चंबल के वीरान पड़े बीहड़ों में चमक लाने के लिए बस्‍ती जिले में पैदा हुए 34 वर्षीय शाह आलम एक नई राह पर चल पड़े हैं। शाह आलम ने इन सुनसान बीहड़ों पर अकेले 2000 किमी साइकिल से सफर करने की ठानी और इसे 56 दिन में पूरा भी किया। तो आइए जानें शाह आलम ने क्‍यों शुरु की यह यात्रा और क्‍या है इसका मकसद....पढें शाह आलम से बातचीत के कुछ अंश...

56 दिनों में साइकिल से 2000 किमी का सफर
29 मई 2016 को गेंदालाल दीक्षित चौराहा, औरेया से शुरू हुई शाह आलम की यह साइकिल यात्रा 23 जुलाई 2016 को कानपुर के बाल भवन में जाकर समाप्त हुई। इस बीच शाह ने औरैया, जालौन, झाँसी, महोबा, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, धौलपुर, आगरा, मथुरा, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज जिलों का भ्रमण किया। तीन राज्यों को समेटे यह साइकिल यात्रा 56 दिन में समाप्त हुई। शाह ने कुल 2000 किमी का सफर तय किया।

फूलन देवी के घर भी पहुंचे
साइकिल यात्रा के दौरान शाह आलम जब जालौन पहुंचे तो वहां स्थित फूलन देवी के गांव भी गए। दो बार की सांसद फूलन देवी के पैतृक घर को देखकर शाह आलम काफी हैरान रह गए। घर में मिट्टी का चूल्हा और सिर्फ दो-चार गिने चुने बर्तन थे।
क्यों चलाई 2000 किमी साइकिल
शाह आलम डेढ़ दशक से क्रांति की ज्वाला जलाने वाले 'आज़ादी के योद्धाओं' की साझी विरासत से नई पीढ़ी को रूबरू करा रहे हैं। शाह आलम आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, लेकिन गुमनामी के अंधेरे में खो हो चुके पुरखा लड़ाकों को खोज-खोज कर अवाम के सामने लाने का काम कर रहे हैं। अब उन्होंने इसी तरह के एक और मिशन के लिए बीहड़ का रुख किया है। शाह आलम क्रांतिकारी दल 'मातृवेदी' से जुड़े हैं जिसे क्रांतिकारियों ने एक गुप्त संगठन के रूप में 1916 में बनाया था। इस संगठन का काम बीहड़ के इलाकों में सुधार लाना था। ऐसे में शाह की इस 2000 किमी यात्रा का भी यही मकसद है।
Report By : Abhishek Tiwari
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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari