पूरी तरह से चेंज हो गई बैंक कर्मचारियों की रुटीन, सुबह से लेकर आधी रात तक कर रहे काम

पब्लिक की दिक्कतों के आगे खुद का दर्द भूले, लंच टाइम भी तभी जब प्रेशर कम हो

vineet.tiwari@inext.co.in

ALLAHABAD: प्रधानमंत्री के एक झटके ने बैंक कर्मचारियों की रुटीन बदल दी है। चार दिन हो गए, न पत्‍‌नी के साथ वक्त बिता पाए न बच्चों को समय दे पाए। रात एक बज जाते हैं घर पहुंचते-पहुंचते और सुबह-सुबह निकलना होता है। इससे बैंक कर्मचारियों का परिवार प्रभावित है लेकिन उनके चेहरे पर शिकन नहीं है। अपने काम में लगे हुए हैं। लंच टाइम पब्लिक के प्रेशर से तय होता है और डिनर की टाइमिंट इतनी ऑड हो गई है कि मैनेज करना मुश्किल है। आई नेक्स्ट ने बदली व्यवस्था से बुरी तरह से प्रभावित बैंक कर्मचारियों से बात की तो कुछ इसी तरह की बातें सामने आई। सबका बस एक ही उद्देश्य है इस मुश्किल की घड़ी में सरकार गलत साबित न हो और पब्लिक को भी यह महसूस न हो कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है।

अचानक जिंदा हुए डेड खाते

बैंक कर्मचारियों ने बताया कि आम दिनों में आम तौर पर काउंटर पर दिनभर में अधिकतम सौ लोग आते थे। लेकिन, पिछले चार दिनों से यह संख्या पांच सौ तक पहुंच जा रही है। सभी को कैश चाहिए। टाइम किसी के पास नहीं है। सबके जरूरी काम अटके हुए हैं। ऐसे में उन्हें एंटरटेन करना ही हमारा पहला काम है। कैश खत्म होने या नोट पुराने होने पर कोई नाराज होता है तो उसे समझाना भी होता है। सबसे बड़ा अनुभव ये है कि अब उन खातों में भी लोग हजारों-लाखों जमा करा रहे हैं जो काफी समय से जीरो बैलेंस पर चल रहे थे।

परिवार वाले दे रहे साथ

बैंक कर्मचारियों में एक बड़ी संख्या महिलाओं की है। इनमें से कईयों के छोटे बच्चे भी हैं, जिन्हें समय देना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है। रोजाना 12 से 14 घंटे सर्विस देनी पड़ रही है। अलसुबह काउंटर खुल जाता है और देर रात तक बैंकिंग चलती है। बीच में केवल लंच के लिए कुछ मिनट मिलते हैं तो उस पर भी पब्लिक शोर मचाने लगती है। ऐसे में बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी पति और परिवार के अन्य सदस्य निभा रहे हैं।

अधिकारी बढ़ा रहे मनोबल

शहर का कोई भी बैंक ऐसा नहीं है जहां चार से छह घंटे की एक्स्ट्रा वर्किंग नहीं हो रही है। सभी काम रोककर केवल मनी एक्सचेंज और डिपाजिट किया जा रहा है। इसमें सभी इम्प्लाइज को लगा दिया गया है। कई बैंकों में सीनियर सिटीजन और महिलाओं के लिए अलग से काउंटर बनाए गए हैं। खुद अधिकारी भी आम जनता की मुश्किलों को दूर करने में लगे हैं। कर्मचारियों का मोटीवेशन उनका पहला काम है।

कैश की क्राइसिस है। सभी के अपने जरूरी काम हैं। ऐसे में पब्लिक डीलिंग बड़ा टास्क है। कर्मचारियों का मोटीवेशन किया जा रहा है। पब्लिक का भी साथ मिल रहा है। वह भी हमारी मजबूरी समझ रही है। जितना हो सकता है पब्लिक की मदद की जा रही है।

नारायण ताताचारी,

एजीएम, इलाहाबाद बैंक

सीनियर सिटीजन और महिलाओं के काउंटर अलग कर दिए गए हैं। सभी कर्मचारियों को कैश के काम में लगा दिया गया है। गवर्नमेंट के इंस्ट्रक्शन का ख्याल करते हुए पब्लिक की पूरी हेल्प की जा रही है। जिनके घरों में शादी है, उन्हें ड्राफ्ट, आरटीजीएस नेफ्ट और ई बैंकिंग के जरिए भुगतान की सलाह दी जा रही है।

यूएन त्रिपाठी,

डिप्टी ब्रांच मैनेजर, एसबीआई

मेरा आठ माह का बच्चा है। नौ बजे सुबह बैंक आ जाती हूं। घर वापस लौटने का इस समय कोई टाइम फिक्स नहीं है। कभी रात नौ बजे साथी लोग छोटा बच्चा होने के कारण छोड़ देते हैं तो लगता है कि साथियों पर बोझ डालकर जा रही हूं। बाकी लोग रात के बारह बजे तक बैंक में रह रहे हैं। इससे दौरान बैंकिंग के नए एक्सपीरियंस हो रहे हैं।

दीप्ति सिंह, क्लर्क, इलाहाबाद बैंक

काम कई गुना अधिक हो गया है। सुबह साढ़े नौ से रात बारह बजे तक कुर्सी से हिलने का टाइम नहीं मिलता। घरवालों को इसकी जानकारी है। उनका पूरा सहयोग मिल रहा है। पब्लिक का साथ भी भरपूर साथ मिल रहा है।

मोनिका गुप्ता, बैंक क्लर्क

Posted By: Inextlive