1938 में बना मोतीमहल

1986 में कर दिया गया था बंद

33 साल से नहीं लग रही थीं फिल्में

-बंद पड़े मोतीमहल सिनेमा के जर्जर भवन का आधा हिस्सा गिरा

-मिडिल क्लास लोगों के एंटरटेनमेंट का था बड़ा सेंटर

PRAYAGRAJ: हीवेट रोड पर स्थित बरसों पुराने मोतीमहल सिनेमा हॉल का आधे से ज्यादा हिस्सा सोमवार की भोर धराशायी हो गया। इसके साथ ही शहर के सैकड़ों सिनेप्रेमियों की फिल्मी यादों का खजाना सोमवार की भोर में बिखर गया। मोतीमहल सिनेमाहॉल से शहर के पुराने सिनेप्रेमियों की कई यादें जुड़ी हैं। ऐसे में इसके अचानक यूं गिर जाने से इन सिनेप्रेमियों को तकलीफ भी हुई।

1938 में हुआ था निर्माण

1938 में कोलकाता के एक व्यापारी सेठ कमरियादास ने हिवेट रोड पर एक सिनेमाहाल का निर्माण करवाया। इस सिनेमाहॉल का नाम रखा गया पर्ल सिनेमा हॉल। सेठ कमरियादास ने कुछ साल बाद यह सिनेमाहॉल निरंजन लाल भार्गव को हैंडओवर कर दिया था। निरंजन लाल भार्गव ने पर्ल सिनेमा हाल का नाम बदल कर मोती महल कर दिया था। हालांकि बदतर हालात के चलते 1986 में मोती महल सिनेमा हॉल बंद कर दिया गया। मनोरंजन टैक्स नियम के अनुसार सिनेमा हाल की बिल्डिंग नहीं बदली जा सकती है। लेकिन भवन स्वामियों ने बिल्डिंग अंदर-अंदर गिरवा दिया, जिसका केस चल रहा है।

उस जमाने के चार शानदार में था शुमार

निरंजन लाला भार्गव ने शहर को चार सिनेमहॉल दिए। इसमें 'निरंजन सिनेमा' सबसे बेहतरीन था। बाकी अन्य 'विश्वंभर सिनेमा' उसके बगल में 'मोती महल सिनेमा' और चौक मीरगंज के ठीक सामने था रूपबानी सिनेमा। इन सभी का क्लास भी अलग-अलग था। निरंजन सिनेमा में संभ्रान्त और धनाढ्य लोगों की फैमिली जाती थी। यहां हर रविवार हॉलीवुड फिल्मों का भी प्रदर्शन होता था। विश्वंभर सिनेमा मिडिल क्लास के मनोरंजन का पिटारा था। वहीं 'मोती महल' और 'रूपबानी सिनेमा' हॉल दोयम दर्जे के थे।

निरंजन, मोती महल और रूपबानी तो अपनी यार थी। मित्रों और कुछ बडे़ भाइयों के साथ अक्सर सिनेमा देखने जाता था। 84 में जॉनी वॉकर की फिल्म छू-मंतर अंतिम बार मोती महल में देखी थी, जो सेकेंड रिलीज में हिट हुई थी।

-अभय अवस्थी

वरिष्ठ समाज सेवी

जब हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, उस समय मोती महल में अक्सर फिल्में देखने जाया करते थे। 1986 में अंतिम बार जो मूवी देखी थी उसका नाम था, 'जमाने को दिखाना है'। उसके बाद हमने यहां कोई फिल्म नहीं देखी।

-शिव विशाल गुप्ता

बचपन में बहुत फिल्में मोती महल सिनेमा हॉल में देखी हैं। पहले इसका नाम पर्ल सिनेमा हॉल हुआ करता था। बाद में इसको बदलकर मोतीमहल कर दिया गया था। नाम के ही मुताबिक यह हमारे लिए सिनेमा की यादों का मोती ही रहा है।

-विजय कांत पांडेय

अपने जीवन की पहली फिल्म मोती महल में ही देखी थी। वो जमाना बेहद सख्ती वाला था। उस समय किसी स्टूडेंट का सिनेमा हॉल जाना और फिल्में देखना इतना आसान नहीं था। फैमिली के लोग भी अलाउ नहीं करते थे।

-अमिय मिश्रा

मोती महल के सिनेमा हाल से अपने स्टूडेंट्स लाइफ की कई यादें जुड़ी हैं। 1983-84 का समय था, जब अग्रवाल कॉलेज में हम पढ़ते थे। दोस्तों के साथ जब भी मौका मिलता था, मॉर्निग शो देखने पहुंच जाते थे।

-अरुण मेहरोत्रा

Posted By: Inextlive