एप्‍पल के को-फाउंडर स्‍टीव जॉब्‍स। 24 फरवरी 1955 को कैलिफोर्निया के सेन फ्रांसिस्‍को में पैदा हुए स्‍टीव जॉब्‍स अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अपने इनोवेशंस को लेकर आने वाले समय में भी वह लोगों के दिलों पर राज करेंगे। कैंसर की बीमारी से पीड़ित होने के कारण 5 अक्‍टूबर 2011 को उन्‍हें दुनिया को अलविदा कहना पड़ा। 12 जून 2005 को जॉब्‍स स्‍टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रोग्राम में शामिल हुए। इस प्रोग्राम में उन्‍होंने अपने जीवन का सबसे प्रसिद्ध भाषण दिया। उनका ये भाषण था 'Stay Hunger Stay Foolish'। अपनी इस स्‍पीच के दौरान उन्‍होंने अपने जीवन से जुड़ी तीन कहानियां सुनाईं। आइए बात करते हैं स्‍टीव जॉब्‍स की जिंदगी से जुड़ी उन तीन कहानियों के बारे में जो बदल सकती है आपकी भी जिंदगी।


1 . ऐसी है पहली कहानी
स्पीच के दौरान अपनी पहली कहानी को लेकर उन्होंने बताया कि उनको कॉलेज से निकाल दिया गया था। अब सवाल ये उठता है कि ऐसा हुआ क्यों। उन्होंने कहा कि इसको बताने से पहले वह अपनी जन्म की कहानी सुनाएंगे। उन्होंने बताया कि उनकी मां एक कॉलेज की छात्रा थीं। वह अविवाहित थीं। उन्होंने सोचा कि वो उनको किसी ऐसे कपल को गोद दे दें, जो ग्रेजुएट हो। ऐसे में उनके जन्म से पहले ही ये निश्चित हो गया था कि उन्हें एक वकील और उनकी पत्नी को गोद दिया जाएगा। इसके बावजूद ये भी था कि उनको बेटा नहीं, बेटी चाहिए थी। सबकुछ फाइनल होने के बाद जब उनकी मां को ये मालूम पड़ा कि गोद लेने वाले पेरेंट्स ग्रेजुएट नहीं हैं, तो उन्होंने उनको देने से मना कर दिया। उसके कुछ दिन बाद उनकी मां उस समय उनको उन्हें गोद देने के लिए मान गईं जब उन पेरेंट्स ने उनसे वादा किया कि वे इस बच्चे को कॉलेज जरूर भेजेंगे। 17 साल की उम्र में उनको कॉलेज में एडमिशन दिलाया गया। कॉलेज में पढ़ाई करते समय उनको इस बात का एहसास हुआ कि उनके माता-पिता की सारी कमाई उनकी पढ़ाई में खर्च हो रही है। आखिरकार उन्होंने कॉलेज ड्रॉप करने का फैसला कर लिया। अब उन्होंने सोचा कि वह कुछ काम करेंगे, लेकिन उस समय उनका ये फैसला शायद सही नहीं था। इन सबके बाद आज जब वह पीछे मुड़कर देखते हैं तो उनको लगता है कि उनका वह फैसला बिल्कुल सही था। उन्होंने आगे बताया कि उस समय उनके पास रहने के लिए कोई कमरा तक नहीं था। ऐसे में उन्हें अपने दोस्त के कमरे में जमीन पर ही सोना पड़ता था। छोटी-मोटी कमाई के लिए वह कोक की बॉटल्स बेचते थे। उसके बाद आखिर में रात को खाने के लिए सात मील चलकर कृष्ण मंदिर जाते थे। उन्होंने बताया कि उस समय रीड कॉलेज कैलीग्राफी के लिए दुनिया में मशहूर था। पूरे कैम्पस में हाथ से बने हुए बहुत ही खूबसूरत पोस्टर्स लगे थे। उन्होंने सोचा कि क्यों न वह भी कैलीग्राफी की पढ़ाई कर लें। ये फैसला करने के बाद उन्होंने शेरीफ और सैन शेरीफ टाइपफेस सीखे (शेरिफ टाइपफेस में शब्दों के नीचे लाइन डाली जाती है)। इसके बाद उन्होंने इसी टाइपफेस से अलग-अलग शब्दों को जोड़कर टाइपोग्राफी को तैयार किया। इसमें डॉट्स होते हैं। दस साल बाद उन्होंने पहला Macintosh computer डिजायन किया। यह उनका पहला कम्प्यूटर डिजायन था। इसके बारे में सोचने के बाद उन्होंने कहा कि अगर वह कॉलेज से नहीं निकाले जाते और उन्होंने कैलीग्राफी नहीं सीखी होती तो वह इसे नहीं बना पाते। 3 . तीसरी प्रेरणादायक कहानी


उन्होंने बताया कि जब वह 17 साल के थे, तब उन्होंने एक कोटेशन पढ़ा था। वह कुछ ऐसा था 'आप हर दिन ये सोचकर जियो कि आज आखिरी दिन है। ऐसा करने से एक दिन ऐसा आएगा, जब आखिरी दिन भी आएगा।' इस कोटेशन ने उनको बहुत प्रभावित किया। बीते 33 सालों से वह हर रोज सुबह शीशे में अपना चेहरा देखते हैं और यही सोचते हैं कि अगर आज उनका आखिरी दिन है, तो उन्हें वो करना चाहिए जो वह चाहते हैं। कई दिनों तक उन्हें अपने सवाल का जवाब नहीं मिला। वह जल्दी मर जाएंगे, यह सोचकर उन्हें जीवन में और ज्यादा काम करने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने बताया कि कुछ ही साल पहले ही उनको कैंसर का पता चला। डॉक्टर ने उनको बताया कि अब वह सिर्फ तीन से छह महीने तक ही जीवित रहेंगे। उन्होंने उनको सलाह दी कि वह अपने परिवार वालों और ऑफिस वालों को इसके बारे में बता दें। इसके बाद उन्होंने अपना इलाज करवाया। उनकी सर्जरी हुई। अब वह बिल्कुल ठीक हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने काफी करीब से मौत को देखा। कोई भी मरना नहीं चाहता। इसके बावजूद मौत एक ऐसी सच्चाई है, जिसका सामना हर किसी को एकदिन करना है।Interesting Newsinextlive fromInteresting News Desk

Posted By: Ruchi D Sharma