारियों से टिकट काटने वाले कंडक्टर का बिहेव यात्रियों के साथ अच्छा रहे, इसके लिए मैट्रिक पास की योग्यता तय की गई है। इसका मकसद है कि मैट्रिक पास लोगों को ट्रेनिंग देकर यह समझाया जा सकता है कि कैसे वह पैसेंजर के साथ बिहेव करें।

प्रशासन भी नहीं करता कार्रवाई

प्रशासन की ओर से कभी भी इस पर कार्रवाई नहीं की जाती है। प्रशासन के लोग भी मौन रहकर इन बस कंडक्टरों की दबंंगई को देखते हैं। सभी बस स्टैंड के पास पुलिसकर्मी भी मौजूद रहते हैं, लेकिन कभी भी इन कंडक्टर्स पर कार्रवाई नहीं की जाती है। कभी-कभी पैसेंजर कंडक्टर की शिकायत पुलिस से करते हैं, लेकिन उनकी सुनी भी नहीं जाती है।

लाइसेंस नहीं लेने पर सजा

अगर किसी बस कंडक्टर के पास लाइसेंस नहीं है तो उस पर जुर्माने का प्रावधान भी है। मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 182 (2) के तहत तीन महीने की जेल और पांच हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। इसके साथ ही अच्छे चरित्र वाले लोगों को लाइसेंस देने का भी प्रावधान है। कंडक्टर को आईडी कार्ड भी देना होगा, अगर कोई पैसेंजर को कंडक्टर से परेशानी है तो वह शिकायत कर सकता है।