2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसायटी का नरसंहार ना होता अगर पुलिस समय रहते एक्शन ले लेती ये जानकारी इस मामले की स्पेशल कोर्ट में हुई सुनवाई में सामने आयी.


साल 2002 में हुए गुजरात दंगे के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला करने वाली उग्र भीड़ को रोकने में टॉप पुलिस अधिकारियों ने जानबूझकर देर की थी. इा हमले में अल्पसंख्यक समुदाय के 69 लोग मारे गए थे. बृहस्पतिवार को यह बात अहमदाबाद की एक विशेष अदालत को बताई गई.  अदालत को बताया गया कि तत्कालीन पुलिस आयुक्त पीसी पांडेय, पूर्व संयुक्त पुलिस आयुक्त एमके टंडन, पूर्व सहायक पुलिस आयुक्त पीबी गोंडिया और तत्कालीन सहायक पुलिस आयुक्त एसएस चूड़ास्मा ने, 28 फरवरी 2002 को जिस दिन की यह घटना है, उस दिन भीड़ को रोकने के लिए पर्याप्त कार्रवाई नहीं की. उस हमले में बचे लोगों का पक्ष रख रहे वकील एसएम बोरा ने विशेष अदालत के जज पीबी देसाई के समक्ष यह बात कही.
कर्तव्य पालन में लापरवाही के लिए पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की मांग कर रहे बोरा ने अपनी दलील में पूरी घटना का ब्योरा भी दिया. फोन कॉल के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पांडेय सुबह 11 बजे से शाम छह बजे तक अपने दफ्तर में थे जबकि यह घटना दोपहर बाद तीन से पांच बजे के बीच की है. उन्होंने बताया कि पाण्डेय को फोन पर इंटैलिजेंस ब्यूरो ने उस इलाके पास भीड़ के इकठ्ठा होने की जानकारी दे दी थी लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने ऑफिस से निकल कर सिचुएशन को कंट्रोल करने के लिए जाने की जहमत नहीं उठायी.  जबकि गोंडिया ने कंट्रोल रूम को हथियारों के बारे में फाल्स मैसेज पास किया.

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Posted By: Molly Seth