नेपाल में कल शनिवार को आए 7.9 तीव्रता वाले इस भूकंप में एक ही पल में बहुत कुछ समेट दिया. कुछ पलों में इस भारी तबाही में नेपाल का पूरा सीन बदल कर रख दिया है. इस भूकंप में जान माल के साथ ही यहां की कई वो इमारतें धराशाई हो गई जो कभी यहां की ऐतिहासिक धरोहरें हुआ करती थी. इनमें से ही एक काठमांडू स्थित यहां का धराहरा टॉवर था जो नेपाल का कुतुब मीनार भी कहा जाता था. यह टॉवर देखने में जितना खूबसूरत था इसके पीछे की कहानी भी उतनी ही रोचक बताई जाती थी. कहा जाता है कि इस टॉवर पर इसके पहले भी दो बार कुदरत का कहर पड़ चुका था. आइए जाने इस 200 साल पुराने नेस्‍तनाबूत हुए ऐतिहासिक टॉवर के बारे में कुछ खास बातें...


प्यार और उपहार की कहानीकभी नेपाल की सबसे ऊंची इमारतों में मशहूर धराहरा टॉवर का निर्माण वहां के पहले प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने बनवाया था. इस धराहरा टॉवर के पीछे एक पिता और पुत्री के प्यार और उपहार की कहानी भी बताई जाती है. कहा जाता है कि  सन् 1824 में प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने इसका निर्माण अपनी बेटी को बतौर तोहफे में देने के लिए कराया था. वह अपनी बेटी को बहुत ज्यादा चाहते थे वह चाहते थे कि उनकी बेटी इस टॉवर से पूरे काठमांडू की खूबसूरती का दीदार कर सके. वहीं पिता से उपहार में मिले इस 11 मंजिजा टॉवर पर उनकी बेटी रोजाना चढ़कर चारों ओर निहारती थीं.भगवान शंकर की एक मूर्ति भी
इस नौ मंजिला धराहरा टॉवर की दीवारें सफेद रंगी की थी. यह टॉवर देखने में काफी खूबसूरत था, शायद इसी लिए इसके देखने के लिए यहां पर सिर्फ नेपाल ही नहीं दूसरे देशों से लोग आते थे. इसके साथ ही यहां लोकल विजिटर भी हर दिन भारी सख्ंया में आते थे. इस टॉवर में लगभग 200 सीढियां थी जो काफी घुमावदार रहीं. प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने इस टॉवर के सबसे शीर्ष पर भगवान शंकर की एक मूर्ति भी स्थापित कराई थी. कहा जाता है कि प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने शीर्ष पर शिवलिंग की स्थापना इस लिए कराई थी ताकि उनकी बेटी को गुमान न हो कि वह सबसे ऊपर है. उसे अहसास हो कि वह भगवान से नीचे है. यहां पर तुरही बजाई जाती थीकाठमांडू स्िथत धराहरा टॉवर के बारे में बताया जाता है कि इस टॉवर का उपयोग आपात कालीन स्िथतियों में बहुत ही ढंग से किया जाता रहा. जब भी वहां के शासन व प्रशासन को किसी खतरे या बड़े मौकों पर लोगों की जरूरत होती थी. उस समय इन टॉवरो की बालकनी का इस्तेमाल करते थे. एक साथ बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा करने के लिए यहां पर तुरही बजाई जाती थी. इन टावरों की बालकॉनी से तुरही बजाने से सेना भी जल्द से जल्द एक जगह जमा हो जाती थी.दोबारा जीवित करने का प्रयास


धराहरा टॉवर पर 1834 में भी एक बड़े भूंकप की मार पड़ी. इसके बाद 1993 में यहां पर भारी भूकंप आया था. इस दौरान इस टॉवर की 7 मंजिल ढहने की बात सामने आयी थी. उसके बाद वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नेपाल की इस शान को दोबारा जीवित करने का प्रयास किया था. उन्होंने करीब करीब इसके ऊपर 5 मंजिल का निर्माण कराकर फिर इसे 9 मजिंल का तैयार कराया था, लेकिन इस बार आए इस बड़े भूकंप ने इसको पूरी तरह तबाह कर दिया. इतना ही नहीं इसके नीचे काफी संख्या में लोग भी मारे गए.

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Posted By: Satyendra Kumar Singh