- रमसा ने भी तैयार किया स्कूलों के लिए जागरुकता अभियान

- स्कूलों में एटलस को बढ़ावा देने के लिए ली जाएगी टीचर्स की क्लास

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Meerut: सिटी के सत्तर प्रतिशत सरकारी स्कूलों में एटलस और ग्लोब नहीं हैं। एक समय ग्लोब पर ही बच्चों को सारे जहां की सैर करा दी जाती थी, लेकिन गुजरते जमाने के साथ-साथ स्कूलों से एटलस और ग्लोब दिखने ही बंद हो गए हैं। आधुनिकता के इस जमाने अब स्कूलों ने भी बच्चों को रट्टू तोता बनाना शुरू कर दिया है।

स्कूलों से ग्लोब गायब

रमसा के तहत सरकार ने यूपी के माध्यमिक स्कूलों की रिपोर्ट में यह पाया है कि सिटी के 70 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं, जिनमें न तो एटलस है और न ही ग्लोब हैं। अगर किसी स्कूल में एटलस और ग्लोब हैं भी तो उनसे पढ़ाई नहीं होती है। इस संबंध में स्कूलों में एक टेस्ट भी हुआ है। सूत्रों की मानें तो रमसा के इस टेस्ट की रिपोर्ट में भी पाया गया है कि यूपी लेवल पर म्0 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं, जिनमें आधे से ज्यादा बच्चों को एटलस और ग्लोबल की पूरी नॉलेज तक नहीं है।

स्टूडेंट्स बन जाते हैं रट्टू तोता

स्कूलों में बच्चों को बस रट्टू तोता बनाया जा रहा है। स्कूलों में हुए यूपी लेवल की भूगोल को जानो प्रतियोगिता में क्लास सिक्स से नाइन तक के स्टूडेंट्स के खराब रिजल्ट से भी यह बड़ा सच सामने आया। बच्चों स्कूलों में केवल रटवाया जाता है न कि उन्हें मैप की पूरी नॉलेज दी जाती है। प्रतियोगिता में म्0 प्रतिशत बच्चों को यह ही नही पता था कि कौन सा सागर किस क्षेत्र में और किस दिशा है।

मूल्यांकन में भी सामने आया सच

यूपी बोर्ड मूल्यांकन की कॉपियों की चेकिंग में भी लगातार भूगोल में मैप में नकल ही सामने आ रही है। इससे पता चलता है कि स्टूडेंट्स को स्कूल में मैप के बारे में पढ़ाया ही नही जाता है। निरीक्षकों के अनुसार उन कॉपियों को देखने से ही लग रहा है कि उनमें किसी टीचर ने ब्लैक बोर्ड पर नकल मैप बनाकर नकल करवाई है।

रमसा लाएगा स्कूलों में जागरुकता

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में आने वाले जुलाई मंथ से पहले स्कूलों में एक अभियान चलाने की हिदायत दी गई है। शासन के अनुसार स्कूलों में टीचर्स की ट्रेनिंग कर उनकों एटलस और ग्लोब पर पढ़ाने के मनोरंजक तरीके बताए जाएंगे, ताकि बच्चों में एटलस और ग्लोब के प्रति जागरुक हो सकें। इसके अलावा शासन ने रमसा को हिदायत दी है कि बीच-बीच में समय-समय पर निरीक्षण कर यह देखा जाए कि किस स्कूल में एटलस और ग्लोब का यूज नहीं हो रहा है। अगर किसी स्कूल में यूज नहीं हो रहा तो स्कूलों को ध्यान इस ओर भी करवाया जाए। ताकि बच्चों में एटलस व ग्लोब का महत्व पता चल सके।

शिक्षा विभाग का हमेशा से ही प्रयास रहता है कि वह हर बच्चे को बेहतर से बेहतर ज्ञान दे। एजुकेशन लेवल को बेहतर करने के लिए हर संभव प्रयास शिक्षा विभाग की ओर से किया जा रहा है।

एके मिश्रा, डीआईओएस

हमारे समय में होती थी एटलस से पढ़ाई

हमारे समय में एटलस और ग्लोब पर मास्टर जी अच्छे से पढ़ाया करते थे। बच्चों में भी उस समय क्रेज हुआ करता था, लेकिन आज न तो स्कूलों में ग्लोब है और बच्चों में रुचि नहीं है।

आरती जोशी, टीचर

बच्चों को हाईफाई एजुकेशन की तरफ तो ले जा रहे हैं, लेकिन हम यह भूल रहे हैं कि जो हमने सीखा है हमें बच्चों को वो भी सिखाना है। आगे दौड़ पीछे छोड़ वाले हालात हैं, जो कि ठीक नहीं है।

चांदनी, गृहणी

हमारे समय में स्कूलों में एटलस, ग्लोब और चार्ट के माध्यम से भूगोल की जानकारी दी जाती थी, जिससे बच्चों को समझना भी आसान हुआ करता था और रटने की आदत भी नहीं हुआ करती थी।

रुचि, टीचर

आजकल आधुनिकता का युग आ गया है, जिसके चलते यह हालात है कि बच्चों को केवल रटने की ही आदत हो गई है। रट्टू तोता बनना आजकल आदत में शुमार हो गया है।

सुरभि, गृहणी

एटलस क्या होता है नहीं जानते

एटलस का नाम तो बहुत सुना है, लेकिन हमारे स्कूल में ऐसी कोई बुक नहीं लगाई है। हां टीचर सिलेबस में दिए हुए एक दो मैप बनाना सिखा दिया करती है।

नेहा, स्टूडेंट

भूगोल की बुक में दिए हुए मैप को देखकर टीचर कुछ समझाते हैं, लेकिन इतनी अच्छी जानकारी नहीं मिल पाती, जितनी मिलनी चाहिए।

सोनम, स्टूडेंट

भूगोल सब्जेक्ट तो पढ़ने में भी बोर सा लगता है। टीचर पढ़ाती है तो स्कूल में ही नींद आने लगती है। इसलिए भूगोल को तो रटना ही पड़ता है।

श्रेया, स्टूडेंट

Posted By: Inextlive