-बिहारशरीफ के घोसरावां में अवस्थित हैं मां आशापुरी मंदिर

क्चढ्ढ॥न्क्त्रस्॥न्क्त्रढ्ढस्नस्न/क्कन्ञ्जहृन्: शक्ति की पूजा में नारी शक्ति पर रोक, ये कैसी आस्था है। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा लेकिन यह बिल्कुल सत्य है। बिहारशरीफ के गिरियक प्रखंड के घोसरावां में मां आशापुरी मंदिर में नवरात्र के दौरान महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकती। पौराणिक प्रथा के अनुसार इस मंदिर का नाम आशापुरी रखा गया। क्योंकि यहां बौद्ध काल में 18 सौ बौद्ध भिक्षु पहुंकर मन्नत मांगते थे। उस समय से ऐसी मान्यता है कि यहां जो कोई भक्त नवरात्र के समच् सच्चे मन से मां आशापुरी की भक्ति करते हैं। उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। ग्रामीणों की मानें तो नवरात्र में महिलाओं के प्रवेश पर रोक आदि काल से होते रहा है। नवरात्र में यहां दूर-दराज से श्रद्धालु माता के दरवार में सिद्धि करने पहुंचते हैं। यही वजह है कि इस दौरान महिलाओं के प्रवेश पर रोक रहती है।

राजा घोष ने बनवाया था मंदिर

पूर्वजों और ग्रामीणों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण राजा घोष ने करवाया था। इसलिए इस गांव का नाम घोसरावां पड़ा। बुर्जुग बताते हैं कि इस इलाके में आशापुरी मां स्वयं प्रकट हुई थी। जिस स्थान पर मां प्रकट हुई उसी स्थान पर मंदिर बनवाया गया है। नवरात्र के समय घोसरावां मंदिर में बिहार के अलावा कोलकाता, ओडीशा, मध्यप्रदेश, असम, दिल्ली और झारखंड जैसे प्रदेश से यहां आकर लोग पूजा-पाठ करते हैं।

नवरात्र के समय मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है। क्योंकि नवरात्र में तांत्रिकों का जमाबड़ा लगा रहता है। यहां आकर लोग सिद्धि प्राप्त करते थे उसी समय से पूरे नवरात्र में यहां तांत्रिक पूजा यानी तंत्रियाण पूजा होती है। तंत्रियाण पूजा में महिलाओं पर पूर्ण रूप से प्रवेश निषेद्य माना गया है। यह प्रथा आज से नहीं बल्कि आदि-अनादि काल से ही चली आ रही है।

-जयनंदन उपाध्याय, पुजारी, घोसरावां, मंदिर

Posted By: Inextlive