हाल ही में पाकिस्तानी सिक्युरिटी फोर्सेज ने भारत को लेकर एक बड़ा दावा किया है। उसका कहना है कि उसने बलूचिस्तान से एक रॉ एजेंट को अरेस्ट किया है। हालांकि भूषण यादव नाम का यह शख्‍स नेवी में आफीसर पद से प्री-मैच्योर रिटायरमेंट ले चुका है। जिससे उसके बाद से सरकार का उससे कोई मतलब नही है। यह सिर्फ भूषण के साथ ही नहीं है। ज्‍यादातर जासूसों के साथ यही होता है। खुद का देश ही पहचानने से मना कर देता है। ऐसे में आइए जाने कुछ इन्‍हीं रास्‍तों से गुजरे भारत मां के वीर सपूत जासू रविन्‍द्र कौशिक के बारे में ...


पहचानने से इंकारदुनिया में ज्यादातर देश दूसरे देशों में अपने जासूस भेजकर उन देशों की खुफिया जानकारी हासिल करते हैं। जिनमें कुछ देश तो ऐसे हैं जो अपने जासूसों को पकड़े जाने पर स्वीकार लेते हैं और कुछ उन जासूसों का अपने देश का नागिरक बताने से भी साफ इंकार कर देते हैं। यहां तक उनके सारे सबूत भी देश से मिटा देते हैं। ऐसे में भारत के रविन्द्र कौशिक के साथ भी यही हुआ। कभी पाकिस्तानी में भर्ती होने वाला रविन्द्र मेजर की पोस्ट तक पहुंचा, लेकिन बाद में जब पाक में उसका खुलासा हुआ तो भारत ने अपने देश का नागरिक मानने से इंकार कर दिया। यहां तक उसकी लाश भी नही ली। रविन्द्र कौशिक का जन्म गंगानगर, राजस्थान में 1952 में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। रॉ में भर्ती हुआ
रविन्द्र को बचपन से ही अभिनय का बेंइतहा शौक था।  इसके बाद एक नेशनल ड्रामा प्रेजेंटेशन में कार्यक्रम के दौरान भारत की खुफिया एजेंसी रॉ की इन पर नजर पड़ी। इसके बाद इनकी प्रतिभा के बल पर रॉ ने इन्हें 23 साल की उम्र में अपने यहां शामिल कर लिया। दिल्ली में विशेष प्रशिक्षण के बाद इन्हें पाकिस्तान भेजा गया। इस दौरान उर्दू ज्ञान, इस्लाम के धार्मिक ग्रंथों, व पाकिस्तान के बारे में गहल जानकारी इन्हें दी गई थी। इस दौरान भारत से इनके सारे सुबूत मिटा दिए गए।रविन्द्र का नाम यहां पाकिस्तान में  नबी अहमद शकीर हो गया। कराची विश्वविद्यालय से एलएलबी किया और पाकिस्तानी आर्मी में शामिल हो गए। उसके बाद पाक में ही स्थानीय लड़की अमानत से निकाह कर लिया। इन्हें एक संतान भी हुई। 1979  से 1983 के बीच उन्होंने भारतीय सुरक्षा फौजों को पाकिस्तान से जुड़ी कई जानकारियां दी जो देश हित में थी। ब्लैक टाइगर नाम


इस दौरान तत्तकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ब्लैक टाइगर के नाम दिया था। इस दौरान रॉ ने इनायत मसियाह नाम के एक व्यक्ित को नबी अहमद की मदद के लिए भेजा, लेकिन मामला बिगड़ गया। इनायत पाकिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी की पकड़ में आ गया। कड़ी यातनाओं व पूछतांछ के बाद उसने रविन्द्र का नाम लिया। जिसके बाद वह पुलिस की हिरासत में ले लिया गया। यहां पर उसे मौत की सजा सुनाई गई। हालांकि बाद में वह आजीवन कारावास में बदल दी गई। 16 साल की सजा पूरी कर एक दिन उनकी सांसे वहीं पाक जेल में थम गई। आज भी रविन्द्र का नाम भारत के सबसे अच्छे इंटेलीजेंस ऑफिसर के रूप में लिया जाता है।

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Posted By: Shweta Mishra