-मासूमों की सेहत को लेकर पटना में नहीं है व्यवस्था

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क्कन्ञ्जहृन्: बीमारी का कहर मासूमों पर टूट रहा है, लेकिन सिस्टम वेंटीलेटर पर है। सरकारी संस्थानों में व्यवस्था नाकाफी है और प्राइवेट अस्पतालों का बिल चुकाना आसान नहीं होता है। पटना में दम तोड़ती चिकित्सा व्यवस्था मासूमों और उनके परिजनों पर भार पड़ रही है। इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान से लेकर पटना मेडिकल कॉलेज तक बच्चा वार्ड हमेशा फुल रहता है। उपचार से लेकर संसाधन तक सवालों में रहता है लेकिन व्यवस्था में सुधार नहीं हो पा रहा है। बरसात के मौसम के साथ ही मरीजों की संख्या में तेज से बढ़ोत्तरी हुई है। जब भी ऐसा सीजन आता है मरीजों की भीड़ अस्पतालों की पोल खोल देती है।

व्यवस्था की मॉनीटरिंग नहीं

पटना में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर व्यवस्था तो बनी है लेकिन मॉनीटरिंग नहीं होने से इलाज को लेकर सरकारी अस्पतालों में काफी समस्या आती है। कई बार सिस्टम पर सवाल खड़ा हुआ है लेकिन इसमें सुधार को लेकर सरकारी पहल नहीं हुई। पटना के मेडिकल कॉलेज में गुड्डू बाबा ने इसे लेकर काफी लड़ाई लड़ी और मासूमों के इलाज को लेकर स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों की नाक में दम कर दिया। इसका परिणाम रहा कि पटना मेडिकल कॉलेज में संसाधन बढ़ाया गया लेकिन कुछ दिन बाद ही सिस्टम फिर वेंटीलेटर पर चला गया।

शासन तक होती है शिकायत

पटना मेडिकल कॉलेज और आईजीआईएमएस के साथ कई सरकारी संस्थानों की शिकायत शासन स्तर से की गई है। इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। पटना के स्वयं सेवी कार्यकर्ता और समाजवादी पार्टी के सक्रिय शिशिर कुमार राय ने इस मामले की शिकायत प्रदेश और केंद्र सरकार से किया है। उन्होंने कहा है कि पटना में मासूमों का इलाज काफी मुश्किल है। यहां जापानी इंसेफेलाइटिस से लेकर अन्य जानलेवा बीमारी हर साल मासूमों की जान पर खतरा बनकर आती है लेकिन इलाज को लेकर तब सरकार जागती है जब आफत आ जाती है। सरकार पहले से कोई तैयारी नहीं करती है। आम आदम सरकार अस्पतालों के भरोसे होता है और सरकारी अस्पताल इलाज पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं।

बीमारियों का सीजन, मासूमों पर अटैक

बरसात को बीमारियों का सीजन माना जाता है और इस सीजन में बच्चों पर सबसे अधिक अटैक होता है। अधिकतर बच्चों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। बच्चों को लेकर गार्जियन परेशान हो जाते हैं। इस सीजन में कई ऐसी बीमारियां होती हैं जो जान जोखिम में डाल देती हैं।

इलाज को लेकर डॉक्टर्स पूरी तरह से एक्टिव रहते हैं। संस्थान में संसाधन और मेडिकल टीम में कहीं से कोई कमी नहीं है। पेशेंट्स को कहीं से लापरवाही नहीं होत है।

-डॉ मनीष मंडल, एमएस आईजीआईएमएस

Posted By: Inextlive