चार राज्यों के विधान सभा चुनाव का पहला निष्कर्ष है कि कांग्रेस का पराभव शुरू हो गया है.
By: Subhesh Sharma
Updated Date: Mon, 09 Dec 2013 10:24 AM (IST)
पार्टी यदि इन परिणामों को लोकसभा चुनाव के लिए ओपिनियन पोल नहीं मानेगी तो यह उसकी बड़ी गलती होगी.चुनाव का दूसरा बड़ा निष्कर्ष है ‘आप’ के रूप में नए किस्म की राजनीति का उदय हो रहा है, जो अब देश के शहरों और गाँवों तक जाएगा. इसका पायलट प्रोजेक्ट दिल्ली में तैयार हो गया है.यह भी कि देश का मध्य वर्ग, प्रोफेशनल युवा और स्त्रियाँ ज्यादा सक्रियता के साथ राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं. राजनीतिक लिहाज से ये परिणाम भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के आत्म विश्वास को बढ़ाने वाले साबित होंगे.
अशोक गहलोत और शीला दीक्षित ने सीधे-सीधे नहीं कहा, पर प्रकारांतर से कहा कि यह केंद्र-विरोधी परिणाम है. सोनिया गांधी का यह कहना आंशिक रूप से ही सही है कि लोकसभा चुनाव और विधान सभा चुनाव के मसले अलग होते हैं. सिद्धांत में अलग होते भी होंगे, पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की रणनीति भी केंद्रीय उपलब्धियों के सहारे प्रदेशों को जीतने की ही तो थी.
अस्पष्ट संदेश
राहुल गांधी ने कहा कि दोनों प्रमुख पार्टियाँ कांग्रेस और भाजपा परंपरागत तरीके से राजनीति के बारे में सोचती हैं. मैं समझता हूँ हमें जनता के सशक्तिकरण के तरीके से समझने की जरूरत है. इस विषय पर मैं अपनी पार्टी के अंदर कहता रहा हूँ. हम ‘आप’ की सफलता से सीखेंगे. इस नई पार्टी ने बहुत सारे लोगों को जोड़ा जो काम परंपरागत पार्टियों ने नहीं किया.इसे सेमी फाइनल मानें या न मानें, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये परिणाम जनता के इरादों को व्यक्त करते हैं. कांग्रेस ढलान पर है, और अब उसके रथ की गति को रोकना मुश्किल होगा.सन 2009 में मिले बेहतर जनादेश का सकारात्मक इस्तेमाल करने में कांग्रेस विफल रही. वह अपने परंपरागत तरीके से वोट बैंक की राजनीति कर रही है, जबकि देश की वस्तुगत स्थितियां बदल रहीं है. दिल्ली के परिणामों के सरसरी तौर पर विश्लेषण से लगता है कि मुसलमान वोटरों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट डाला. बावजूद इसके केवल एक वोट बैंक के सहारे ने उसे कहीं का रहने नहीं दिया.इन चुनाव परिणामों से कांग्रेस के कार्यकर्ता के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और भाजपा के कार्यकर्ता का उत्साह बढ़ेगा. अब भाजपा को स्थानीय स्तर पर सहयोगी दलों को खोजने में आसानी होगी. नरेंद्र मोदी को अपनी पार्टी के भीतर वैधानिकता मिलेगी और राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े होंगे. कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है.
छत्तीसगढ़ में उम्मीदें भी धराशायीगांधी टोपी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के प्रतिरोध का प्रतीक थी. स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय राजनीति में यह टोपी राजनेताओं के सिर पर लंबे समय तक रही. कांग्रेस की सफेद, समाजवादी पार्टियों की लाल और हरी, जनसंघ/भाजपा की केसरिया.अस्सी के दशक में जब राजनीतिक नेताओं ने धोती-कुर्ता छोड़कर सफारी सूट अपनाया तो यह टोपी छूट गई. सन 2010 में अचानक अन्ना हजारे नाम का नेता राष्ट्रीय मंच पर प्रकट हुआ. उसके सिर पर यह सफेद टोपी थी. इस टोपी ने ‘मैं हूँ अन्ना’ के नारे के साथ आंदोलनकारियों के सिर पर जगह बना ली.जब आम आदमी पार्टी बनी तो उसने इस टोपी को अपनाया. सिर्फ नारा बदल गया. अब सिर पर लिखा है ‘मैं हूँ आम आदमी.’ लंबे समय तक ‘आम आदमी’ या ‘मैंगो मैन’ मज़ाक का विषय बना रहा. अब यह मज़ाक नहीं है. टोपी पहने मैंगो मैन राजनीतिक बदलाव का प्रतीक बनकर सामने आया है. आने वाले कुछ हफ्तों में देश के बड़े शहरों में इन टोपियों की खपत अचानक बढ़ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा. चार राज्यों के चुनाव परिणाम का सबसे परिणाम होगा शहर-शहर ‘आप’ की शाखाएं.
व्यवस्था के अंतर्विरोध"‘आप’ आंदोलन के पीछे ‘अरब-स्प्रिंग’ से लेकर ‘ऑक्यूपेशन वॉल स्ट्रीट’ तक के तार जुड़े हैं. भारतीय नाराज़गी के वैश्विक संदर्भ हैं या नहीं, अभी कहना मुश्किल है. पर व्यवस्था के अंतर्विरोध इसने उजागर किए हैं."‘आप’ आंदोलन के पीछे ‘अरब-स्प्रिंग’ से लेकर ‘ऑक्यूपेशन वॉल स्ट्रीट’ तक के तार जुड़े हैं. भारतीय नाराज़गी के वैश्विक संदर्भ हैं या नहीं, अभी कहना मुश्किल है. पर व्यवस्था के अंतर्विरोध इसने उजागर किए हैं.मोटे तौर पर कांग्रेस, भाजपा और ‘आप’ तीनों के लिए ये परिणाम कुछ न कुछ सोचने के लिए छोड़ गए हैं. क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए भी यह विचार का समय है. यदि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे पारंपरिक राजनीति के गढ़ों में जाति और संप्रदाय से मुक्त किसी नई ताकत का जन्म होगा तो उसका स्वरूप कैसा होगा? पर उससे पहले सवाल है कि क्या ये इलाके इस किस्म की राजनीति के लिए तैयार हैं?देखना यह भी होगा कि ‘आप’ का नेतृत्व अपने आंदोलनकारी खोल से बाहर कैसे निकलेगा. यह पहला मौका नहीं है, जब किसी आंदोलन से निकली पार्टी को राजनीतिक सफलता मिली है. ‘आप’ के नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के राजनीतिक प्रशिक्षण और परिपक्वता की जरूरत भी होगी.
Posted By: Subhesh Sharma