यूपी की जेलों में इस वक्त 99000 बंदी हैं जिनमें से 356 बंदी एचआईवी पॉजिटिव हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नोटिस पर प्रमुख सचिव गृह ने जवाब दिया है। उनका कहना है कि इन रोगी बंदियों का न सिर्फ प्रॉपर इलाज किया जा रहा है बल्कि इनके रिहा होने के बाद भी इलाज को लेकर इनकी मॉनीटरिंग की जाती है। सात बिंदुओं के इस जवाब में शासन द्वारा की जाने वाली तमाम कवायदों का जिक्र किया गया है।


सभी का मेडिकल चेकअप प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने बताया कि प्रदेश की जेलों में एचआईवी पॉजिटिव मरीजों की हालत गंभीर होने की बात तथ्यों से परे हैं। उन्होंने बताया कि जेल मैनुअल व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के मुताबिक, जेल में निरुद्ध होने वाले सभी बंदियों का जेल में दाखिल होते ही मेडिकल चेकअप कराया जाता है। अगर किसी भी बंदी में एचआईवी के लक्षण पाए जाते हैं तो जिला अस्पताल या एआरटी सेंटर पर करायी जाती है। एचआईवी पॉजिटिव होने पर उनका स्पेशलिस्ट की सलाह के मुताबिक एआरटी सेंटर के जरिए समुचित उपचार कराया जाता है।   

चल रहा इलाज
कहा कि, वर्तमान में प्रदेश भर की जेलों में 99 हजार बंदी निरुद्ध हैं। चेकअप के बाद इनमें से 356 बंदी एचआईवी पॉजिटिव पाये गए। जिनका इलाज संबंधित जिलों के मेडिकल कॉलेजों व जनपदीय एआरटी सेंटर्स में किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि एड्स रोगियों के समुचित चेकअप के लिये कारागार प्रशासन ने उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी के साथ 'प्रिजन एचआईवी इंटरवेंशन कार्यक्रम के तहत चिन्हित जिलों के जेलों में कार्यरत चिकित्साधिकारियों व पैरामेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित व बंदियों के उपचार के लिये जागरुक करने के लिये बीती 15 से 18 जनवरी को प्रशिक्षित कराया गया। जिनमें 45 जिलों के 64 चिकित्साधिकारियों व पैरामेडिकल स्टाफ द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। अब महिला हेल्पलाइन 181 में सिर्फ महिलाओं की होगी भर्ती, इस उम्र तक की कर सकती हैं अप्लाईरिहा होने पर भी इलाज जवाब में बताया गया कि जेल में बंद रहने के दौरान तो ऐसे बंदियों का इलाज किया ही जाता है, रिहा होने पर भी उनके इलाज की व्यवस्था पूर्व में चल रही एआरटी सेंटर में बनाये गए कार्ड के जरिए चलती रहती है। ऐसे बंदियों की रिहाई के बाद मॉनीटरिंग भी की जाती है।  मेडिकल कॉलेज में मरीज के कटे पैर को बना दिया तकिया, तस्वीर वायरल होते ही डॉक्टर व नर्स हुए निलंबित

Posted By: Vandana Sharma