जब मदुरै की अनुशया ने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक नई तस्वीर पोस्ट की तो उसे थोड़े से ही वक्त में सौ से ज्यादा लाइक मिल गए.


आत्मविश्वास से भरी अनुशया सलवार कुर्ते में बेहद खूबसूरत लग रही थीं. लंबी ज़ुल्फों के साथ मॉडल सरीखे लुक में वो सहज दिख रही थीं.और जब तक आपको ये बताया न जाए, तब तक आप जान नहीं पाएंगे कि अनुशया एक ट्रांसजेंडर हैं.लेकिन इन दिनों वे अपने लुक्स के अलावा कुछ और वजहों से चर्चा में हैं. वह तमिलनाडु की पहली और शायद भारत की भी सबसे पहली ट्रांसजेंडर हैं जो होमगार्ड्स (गृह रक्षा वाहिनी) में भर्ती होने जा रही हैं.गुनाह नहीं जिंदगी


वह कहती हैं, "जब कोई चोरी या कत्ल भी करता है तो घर वाले उसे क़ुबूल कर लेते हैं लेकिन वे हम जैसों को घर परिवार के हिस्से के तौर पर स्वीकार करने में शर्माते हैं. पुलिस महकमे की पहल पर होमगार्ड्स में भर्ती हो रही है. ये उन परिवारों के लिए एक बड़ा कदम है जिन्हें लगता है कि हाँ उन्हें भी अपनाया जा सकता है."तमिलनाड के मदुरै शहर में अनुशया के अलावा पाँच और ट्रांसजेंडर हैं जिन्हें सोमवार को अपने आवेदन फॉर्म जमा करने हैं. ये हैं बृंदा, अलफोंसा, निरोशा, शांतिनी और सौदामिनी. इन सबकी उम्र 20 से 35 साल के बीच है.

सरकार की तरफ से हुई इस पहल से तमिलनाडु के क्लिक करें ट्रांसजेंडर समुदाय में उत्साह का माहौल है.एसपी से की थी गुजारिश"जब कोई चोरी या कत्ल भी करता है तो घर वाले उसे क़ुबूल कर लेते हैं लेकिन वे हम जैसों को घर परिवार के हिस्से के तौर पर स्वीकार करने में शर्माते हैं. "-अनुशया, ट्रांसजेंडरकोयम्बटूर की शिल्पा भी एक ट्रांसजेंडर हैं. चार साल पहले उन्होंने होमगार्ड्स में भर्ती होने की कोशिश की थी.वह कहती हैं, "मुझे पता नहीं कि किस वजह से मुझे स्वीकार नहीं किया गया था लेकिन मुझे खुशी है कि अब ऐसा हो रहा है. ऐसे वक्त में जब कि हमारे जैसी यौन पहचान वाले अल्पसंख्यक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद निराश थे, इस ख़बर से हमारा भरोसा बढ़ा है."भारती कनम्मा मदुरै में एक ट्रस्ट चलाती हैं. भारती कनम्मा ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को होमगार्ड्स में भर्ती करने के लिए की गई पुलिस की पहल को इसका श्रेय देती हैं.

वह कहती हैं, "मैंने एसपी से हमें एक मौका देने के लिए गुजारिश की थी. थोड़े समय के बाद एक दिन उन्होंने मुझसे कुछ ऐसे नाम सुझाने के लिए कहा जिन्होंने 10वीं या 12वीं तक की पढ़ाई कर रखी हो और जिन्हें होमगार्ड्स में भर्ती किया जा सके. हम भी उनकी इस पेशकश से हैरत में थे."बदलावयही नहीं लिंग के कॉलम में 'अन्य' का दर्जा देकर इनके लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे खोल दिए हैं.हालांकि, इन सरकारी योजनाओं के बावजूद सामाजिक स्वीकार्यता की एक अलग कहानी है.परिवार, नियोक्ता और समाज की नज़र में स्वीकार्यता पाने के लिए इन्हें लगातार संघर्ष करना पड़ता है.अपनों से उम्मीदहोमगार्ड्स में भर्ती की उम्मीद बांधे 20 वर्षीय बृंदा को लगता है कि इस अवसर के मिलने के बाद परिवार के लिए वह स्वीकार्य हो जाएंगी.''जब भी परिवार में शादी या कोई अन्य कार्यक्रम होता है तो वे पूछते हैं कि मैं क्यों आई? इसलिए हमने वहां जाना छोड़ दिया. मैं उम्मीद करती हूं कि सरकारी नौकरी पाने के बाद वे मुझे स्वीकार कर सकते हैं.''हालांकि एसपी बालाकृष्णन के अनुसार पुलिस बल में उनकी स्वीकार्यता एक और चुनौती है.''पुलिस टीम में शामिल करने से पहले पुलिसकर्मियों को इस मुद्दे पर संवेदनशील बनाना होगा और इस बारे में उन्हें बताना होगा.''असंभव नहीं
उनका कहना है कि, ''तुरंत स्वीकार्यता मुश्किल है लेकिन समय के साथ यह संभव हो जाएगा. मैं आश्वस्त हूं कि वे अन्य ट्रांसजेंडर के लिए आदर्श होंगी और उन्हें भी पुलिस बल में शामिल होने के लिए प्रेरित करेंगी.''चेन्नई और मदुरै में काम कर चुके एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विजयरमन कहना है कि, ''इसका मतलब है समान अवसर, नौकरी के मौके और सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक स्वीकार्यता. जो समूह सबसे संवेदनशील माना जाता है वह अब रक्षक की भूमिका में होगा.''जो एनजीओ में काम करते हैं उन्हें लगता है कि इस अनोखी पहल से पैदा हुई स्वीकार्यता उनमें न्याय के प्रति भरोसा पैदा करेगी.ट्रांसजेंडर समूह की कोशिशों और सजग राज्य की पहल ने तमिलनाडु के ट्रांसजेंडर्स में एक नई उम्मीद को जगाया है.

Posted By: Subhesh Sharma