क्या आपको पता है कि इंसानों की तरह व्हेलों के कान में भी मैल वैक्स बनता है. इंसान तो अपने कान साफ़ करते हैं. मगर व्हेलें तो ऐसा कभी नहीं करतीं. बरसों बरस उनके कानों में वैक्स जमा होता रहता है.

उनके मरने के बाद कान में जमा ये वैक्स उनकी ज़िंदगी की कहानी सुनाने के लिए बच जाता है. इसमें कई तरह के केमिकल होते हैं.
इंसानों और व्हेलों की तरह बहुत से स्तनपायी जानवरों के कानों में वैक्स बनता है. दूसरे जानवरों की तरह इंसानों के कानों का वैक्स कोई ख़ास चीज़ नहीं. इसमें ऐसा कुछ नहीं होता कि किसी इंसान के बारे में कुछ पता चल सके. और बताए भी कैसे? ज़्यादातर इंसान अक्सर अपने कानों की सफ़ाई करते रहते हैं.
फिर भी इस बेकार चीज़ से जुड़ी तमाम दिलचस्प बाते हैं. चलिए, आपको कान से निकलने वाले वैक्स या मैल के विषय में कुछ बातें बताते हैं.
इसका वैज्ञानिक नाम है सेरुमेन. ये हमारे कान की नली के बाहरी हिस्से में बनता है. वहां पर हज़ारों ग्रंथियां होती हैं. इनसे निकलने वाला तेल हमारे कानों को तैलीय रखता है. वहां पर कुछ पसीने की ग्रंथियां भी होती हैं. इसमें कुछ बाल, मरी हुई चमड़ी और बदन से निकलने वाली कुछ और चीज़ों को मिलाएं तो तैयार होता है कान का वैक्स.
हम पहले ये समझते थे कि कान से निकलने वाले वैक्स का मक़सद कानों को नरम रखना है. शायद यही वजह है कि होंठों पर लगाए जाने वाले बाम इसी वैक्स से बनाए जाते हैं ताकि होंठों को नरम रख सकें.

हालांकि दोनों ही तरह के वैक्स एक जैसे रसायनों से बने थे. वैसे हम लोगों में से ज़्यादातर को मालूम ही नहीं कि कान के वैक्स की दो वैरायटी होती है.
अब आपके कान में सूखा वैक्स होता है या गीला, ये आपके ख़ानदान पर निर्भर करता है. ये तय करने का काम हमारा एक जीन करता है. इसे ABCC11 कहते हैं.
अगर आपके जीन में A के बजाय G है तो आपके कान का वैक्स सूखा होगा. इसकी बू भी अलग होगी. वैक्स का गीला या सूखा होना, आदि-मानव के प्रवास का क़िस्सा भी बताता है.
अफ्रीकी या कॉकेसियन नस्ल के इंसानों के कान से गीला वैक्स निकलता है. वहीं पूर्वी एशियाई नस्ल के इंसानों में सूखा वैक्स निकलता है. वहीं अमरीकी और प्रशांत महासागर के द्वीपों में रहने वालों में ये अनुपात बराबरी का होता है.
कान के वैक्स से जुड़ा जो सबसे अहम सवाल है वो ये कि इसे निकाला जाए तो कैसे?
इंसान को ये सवाल ईसा के बाद की पहली सदी यानी क़रीब दो हज़ार सालों से परेशान किए हुए है. रोमन ऑलस कॉर्नेलियस ने अपनी किताब डे मेडिसिना में बाक़ायदा कई तरीक़े बताए हैं जिनसे कानों के वैक्स को साफ़ किया जा सकता है.
कॉर्नेलियस ने लिखा है कि अगर वैक्स सूखा है तो तेल, शहद या सोडा डालकर उसे पहले फुलाएं, फिर पानी की मदद से निकालें. अगर कान का वैक्स गीला है तो कान में सोडा मिला सिरका डालकर उससे कान साफ करें.

अक्सर लोग नहाने के बाद रुई से कान साफ़ करने लगते है, जबकि डॉक्टर इसके लिए मना करते हैं.
ईयरबड से तेज़-तेज़ कान खुजलाने से बहुत नुक़सान भी उठाना पड़ सकता है. इससे वैक्स बाहर आने के बजाय और अंदर चला जाता है. कई बार रुई ही कानों में फंस जाती है. इसलिए ऐसा कभी मत कीजिए. ईयरबड से कान मत खुजलाइए.
कई लोग एक और बेतुका तरीक़ा आज़माने की सलाह देते हैं, और वो ये कि मोमबत्ती को कान के क़रीब ले जाकर जलाइए.
तर्क ये दिया जाता है कि मोमबत्ती की आंच से कान के अंदर का वैक्स पिघलकर बाहर आ जाता है. ये एकदम वाहियात बात है.
कान में पिघला वैक्स पड़ा तो आपको बहुत तकलीफ़ होगी. सुनने की क्षमता पर भी असर पड़ने का डर है.
बेहतर है कि कान के वैक्स की सफ़ाई आप किसी स्पेशलिस्ट से कराएं.

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari