- कैंसर से उबरकर बहुत से लोग जी रहे सामान्य जिंदगी

- इलाज के दौरान हुई तकलीफ को मात दे हराया कैंसर को

LUCKNOW:

कैंसर का नाम आते ही लगता है कि जिंदगी खत्म हो गई है लेकिन बीमारी कोई भी हो अगर आप में जड़ने का जोश और जज्बा है तो आप कैंसर को भी मात दे सकते हैं। व‌र्ल्ड कैंसर डे पर पेश है कुछ ऐसे ही लोगों की कहानी जिन्होंने मुश्किल हालात में कैंसर से जंग लड़ते हुये उसे मात दी और अब दूसरों को प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं।

परिवार को संभालना है

पिताजी नाई का काम करते हैं। 2007 में पता चला कि मुझे ब्लड कैंसर है। घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। इलाज के दौरान पूरा शरीर आधा होने के साथ बाल तक चले गये थे। दर्द इतना ज्यादा होता था कि सहा नहीं जाता था। ऐसे समय में परिवार ने पूरा सहयोग दिया। आज पूरी तरह से स्वस्थ हूं। आईटीआई करने के बाद अब ग्रेजुएशन भी कर रहा हूं। ईश्वर वेलफेयर चाइल्ड की मदद से उनके यहां काम करके पढ़ाई के साथ घर को भी संभाल रहा हूं। यहीं कहूंगा कि कैंसर से डरने की नहीं मुकाबला करने की जरूरत है।

विशाल कुमार

डॉक्टर बनने का सपना है

डॉ। वेद ने बताया कि नई तकनीक और जागरूकता से कैंसर के पेशेंट की संख्या में कमी आई है। पेट के कैंसर के मरीज 1990 के बाद घटकर 11 लाख हो गए हैं। ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, आंत का कैंसर और पेट व लिवर के कैंसर के मरीजों की संख्या में भी कमी आई है। हालांकि अभी इसके व्यापक स्तर पर प्रसार-प्रसार करने की जरूरत है। इसके साथ ही आवश्यक है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो, कैंसर पेशेंट को बेहतर हॉस्पिटल आदि की सुविधाएं मिलें।

लखनऊ बन रहा कैंसर इलाज का हब

कैंसर का इलाज के लिए लोग पहले दिल्ली या मुंबई के लिए ही भागते थे। लेकिन, विश्वस्तरीय कैंसर का इलाज लोगों को राजधानी में ही मिल रहा है। पीजीआई, लोहिया संस्थान व केजीएमयू में कैंसर का इलाज मरीजों को मिल रहा है। इसके साथ ही एशिया का सबसे बड़ा कैंसर इंस्टीट्यूट भी राजधानी में खुलने जा रहा है। जिससे लोगों को बड़े शहरों में भागने की जरूरत नहीं होगी। लोहिया संस्थान में जहां हाईटेक लैब में स्क्रीनिंग होती है। जिसकी मदद से प्रोस्टेट, बे्रस्ट व लंग कैंसर की पहचान शुरूआत में ही की जा सकती है। केजीएमयू में आईएमआरटी, कनर्फमल रेडियो थेरेपी, टारगेटेड थेरेपी और मॉलिक्यूलर एंटी बॉडिज सहित कई आधुनिक सुविधाएं मिलती हैं।

मुझे 2006 में रेटिनोब्लास्ट बीमारी की वजह से मेरी एक आंख की रौशनी चली गई थी। केजीएमयू में आकर इलाज कराया। इस दौरान लगता था कि आगे सही से देख सकूंगी कि नहीं। इलाज के दौरान दर्द सहन नहीं होता था तो रोने लगती थी। तब डॉक्टर्स और परिवार ने हिम्मत दी। लेकिन अब पूरी तरह से ठीक हो चुकी हूं। खराब हो चुकी आंख की जगह आर्टिफिशियल आंख लगी है। अभी 11वीं की पढ़ाई कर रही हूं और मेरा सपना बड़े होकर डॉक्टर बनने का है। ताकि मैं भी दूसरों की मदद कर सकूं। मैं तो बस यही कहूंगी, इलाज से कैंसर को हरा सकते हैं।

सलोनी वर्मा

हिम्मत नहीं हारनी चाहिए

घर वालों को जब पता चला कि मुझे कैंसर है, तो हर कोई यही सोच रहा था कि अब मेरा क्या होगा? क्योंकि घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। इलाज के दौरान दर्द को समझ नहीं पाती थी। थेरेपी के लिए जाने से मना करने की जिद्द करती थी। ऐसे में मां ने बहुत साथ दिया, क्योंकि वो एक संस्थान में ही काम करने के साथ मेरी हिम्मत बढ़ाती थी। जिसकी वजह से इलाज में आर्थिक सहायता काफी मिली। अब मैं पूरी तरह से ठीक हूं। यहीं कहूंगी कि हिम्मत नहीं हारें और अपना इलाज पूरी तरह से करवाएं।

मानसी रावत

पढ़ाई के साथ पिता की मदद करता हूं

बचपन में ही पता चला कि मुझे कैंसर है। गांव में परिवार की ऐसी स्थिति नहीं थी कि मेरा इलाज करवा सकें। केजीएमयू आया तो कई अपनी तरह को देखा। तब समझ में नहीं आता था कि हो क्या रहा है। जब बाल उतर गये तो लगा पता नहीं क्या हो गया है। डाक्टर यहीं कहते है सब ठीक है, बाल वापस आ जाएंगे। दर्द के दौरान मां ने बहुत साथ दिया। आज मैं पूरी तरह से ठीक हूं। अपनी पढ़ाई के साथ घर पर बनी दुकान में पिता की मदद भी करता हूं।

राम सिंह

कैंसर ट्रीटमेंट का हब बन रही राजधानी

कैंसर का नाम सुनते ही लोगों के मन में डर बैठ जाता है लेकिन कैंसर के इलाज से लोग पूरी तरह से ठीक भी हो रहे हैं। 70 प्रतिशत कैंसर 50 साल की उम्र के बाद होता है। 6 प्रतिशत कैंसर 70 साल के बाद होता है। आंकड़ों के अनुसार हर पांचवी महिला और छठे पुरुष को पूरे जीवन में एक बार कैंसर होता है। ऐसे में जागरूकता और समय से इसका इलाज बेहद जरूरी है।

फेफड़े और ब्रेस्ट का कैंसर अधिक

केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग के हेड डॉ। वेद प्रकाश ने बताया कि फेफड़े और ब्रेस्ट का कैंसर सर्वाधिक होता है। करीब प्रतिवर्ष 21-21 लाख लोग इससे पीडि़त होते हैं। जो करीब 11.6 प्रतिशत है। इसके साथ आंत का कैंसर लगभग 18 लाख, प्रोस्टेट कैंसर 13 लाख और पेट का कैंसर लगभग 10 लाख लोगों में होता है। वहीं 70 साल से ऊपर वालों में 46 प्रतिशत की मौत कैंसर से होती है। धूम्रपान से होने वाला कैंसर से 70 लाख लोगों की प्रतिवर्ष मौत होती है। कैंसर का हर पांचवां शिकार धूम्रपान के कारण होता है।

आ रहा है आंकड़ों में सुधार

Posted By: Inextlive