समानांतर चार दशक के अन्तर्गत दूसरे दिन इलाहाबाद संग्रहालय में 'मैं और मेरा रंगकर्म' पर हुआ संवाद

ALLAHABAD: बचपन से ही वे बातें जो मैंने अपने आसपास देखी हैं वे ही मेरे रंगकर्म के जेहन में आज तक जीवित है। शुरू से ही घुमक्कड़ी रहा हूं यायावरी जीवन में जो देखा सुना व समझा व ही मेरे रंगकर्म में स्वत: आते चले गए। यह बातें पद्मश्री बंशी कौल ने शनिवार को समानांतर चार दशक के अन्तर्गत नाट्य संस्था समानांतर व इलाहाबाद संग्रहालय के संयुक्त तत्वाधान में संग्रहालय के सभागार में आयोजित 'मैं और मेरा रंगकर्म' पर हुए संवाद में मुख्य अतिथि के तौर पर कही।

श्री कौल ने कहा कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रशिक्षण ने मुझे उतना प्रभावित नहीं किया जितना घुमक्कड़ी जीवन में मैंने आसपास जो देखा। वह ज्यादा मेरे रंगमंच में काम आया। अध्यक्षता करते हुए प्रो। अली अहमद फातमी ने कहा कि किताबें हमें ज्ञान देती हैं जबकि जीवन का तर्जुबा अंदर तक हमें झकझोर कर रख देता है। संग्रहालय के प्रभारी निदेशक डॉ। सुनील गुप्ता ने अतिथि का स्वागत किया।

संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक का रहा। इस मौके पर डॉ। राजेश मिश्रा, प्रो। अनीता गोपेश, डॉ। अनुपम आनंद, अभिलाष नारायण, प्रवीण शेखर, मलय मिश्रा, अतुल यदुवंशी, आनंद मालवीया आदि रंगकर्मी मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive