प्रोग्रेसिव सिनेमा इसको कहते हैं। एक बेहतरीन कांस्पेट के साथ अभिषेक कपूर आये हैं। यह फिल्म प्रेम कहानी है। रिश्तों की कहानी है। लेकिन सबसे अहम यह समाज के एक ऐसे वर्ग की बात बहुत ही सहजता से कहती है जिसका हम मखौल उड़ाते हैं। हम कैसा सोचते हैं कैसे इंसान हैं इससे ज्यादा हमेशा इस बात को तवज्जो देते हैं कि ये इंसान है कौन वह किस जाति लिंग धर्म का है। जैसे धर्म के आधार पर भेदभाव शर्मनाक है। लिंग के आधार पर भी भेदभाव उठना ही गलत है। अभिषेक कपूर ने एक ऐसे ही इंसान की कहानी दिखाई है जो कुदरती रूप से भले ही लड़के के शरीर में आया हो लेकिन वह अंदर से लड़कियों की तरह है और इसलिए वह लड़की बनता है। इससे उसके परिवार वालों के नजर में वह गिरता है समाज उसपर छींटाकशी करती है। लेकिन वह लड़का से लड़की बन कर खुद को आजाद और आत्म निर्भर समझता है। फिल्ममें आयुष्मान खुराना हैं लेकिन इस फिल्म के लिए तालियां वाणी कपूर के लिए बजनी चाहिए। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : चंडीगढ़ करे आशिकी
कलाकार : आयुष्मान खुराना, वाणी कपूर, अंजन श्रीवास्तव और अन्य
निर्देशक : अभिषेक कपूर
रेटिंग : साढ़े तीन

क्या है कहानी
मनु उर्फ मानवी (वाणी कपूर) अंबाला की रहने वाली है, कुदरती रूप से वह लड़का होता है, लेकिन ऑपरेशन कर उसने अपना लिंग तब्दील कराया है। अब वह चंडीगढ़ आ गई है। वहां वह जूम्बा टीचर है। उसी जिम में मन्नू उर्फ मोटा लाला ( आयुष्मान खुराना ) है, वह बॉडी बिल्डर है। दोनों के बीच प्यार होता है और दोनों एक दूसरे के प्रेम में डूब जाते हैं. लेकिन एक दिन मानवी अपनी हकीकत बयां करती है और मन्नू का दिमाग घूम जाता है। फिर क्या उनकी प्रेम कहानी इस शारीरिक बदलाव के कारण बरकरार रहती है। यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

क्या है अच्छा
फिल्म में बिना भाषणबाजी किये, बिना फूहड़पन किये अपनी बात रखी है। समाज का एक नजरिया ऐसे वर्ग के साथ क्या होता है और किस तरह एक ऐसा इंसान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता है, उसे दिखाया गया है। फिल्म में ग्राफिक के माध्यम से काफी फैक्ट्स को दर्शाया गया है।फिल्म के संवाद बेहद सहज हैं और इमोशनल करते हैं। विषय बेहद अच्छा है। प्रेम कहानी में इमोशन है। एक ही समाज में हम किस तरह ऐसे
लोगों को अलग-थलग और छक्का, किन्नर और न जाने कैसे कैसे नामों से बुलाने लगते हैं, इस बात को भी सहजता से दर्शाया है।

क्या है बुरा
कहानी गहराई में और अधिक जाती और भी पहलुओं को दर्शाती तो शायद और अच्छा होता।

अभिनय
वाणी कपूर ने अपने किरदार को बखूबी जिया है।अच्छा है कि अपनी पिछली फिल्मों की तरह इस फिल्म में वह सिर्फ ग्लैमर कोशेंट के रूप में नहीं, बल्कि सशक्त अभिनय करती हुईं नजर आई हैं। आयुष्मान खुराना ने अपने कम्फर्ट जोन को तोड़ा है। फिल्म में सहयोगी कलाकारों ने भी बेहद शिद्द्त से काम किया है।

वर्डिक्ट
प्रोग्रेसिव सिनेमा के लिए ऐसे विषयों पर फिल्म बननी चाहिए और लोगों को जरूर देखनी भी चाहिए।

Review by: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari