42 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा अधिकतम तापमान

न्यूनतम भी 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर, शाम को आई आंधी ने दी थोड़ी राहत

पसीने से तर-बतर फिर भी रोजेदारों के जोश में कमी नहीं

तपते सूरज ने पहले ही दिन रोजेदारों की कड़ी परीक्षा ली। दिन में 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान और रात में 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहे पारे ने पहले दिन रोजेदारों के लिए कड़ी मुश्किल खड़ी की। इसके बाद भी उनके जोश में कोई कमी नहीं थी। उन्होंने रोजा भी रखा। पाचों वक्त नमाज में शामिल हुए और फिर पूरे दिन रुटीन का काम निबटाया। अगल बात है कि पहले दिन दोपहर में मार्केट में सन्नाटे जैसी स्थिति रही। पुराने शहर चौक, कोतवाली, शाहगंज, नखास कोहना, अहमदगंज, खुल्दाबाद, रोशनबाग, लोकनाथ, खलीफामंडी, जानसेनगंज और करेली एरिया में रोज़ेदारों के लिए दुकानें सजी रहीं। शाम को आंधी आने के बाद रोजा खोलने के वक्त मौसम थोड़ा नम हो गया और लोग खरीदारी के लिए निकले।

बढ़ गई महिलाओं की जिम्मेदारी

रोजा महिलाएं भी उतनी ही शिद्दत से रखती हैं जितना पुरुष। उनके लिए भी यह अनिवार्य है। रोजे के चलते उन पर जिम्मेदारी बढ़ गई है। पहले ही दिन उन्हें अपना रुटीन चेंज करना पड़ा फिर भी उनके जोश और उत्साह में कोई कमी नहीं थी। शहरी सुबह 3:30 के आसपास होने से महिलाओं को जल्दी उठना और रोजा शुरू करने से पहले कुछ इंतजाम करना और शाम को इफ्तार का समय सात बजे के आसपास होने से शाम से ही तैयारियों में जुटना। करीब 12 घंटे तक रोजा रखकर इतने काम निबटाना रोजेदारों के लिए किसी बड़ी इम्तेहान से कम नहीं है। फिर भी रोजदार पूरी शिद्दत से इस परीक्षा के लिए तैयार दिखे। काम पर रोजा रखकर निकली महिलाओं को प्यास बुझाने की तलब तो है पर अल्लाह को राज़ी करने का जोश उससे ज्यादा दिखा।

टाइमिंग हो गया चेंज

रमजान के चलते रोजमर्रा के कामों का समय भी बदल गया है। महिलाएं सुबह 2:30 बजे उठकर सेहरी की तैयारी कर सभी घर वालों के साथ मिलकर खुशी से खाने-पीने के बाद अल्लाह की इबादत में लग गयी। रोजमर्रा के कामों के साथ ही इफ्तारी की तैयारी शुरू हो गई। घर में बच्चों से लेकर बुढ़ो की इफ्तारी की अपनी फरमाइशें थी। किसी को फुलोरी तो किसी को छोले कटलेट और गुलगुले खाने थे।

पहले रोजे ने ही हाल बेहाल किया है। अभी तो पूरा महीना है पर अल्लाह सब्र देने वाला है। घर के जरूरी काम है तो निकलना पडे़गा ही। घर जाकर बाकी जरूरी काम भी करने है।

यास्मीन खान

माह-ए-रमजान का पहला रोजा रखकर अच्छा लगा रहा है। एक सुकून है कि रोज़ा है। अल्लाह साल मे एक बार इम्तेहान लेता है कैसे ना दें हम।

समरीन

रोजा रखकर माशा अल्लाह मजा आ रहा है। घूप की वजह से थोड़ी दिक्कत है पर रोजा रखने की खुशी ज्यादा बड़ी है। रोजे की रौनक अलग ही होती है।

फौजिया

पहले रोजे की इतनी खुशी है। इतना जोश है की हमारे जोश के आगे घूप की तपिश फीकी पड गई।

कुलसुम फतीमा

सुबह तो इतनी खास दिक्कत नहीं हुई। शाम में हाल बेहाल है। इफ्तारी फिर रात का खाना सब काम बड़ा मुश्किल हो गया है। रोजा खुलने के बाद हिम्मत नहीं होती काम करने की।

नरगिस खान

रमजान के शुरुआती एक हफ्ते में सन्नाटा रहता है। दिन भर रोजा तो शाम को तराबी में चले जाते हैं। रोज़ा भी रखा है। अल्लाह सबर देता है।

खुर्शीद व्यवसायी चौक

गर्मी में रोजे के वजह से बाजार बंद है। रोजे तो हर मौसम में पडे हैं। पर इस बार अधिक गर्मी के कारण बाजार में काम बंद है।

जुनैद अहमद, रोशनबाग

Posted By: Inextlive