1964 से 1969 के दौरान बांग्‍लादेश से भारत आने वाले जनजातियों को नागरिकता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार व अरुणांचल प्रदेश सरकार को साफ निर्देश दिए हैं। इस क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इन जनजातियों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

ऐसा है आदेश
जस्िटस अनिल आर दवे और जस्िटस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने अपने फैसले में ये बात कही है कि चकमा व हाजोंग आदिवासी कप्ताई बांध का निर्माण होने उस क्षेत्र से अलग हो गए थे। बताते चलें कि ये क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार के फैसले के अनुरूप पुनर्वास की इजाजत दी गई थी।
औपचारिक रूप से प्रदान की जाए नागिरकता
औपचारिक रूप से नागिरकता प्रदान किए जाने का मामला लंबित होने के दौरान उनके साथ अब किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट का कहना है कि चकमा आदिवासियों को यहां की नागरिकता पाने का पूर्ण अधिकार है। इतना ही नहीं न्यायिक फैसलों में भी इस बात का संज्ञान गहराई के साथ लिया गया है। उनके लिए इनर लाइन परमिट लेने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि वो अरुणांचल प्रदेश में आकर बसे हैं।
समिति की याचिका पर आदेश हुआ जारी
कोर्ट में चकमा आदिवासियों के नागरिकता के अधिकारों के लिए समिति की याचिका पर इस तरह का आदेश जारी कर दिया। कुल मिलाकर ये समिति चाहती थी कि 1964-65 के दौरान भारत आने व अरुणांचल प्रदेश में बसने वाले चकमा व हजोंग आदिवासियों को नागरिकता प्रदान की जाए।

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Posted By: Ruchi D Sharma