ALLAHABAD : 2002 में दोनों सात फेरों के बंधन में बंधे थे. तब दोनों के हाथ खाली थी. 2004 में बच्चा होने के एक साल बाद दोनों ने तय किया कि वे साथ-साथ काम्पिटिशन की तैयारी करेंगे. दोनों का साथ किस्मत भी देने को तैयार थी. सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा करने वाले इस जोड़े को सफलता और असफलता भी साथ-साथ ही मिली.


एक साथ शुरू की तैयारी
गोविंदपुर की अर्चना और म्योराबाद के अखिलेश द्विवेदी की शादी परिवारवालों की मंशा के अनुसार 2002 में हुई थी। सात फेरों के बंधन में बंधते वक्त दोनो ने एक दूसरे के साथ चलने की जो कसमें खाई उसे बखूबी निभाया भी। इत्तेफाक ही सही, लेकिन सच यही है कि शादी के बाद वे दोनो ने एक साथ सफलता और असफलता का रास्ता साथ तय किया। शादी के तकरीबन तीन साल बाद 2005 में दोनो ने एक साथ सिविल सर्विस के लिए प्रिपरेशन शुरू की। दोनों ने अपना सब्जेक्ट भी एक ही रखा। डिफेंड और साइकोलॉजी। लगभग साल भर की तैयारी के बाद 2006 में दोनों ने एक साथ लोअर सब आर्डिनेट एग्जाम क्वालीफाई किया। नौकरी ज्वॉइन कर ली लेकिन पढ़ाई जारी रखी। यूपीपीसीएस-2008 में दोनो ने साथ ही इंटरव्यू तक का सफर पूरा किया। लेकिन संयोग से दोनों की असफल हो गए। अब दोनो ने फिर एक साथ पीएससी-2009 में सेलेक्शन लिया है। बरकरार रखा सम्मान


इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने वाली गल्र्स टॉपर अर्चना ने डिप्टी कलेक्टर के लिए चयनित होकर प्रयाग का सम्मान बनाए रखा है। इस खुशी में उनका साथ दिया है उनके पति अखिलेश द्विवेदी ने। वे अर्चना के साथ ही असिस्टेंट कमिश्नर ट्रेड टैक्स के लिए सेलेक्ट हुए हैं। बता दें कि अर्चना लोअर सबार्डिनेट के थ्रू सेलेक्ट होकर डिस्ट्रिक्ट के राजकीय महिला शरणालय में केस वर्कर की पोस्ट पर तैनात हैं। जबकि उनके पति अखिलेश प्रतापगढ़ में ऑडिटर हैं। बड़ों का आशीर्वाद है जरूरीगल्र्स टॉपर अर्चना ने अपनी सफलता में बड़ों के आशीर्वाद की भूमिका महत्वपूर्ण माना है। उनका कहना है कि कड़ी और इमानदार मेहनत के बाद सफलता तभी मिलेगी, जब बड़ों का आशीर्वाद साथ होगा। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय अपनी सास को दिया है। उनका कहना है कि सास ने बेटी की तरह उन्हें समझा और उत्साह बढ़ाया। वह पढऩे का पूरा मौका उपलब्ध कराती थीं। अर्चना ने सफलता के लिए अपने भाइयों नवनीत द्विवेदी और अमित द्विवेदी के सहयोग को बेहतरीन बताया है।

Posted By: Inextlive