वैसे दुनिया के सबसे गहरे होल यानी गड्ढों के बारे में सुना होगा आपने। ये वो गड्ढे हैं जिनकी गहराई में उतरने के बारे में आप कभी सोच भी नहीं सकते। ये इतने खतरनाक हैं कि इनको देखकर और इनकी गहराई जानकर ही आपके पसीने छूट जाएंगे। फिर ये सोचना तो दूर की बात है कि आप इनकी गर्त में जाकर मालूम करेंगे कि इसकी तली में आखिर क्‍या है। इनमें से कुछ गड्ढे प्रकृति के दिए हुए हैं और कुछ इंसानों के खुद के बनाए हैं। ऐसा ही एक गड्ढा है कोल सुपरडीप बोरहोल। क्‍यों बना ये दुनिया का सबसे गहरा गड्ढा और इस गड्ढे की तली में क्‍या मिला वैज्ञानिकों को चौंकाने वाला आइए जानें।


वैज्ञानिकों ने शुरू किया खोदना 1970 में सोवियत के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की बाहर सतह (पपड़ी) के बारे में जानना चाहा। इसकी खोज के लिए चंद वैज्ञानिकों ने मिलकर रूस में एक गहरा होल (छेद) करने की सोची। ऐसा होल जिसकी गहराई आखिर में इन वैज्ञानिकों को पृथ्वी की पपड़ी का रहस्य बता दे। इसको लेकर 1970 में ही इन वैज्ञानिकों ने मिलकर गड्ढा खोदना शुरू किया। बताते चलें कि ये पूरा काम उसी योजना के अंतर्गत था जिसे 1966 में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने प्रोजेक्ट मोहोल के नाम से शुरू करने का मन बनाया था। किसी कारण से इन वैज्ञानिकों ने इस योजना को रिजेक्ट कर दिया था। पढ़ें इसे भी : टेनिस का खिलाड़ी ये बंदर, शॉट ऐसे कि टिकने नहीं देता किसी को कोर्ट के अंदर, देखें वीडियोअमेरिकी वैज्ञानिकों को दी चुनौती
वहीं 1970 में रूस के वैज्ञानिकों ने अमेरिकी वैज्ञानिकों को चुनौती देने के लिए इस योजना पर काम करने का मन बनाया। 1970 में रूस की सरजमीं पर इस गड्ढे को खोदने का काम शुरू किया गया। इसे नाम दिया गया कोला सुपरडीप बोरहोल का। 24 साल बीत गए इसे खोदते-खोदते, लेकिन पृथ्वी की बाहरी सतह के नाम पर वैज्ञानिकों के हाथ कुछ नहीं लगा। फाइनली 1994 में इस बोरहोल का काम बंद कर दिया गया। वैज्ञानिकों ने इस बात को स्वीकार किया कि इतना गहरा होल बनाना कोई आसान काम नहीं है। ये बेहद मुश्किल है। अब फिलहाल इस होल को ऊपर से बंद कर दिया गया है। पढ़ें इसे भी : महारानी की बग्घी में सवारी करना चाहते हैं अमेरिकी प्रेसिडेंट ट्रंपआखिर मिला क्या इतनी गहराई में अब सवाल ये उठता है कि इतने साल बीत गए जिस होल को बनाने में आखिर उसकी सतह पर वैज्ञानिकों को मिला क्या। वैसे ये जानना बेहद रोमांचक होगा। इसको लेकर वैज्ञानिकों ने बताया कि इस होल की तली में उन्होंने तीन खास चीजें पाईं हैं। सबसे पहले तो ढेर सारा पानी है। इस पानी के बारे में इनका कहना है कि क्योंकि यहां पत्थर के रूप में मौजूद खनिज पदार्थ नीचे स्थित ऑक्सीजन और हाइड्रोजन अणुओं को दबाकर पानी निकाल देते हैं। ये वही पानी है। इस बात को इसलिए भी पुख्ता कहा जा सकता है क्योंकि पानी में एचटूओ (हाईड्रोजन और ऑक्सीजन) मौजूद होता है। पढ़ें इसे भी : पोस्ट ऑफिस में जमीन पर नोट बिछाकर गिनने वाले इस भिखारी की फोटो हुई वायरलये तो 0.2% गहराई भी नहीं थी


दूसरा, यहां 6700 मीटर की गहराई में प्लैंक्टन फॉसिल्स (एक तरह के जीवाश्म, जो आसानी से नहीं पाए जाते) भी पाए गए हैं। तीसरा, यहां का तापमान बेहद गर्म है। ये करीब 350 डिग्री फॉरेनहाइट तक होता है। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने ये राज भी खोला कि जहां उन्होंने ये गड्ढा पृथ्वी की सतह तक पहुंचने के उद्देश्य से किया था। वहीं इतने साल इतनी गहराई खोदने के बाद भी वह पृथ्वी की गहराई के सिर्फ 0.2% पर ही पहुंच सके थे। अब जरा ये सोचिए कि और कितनी गहराई चाहिए थी पृथ्वी की सतह पर पहुंचने के लिए।International News inextlive from World News Desk

Posted By: Ruchi D Sharma