चीन के एक ऐसे क्षेत्र में हवाई सुरक्षा ज़ोन बनाना जिसपर जापान भी अपना अधिकार बताता है चीन की ओर से एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे संभावित ग़लतफ़हमी और क्षेत्रीय तनाव का ख़तरा बढ़ गया है.


आईआईएसएस (इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज) के एलेक्जेंडर नील का ऐसा मानना है.चीन का एकतरफा हवाई सुरक्षा पहचान क्षेत्र (एडीआईज़ेड) इस बात को दर्शाता है कि अब राष्ट्रपति शी जिंगपिंग ने चीन की 'अखंडता' की रक्षा करने की ठान ली है.एक साल पहले चीन के शीर्ष नेता और सैन्य प्रमुख बने जिंगपिंग का ये निर्णय सैन्य ताकत बढ़ाने का अब तक का सबसे ठोस कदम है.मगर जापान के मौजूदा हवाई सुरक्षा क्षेत्र के इस अतिक्रमण की आलोचना को चीन के नेता खारिज़ कर देंगे.चीन-जापान विवाद में फंसे टापूसंबंधित द्वीपसमूह में पांच निर्जन द्वीप और तीन रीफ शामिल हैं.जापान, चीन और ताईवान इस द्वीपसमूह पर दावा करते आए हैं. इन पर जापान का नियंत्रण है. ये ओकिनावा प्रांत का हिस्सा रहे हैं.इनमें से तीन द्वीपों के मालिक जापानी कारोबारी कुनिओकि कुरिहारा हैं. मगर ये सितंबर 2012 में बेच दी गई.


ये द्वीप जापान और चीन के बीच साल 2010 से ही कूटनीतिक विवाद का केंद्र रहें.चीन में आमतौर पर सुरक्षा खर्चों को लेकर पारदर्शिता नहीं बरती जाती है. इसलिए विश्लेषक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कूटनीतिक अध्ययन की मदद लेते हैं.इसीलिए एडीआईज़ेड का बनाया जाना चीन के सैन्य नेतृत्व की ओर से बहुत महत्वपूर्ण संकेत है.ताईवान विवाद

एडीआईज़ेड का बनना साल 1996 में चीन की ओर से ताईवान की मिसाइल नाकाबंदी की याद दिलाता है. तब चीन के पूर्व राष्ट्रपति जिआंग ज़ेमिन ने दक्षिणी और उत्तरी ताईवान में सिलसिलेवार मिसाइल परीक्षणों के दौरान हवाई और समुद्री प्रतिरोध क्षेत्र बनाने का एकतरफा आदेश दिया था.एडीआईज़ेड का बनना इस बात को पुख्ता करता है कि चीन की मुख्य चिंता दिओयू-सेनकाकू टापुओं को लेकर है. चीन इस द्वीपसमूह को उतना ही महत्व देता है जितना साऊथ चाइना सी यानी दक्षिणी चीनी सागर और ताईवान.इस साल अप्रैल में चीनी रक्षा श्वेत पत्र जारी किया गया था. उसमें पीएलए की इस ताज़ा कार्रवाई के स्पष्ट संकेत मौजूद हैं.इस दस्तावेज़ के मुताबिक जापान नए द्वीप विवाद के संदर्भ में 'मुसीबते' पैदा करता हुआ और अमरीका को एशिया में सैन्य धुरी को क्षेत्रीय तनाव पैदा करने का कारण बताया गया है. हाल की कुछ हलचलों में चीन के पहले स्टेल्थ ड्रोन (छिप कर उड़ान भरने वाला चालकरहित विमान) का परीक्षण भी शामिल है. मौजूदा साल की शुरुआत में जे-31 स्टेल्थ लड़ाकू विमान ने पहली उड़ान भरी थी. ड्रोन परीक्षण इसके तुरंत बाद किया गया.

ये सारी हथियार प्रणाली अभी अपने विकास की प्रक्रिया में है. मगर यह पिछले एक दशक में चीनी सेना को सफलतापूर्वक आधुनिक बनाए जाने का संकेत है.जहां एक ओर चीन अभी वैश्विक सैन्य ताकत बनने से काफी दूर है, अमरीकी रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार चीन विकट सैन्य क्षमताओं को जुटाने में सक्षम रहा है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ खास इलाकों में, पीएलए की सैन्य क्षमता अमरीका को भी चुनौती दे सकती है.एडीआईज़ेड अमरीकी सेना की ओर से चीन की हवाई और समुद्री सीमाओं में खुफिया जानकारी और नियमित निगरानी के लिए भरी जा रही उड़ानों के विरुद्ध गुस्से का प्रतीक बन गया है.इससे जुड़ा एक प्रकरण वो था जिसमें एक चीनी लड़ाकू विमान अमरीकी निगरानी विमान से 2001 में दक्षिणी चीन सागर के इलाके में टकरा गया और चीनी पायलेट की मौत हो गई. अमरीकी विमान खुफिया जानकारी जुटाने के एक अभियान पर था.चीनी नेताओं का ये तर्क होगा कि ऐसी घटनाओं से बचने के लिए ही विशेष हवाई क्षेत्र का निर्माण किया गया है. मगर हवाई पाबंदी और उससे जुड़े चीनी और जापानी सैन्य ताकतों की अनुभवहीनता के कारण आपसी तनाव और ग़लतफहमी के बढ़ने की संभावना तेज़ हो गई है.
एडीआईज़ेड क्षेत्र की जापान में अमरीका के 7वें बेड़े से निकटता और अमरीकी सेना की ओर से की जा रही नियमित कार्रवाई का अर्थ ये है कि जापानी सेना की ही तरह अमरीकी रक्षा मंत्रालय चीन के एडीआईज़ेड की शर्तों को मानने का विरोध करेगा.अमरीका इस इलाके में भविष्य में अपने सैन्य अभ्यास बड़ा सकता है और पीएलए को पीछे हटने को मजबूर कर सकता है? इससे शी जिंगपिंग के इरादों की दृढ़ता की भी परीक्षा होगी.

Posted By: Subhesh Sharma