नाल जो करती है घोड़े की किस्मत ख़राब?
बार-बार नाल निकालने और लगाने की वजह से घोड़ों के सुम में घाव हो जाते हैं और कभी-कभी वो लंगड़े तक हो जाते हैं.काले घोड़ों की तलाश में हम राजधानी दिल्ली के पूर्वी इलाक़े गौतमपुरी पहुंचे, जहां एक तबेले में हमें एक साथ दसियों काले घोड़े दिखाई दिए. यहां हमारी मुलाकात हुई काले घोड़े के मालिक बड़ा से, जो अपने घोड़े पर पुणे के आगे सतारा तक हो आए हैं.वे बताते हैं कि एक दिन में वे चार नाल तक बेच देते हैं. नाल खरीदने वाले ‘500 भी दे देता है, 50 भी दे देता है. 100 भी दे देता है. हम चार नाल जेब में रखते हैं. चार नाल बिक जाती हैं, तो नई लगा देते हैं. ग्राहक को तो पैर के सामने ही निकालकर देंगे. जब ग्राहक चला जाएगा तो हम चार नाल ठोकेंगे और सीधे अपने घर आ जाएंगे. फिर दोबारा ले जाएंगे.’
‘आज के टाइम में आदमी सोचता है, हाथ-पैर न हिलाऊं, बस घर बैठे पैसा आ जाए. ये सब मनघड़ंत बातें हैं. आदमी सोचता है नाल लेने से मैं अमीर हो जाऊंगा, मुझे मौत नहीं आएगी या मैं लखपति हो जाऊंगा. नाल से कुछ नहीं होता. आदमी की सोच होती है.’नाल के सौदागरभारत में कई शॉपिंग पोर्टल घोड़े की नाल बेच रहे हैं. ई-बे पर काले घोड़े की नाल का यंत्र 600 रुपए तक उपलब्ध है तो अमेज़न पर आप इसे 5 से 17 डॉलर (यानी क़रीब सवा 300 से एक हज़ार रुपए) तक में ख़रीद सकते हैं. कुछ ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टलों पर डर्बी घोड़े की नाल 9500 रुपए और काले घोड़े की 2100 रुपए तक में बेची जा रही हैं.सीलमपुर के रहने वाले मोइनुद्दीन के पूर्वज घोड़ों का काम करते थे. अब वो यह काम छोड़ चुके हैं.मोइनुद्दीन के मुताबिक़ ‘कोई न कोई चाहने वाला मिल जाता है और इन्हें रोक कर मांगता है. 50 का 100 का, 10-20 का. ये लोग खुद बोली नहीं लगाते कि नाल ले लो, नाल ले लो. ऐसा नहीं करते. कमी बस यही है बार-बार नाल उखड़ने लगाने से फर्क तो पड़ता है पैर पर, लेकिन ये उसका ध्यान भी रखते हैं.’पैरों में घाव
असल में जब दिल्ली में बग्घियां और तांगे बंद हुए तो घोड़ेवालों ने अपने घोड़े शादी-ब्याह में लगाने शुरू कर दिए. पर यह काम पूरे साल नहीं चलता.
‘अगर नाल को किसी एडहेसिव मैटीरियल से पैर के साथ में फिक्स किया जाए और उस नाल को इस्तेमाल करने के बाद उसे बेचा जाए और फिर रीफिक्सिंग की जाए तो शायद उससे घोड़े को बार-बार नाल लगाने-निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.’द ब्रूक अपने सुझाव को किस हद तक लागू करा पाती है, यह भविष्य की बात है, पर यह सच है कि सौभाग्य की प्रतीक नाल घोड़ों के लिए दुर्भाग्यशाली साबित हो रही है.द ब्रूक इंडियाब्रूक एक अंतर्राष्ट्रीय इक्वाइन वैल्फेयर ऑर्गनाइजेशन है जिसकी भारत में शुरुआत दिसंबर 1999 में हुई. ब्रिटिश सेना के जनरल ब्रूक जब पहले विश्वयुद्ध के बाद काहिरा गए जहां उन्होंने लड़ाई के घोड़ों की बुरी हालत देखकर उनके लिए कुछ करने की कोशिश की. द ब्रूक की 1934 में पड़ी और आज वह 16 देशों में है. शुरू में द ब्रूक के भारतीय चैप्टर ने भारत में अस्पताल खोले. मगर अब संस्था मोबाइल एंबुलेंस के ज़रिए देश के आठ राज्यों में क़रीब दो लाख घोड़ों-गधों-खच्चरों को मुफ़्त इलाज मुहैया कराती है.