ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य को लेकर विवाद को हाई कोर्ट में दी गई थी चुनौती

निचली अदालत ने स्वामी वासुदेवानंद को नहीं माना था योग्य, हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी

देश की चार धर्मपीठों में से अहम ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम का वैध शंकराचार्य कौन होगा? इस विवाद को लेकर हाई कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई मंगलवार को पूरी हो गई। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस सुधीर अग्रवाल व न्यायमूर्ति केजे ठाकर की खंडपीठ ने स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की अपील पर सुनवाई की।

लोअर कोर्ट ने नहीं माना था योग्य

स्वामी वासुदेवानंद ने अपील दायर कर लोवर कोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके द्वारा उन्हें शंकराचार्य पद के अयोग्य मानते हुए क्षत्र, चंवर व सिंहासन आदि को धारण करने पर भी रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट तथा बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वामी वासुदेवानंद को लोवर कोर्ट के आदेश के खिलाफ अंतरिम आदेश देने पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य विवाद को तय करने के लिए हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने दिन-प्रतिदिन इस केस की सुनवाई की। अपील पर बहस करते हुए स्वामी वासुदेवानंद के वकील मनीष गोयल ने कहा कि वासुदेवानंद ही वैध शंकराचार्य हैं। इनकी नियुक्ति मनीषियों द्वारा की गई। यह ब्राह्माण हैं और दंडी स्वामी हैं तथा शंकराचार्य पद की सभी योग्यता रखते हैं। इस कारण गुरु शिष्य परंपरा से योग्य शिष्य होने के नाते उन्हें शंकराचार्य पद पर स्थापित किया गया। कहा यह भी गया कि आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित पुस्तक मठाम्यनाय महानुशासनम् के अनुसार वर्णित सभी योग्यताएं वह धारण करते हैं।

संन्यासी टीचर कैसे हो सकता है

अपील के खिलाफ शंकराचार्य स्वरूपानंद की तरफ से उनके अधिवक्ता शशिनंदन व अनूप त्रिवेदी का तर्क था कि शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित पुस्तक महाम्नाय महानुशासनम् के अनुसार स्वामी वासुदेवानंद शंकराचार्य पद की योग्यता नहीं रखते। इस पुस्तक के अनुसार शंकराचार्य पद के लिए शर्त है कि वही शंकराचार्य पद पर पदास्थापित हो सकता है जो ब्राह्माण हो तथा ब्रह्माचारी हो। वासुदेवानंद की अयोग्यता को बताते हुए कहा गया कि वह चर्मरोगी हैं। उनकी इस पद पर स्थापना मनीषियों ने कभी नहीं की। कहा गया कि वासुदेवानंद संन्यासी बनने के बाद भी टीचर के रूप में काम करते रहे तथा बकायदा वेतन भी आहरित किया। इस पर कोर्ट की टिप्पणी थी कि एक संन्यासी टीचर कैसे हो सकता है और अगर ऐसा था तो वह शंकराचार्य कैसे बन सकते थे। इस पर वासुदेवानंद के वकील ने कोई जवाब नहीं दिया। बहरहाल, कोर्ट ने वकील की लम्बी बहस सुनने के बाद इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित कर लिया।

Posted By: Inextlive