महिंदा राजपक्षे ने अपनी हार का ठीकरा भारत और अमेरिका के सिर फोड़ा
कुछ ऐसा कहते हैं राजपक्षे
हॉन्गकॉन्ग आधारित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में राजपक्षे ने कहा, 'यह बेहद खुली बात है कि अमेरिका, नॉर्वे, यूरोप और रॉ (भारत का रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) मेरे खिलाफ खुले तौर पर काम कर रहे थे.' इससे पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली श्रीलंका यात्रा से पहले उन्होंने कहा था कि भारत व अमेरिका दोनों ही देशों ने उन्हें हराने के लिए अपने दूतावासों का इस्तेमाल किया है. वह भी चोरी छिपे नहीं बेहद खुले ढंग से और डंके की चोट पर.
विरोधी पार्टियों को एक करने का लगाया आरोप
बता दें कि आठ जनवरी के चुनाव में महिंदा राजपक्षे को हार का सामना करना पड़ा था. उसके तुरंत बाद कोलंबो से आई एक मीडिया रिपोर्ट में यह कहा गया था कि राजपक्षे के खिलाफ सभी विरोधी पार्टियों को एक करने में रॉ के एक अधिकारी की प्रमुख भूमिका थी. इन विरोधी पार्टियों में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी और युनाईटेड नेशनल पार्टी प्रमुख रहीं थीं.
देश छोड़ने को लेकर क्या है नियम
वहीं एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार एक अनाम अधिकारी को देश छोड़ने तक के लिए भी कहा गया था. फिलहाल भारत की ओर से इस रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था. इतना ही नहीं यह भी कहा गया था कि श्रीलंका में कार्यरत सभी भारतीय अधिकारियों का कार्यकाल तीन साल का है. पिछले साल जिन भी अधिकारियों का श्रीलंका से तबादला किया गया, उस दौरान उनकी वहां सेवा-काल समाप्त हो चुका.
क्या बोले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता
इस बारे में जानकारी देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि यह एक सामान्य ट्रांसफर है. हालांकि उस समय महिंदा राजपक्षे ने कहा था कि उनके पास सभी तथ्यों की जानकारी उपलब्ध नहीं है. अपने इंटरव्यू में राजपक्षे ने यह भी कहा था कि उन्होंने भारतीयों से पूछा था कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं. यह एक खुला रहस्य है कि आप क्या कर रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने भारत को विश्वास दिलाया था कि वह श्रीलंका की जमीन को किसी मित्र देश के खिलाफ इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देंगे. इस दौरान उन्होंने उनके कार्यकाल में चीन की ओर से विकसित की जाने वाली आधारभूत संरचनाओं का भी साफ तौर पर बचाव किया.
पनडुब्बियों को लेकर भारत की चिंताओं पर बोले राजपक्षे
बीते साल दो चीनी पनडुब्बियों के श्रीलंका में लंगर डालने से भारत की बढ़ी चिंताओं के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब भी कोई चीनी पनडुब्बी विश्व के इस हिस्से में आती है तो वह हमेशा भारत को सूचित इसको लेकर करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जैसे चीन के राष्ट्रपति यहां पर थे, तो उस समय उनकी पनडुब्बियां यहां थी. ऐसे में यह पता करना चाहिए कि कितनी भारतीय पनडुब्बियां उनकी जल सीमा में आई थीं. यह उस समय की बात है जब भारत के प्रधानमंत्री 2008 में दक्षेस सम्मेलन में भाग लेने आए थे.