आइनेक्ट डिबेट में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक सुर से किया यूनिफार्म सिविल कोड

ALLAHABAD: देश एक है, कानून भी एक है लेकिन तीन तलाक के मामले में लोगों के मत एक नहीं हैं। उन्होंने इस मामले में केंद्र सरकार के दखल का सीधा विरोध किया है। उनका कहना है कि शरीयत में बदलाव संभव नहीं है। मुस्लिम धर्म के लोग इस मामले में यूनिफार्म सिविल कोड की खिलाफत करते हैं। आई नेक्स्ट ने इस मुददे पर डिबेट कराई तो समुदाय के लोगों ने खुलकर अपनी बात रखी। उनका कहना था कि केंद्र सरकार तीन तलाक की आड़ में राजनीति कर रही है।

लॉ में दखलअंदाजी मंजूर नहीं

आई नेक्स्ट की डिबेट में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कहा कि सभी धर्मो की मान्यताएं और परंपरा अलग अलग है। ऐसे में उन्हें समान कानून से कैसे बांधा जा सकता है। देश का संविधान सभी को अपने धर्म के रीति रिवाजों के अनुसार जीने की इजाजत देता है। यूनिफार्म कोड का विरोध करते हुए शुजाउल हुदा ने कहा कि इस्लाम ही नहीं बल्कि दूसरे धर्म के लोग भी अपने पर्सनल लॉ में राजनीतिक दखलंदाजी स्वीकार नहीं करेंगे। मुसलमानों का पर्सनल ला कुरान और हदीस की रोशनी में है। ला में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप की इजाजत नहीं। सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है। भारत जैसे बहुलतावादी मुल्क में कोई कानून बनाने और उसे लागू करते समय संवेदनशीलता एवं सावधानी बरते जाने की जरूरत है, किसी भी कानून को एकतरफा ढंग से नहीं थोप सकते।

क्या कहता है मुस्लिम पर्सनल लॉ

मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक पति अपनी पत्‍‌नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है। अगर ये दोनों फिर से शादी करना चाहते हैं तो महिला को पहले किसी और पुरुष से निकाह करना होगा। उसके साथ शरीरिक संबंध बनाने होंगे फिर उससे तलाक लेने के बाद ही वो पहले पति से दुबारा निकाह कर सकती है। इस लॉ में महिलाओं को तलाक के बाद पति से किसी तहर के गुजारे भत्ते या संपत्ति पर अधिकार नहीं दिया गया है। बल्कि मेहर अदायगी का नियम है। तलाक लेने के बाद मुस्लिम पुरुष तुरंत शादी कर सकता है। लेकिन महिला को करीब चार महीने दस दिन तक इंतजार करना पड़ता है।

वर्जन

संविधान में सबको अपने धर्म और परंपराओं मानने की आज़ादी दी गई है। पर्सनल लॉ में विशेष छूट सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं, दूसरे समुदायों को भी मिली हुई है। फिर हमारे ही लॉ में बदलाव क्यों। हम इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं करते है। ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

अहमद अली, सभासद

यह हमारे शरीयत के खिलाफ है। मुस्लिम समुदाय के लोग इसे जरा भी स्वीकार नहीं करेंगे। सरकार द्वारा उठाया गया यह मुद्दा सरासर गलत है। जो महिलाए इसके पक्ष में हैं उनकी दिमागी सोच गलत है।

अबरार अहमद

हमारे लॉ में कयामत तक इसमें कोई भी बदलाव नहीं किया जा सकता है। अगर सरकार को कुछ करना ही है तो उसे हमारे समुदाय के लोगों के बारे में सोचने और कुछ करने की जरूरत है।

साहेब आलम

हमारे लॉ में बदलाव नहीं लिखा है। इस बात के बारे में सभी को अच्छी तरह से पता है। फिर केन्द्र सरकार इसमें क्यों बदलाव करना चाहती है। यह फालतू की राजनीति है। इसे मानने को हम बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।

मो नौशाद

कई सरकारें आयीं और चली गई गई किसी ने यूनिफार्म सिविल कोड में बदलाव की बात नहीं की, लेकिन वर्तमान सरकार इस पर राजनीति कर रही है। जबकि देश में कई अन्य समस्याएं हैं, जिस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।

इरशाद उल्ला

केन्द्र सरकार में बैठे जो नेता इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं, सबसे पहले तो उन्हें कुरान पढ़ने की जरूरत है। तब जाकर उनकी आंखें खुलेंगी। इस मुद्दे के विरोध में हम महिलाएं भी आवाज उठाएंगी।

रजिया सुल्तान

भारत देश में हर धर्म और जाति के लोग रहते हैं। सभी को अपने तरीके से जीने का अधिकार मिला है। फिर अचानक केन्द्र सरकार को क्या आन पड़ी कि उसे हमारे लॉ में बदलाव की जरुरत दिखी। हम सभी इसका खुलकर कड़ा विरोध करेंगे।

निसार अहमद

हम अपने शरीयत के खिलाफ कभी नहीं जा सकते है। जो कानून अभी तक चला आया है, वही कानून आगे भी चलेगा। सरकार के खिलाफ हम जाकर विरोध करेंगे। यह हमें बिल्कुल भी मंजूर नहीं है और न ही हम इसे में लागू होने देंगे।

शुजाउल हुदा

Posted By: Inextlive