बोली जनता, पांच साल तक क्यों नहीं आई पिछड़ों की याद

सीएम अखिलेश पर विकास की राजनीति से भटकने का आरोप

ALLAHABAD: चुनावी महासमर से पहले सौगातों की झड़ी लगी हुई है। सभी राजनीतिक दल आए दिन नई घोषणाएं करने में लगे हैं, ऐसे में उप्र की समाजवादी पार्टी की सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देकर नई बहस को जन्म दे दिया है। उनके इस फैसले पर दूसरे दलों ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। आई नेक्स्ट ने इसी मुद्दे को लेकर शुक्रवार को डिबेट का आयोजन किया। इसमें लोगों ने खुलकर अपनी राय रखी।

अधिकार क्षेत्र से बाहर है फैसला

लीडर रोड स्थित इलाहाबाद ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन के कार्यालय में हुई डिबेट में शामिल लोगों ने कहा कि पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों का दर्जा देना प्रदेश सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। यह केवल चुनावी चोचला है। इस पर अंतिम मुहर केंद्र सरकार को लगानी है। इससे पहले वर्ष 2005 में मुलायम सिंह ने भी पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा दिया था, जिसे केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया था। बसपा की सरकार ने भी ऐसा ही दांव खेला था। राजनीतिक दल चुनाव से ठीक पहले ऐसे वादे कर जनता को बरगलाते हैं।

धूमिल होगी सीएम की छवि

बहस में शामिल वक्ताओं का कहना था कि इस फैसले से प्रदेश के प्रतिभावान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि धूमिल होगी। पिछले पांच सालों में उन्होंने केवल विकासपरक राजनीति की बात कही और चुनाव से ठीक पहले उन्होंने यह फैसला लेकर एक बार फिर यूपी के चुनाव को जातिगत रंग देने की कोशिश की है। लेकिन इस फैसले से कोई लाभ नहीं होने वाला है। कोर्ट ने भी अपनी टिप्पणी में आरक्षण को सामाजिक भेदभाव पैदा करने वाला बताया है। आरक्षण से जुड़े राजस्थान सरकार के एक फैसले को हाईकोर्ट ने इसी के चलते पूर्व में निरस्त भी किया है।

आर्थिक आधार पर दें आरक्षण

डिबेट में शामिल लोगों ने जाति के बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत की। वक्ताओं का कहना था कि वर्ष 1985 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद महज 25 साल के लि आरक्षण लागू किया गया था, जिसे 2010 में खत्म कर देना चाहिए था। राजनीतिक दल और सरकार कमजोर तबके को आरक्षण की पहल करें। एक आम आदमी की जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान है। सस्ती दरों पर यह सुविधाएं मुहैया कराकर कमजोर और असहाय वर्ग को बराबरी का दर्जा दिया जा सकता है। आरक्षण के जरिए आपसी मनमुटाव और द्वेष ही पैदा होगा। सुप्रीमकोर्ट के आदेश के मुताबिक पचास फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता, जिसका ध्यान सरकार को देना होगा। सपा सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों के दस फीसदी वोट को ध्यान में रख यह फैसला लिया है।

पब्लिक की जुबानी

बैकवर्ड को अनुसूचित जाति में शामिल करेंगे तो इससे पैदा हुए बैकलॉग को पूरा कैसे करेंगे। सरकार पहले इस पक्ष को डिफाइन करे। कहीं इस फैसले से दूसरी जातियों में असंतोष की भावना पैदा हो जाए।

अनिल दुबे

चुनाव सिर पर आते ही रोज नई घोषणाएं हो रही है। प्रदेश सरकार को पिछले पांच साल में इस फैसले का ध्यान क्यों नही आया। यह निर्णय दस फीसदी वोटर्स को ध्यान में रखकर लिया गया है। जनता सब समझती है।

परमजीत सिंह

सीएम ने कहा था कि वह विकास के नाम पर वोट मांगेंगे, लेकिन चुनाव से ठीक पहले इसे जातिगत रंग दिया जाने लगा है। इससे सीएम की छवि धूमिल हो सकती है। सरकार के पांच साल के कार्य ही उनकी पहचान है।

विजयकांत शर्मा

केवल सपा ही नहीं केंद्र सरकार भी आए दिन घोषणाएं कर रही है। यह केवल चुनावी वादे हैं। लेकिन यह हथकंडा काम सपा सरकार के काम नहीं आएगा। जनता सब जानती है, वोट काम के आधार पर मिलेगा।

रोहित सिंह

आरक्षण की व्यवस्था आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए होनी चाहिए। मजबूत स्थिति वाले पिछड़े भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं जबकि जो वर्ग वाकई इस सुविधा का हकदार है, उसे लाभ नही मिल रहा है।

अचल अग्रवाल

केंद्र सरकार, पूर्व की राज्य सरकार के इस फैसले को पहले भी ठुकरा चुकी है। कोर्ट का हस्तक्षेप भी ऐसे मामलों में बना रहता है। इसलिए चुनाव के ठीक पहले सरकारों को ऐसे वादों से बचना चाहिए।

राजकुमार गांधी

जिन अति पिछड़ों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया है, इसके अलावा बाकी जातियां भी अब सरकार से ऐसी सौगात की मांग उठा सकती हैं। आने वाली सरकार को मजबूरन इन लोगों को भी एससी का दर्जा देना पड़ेगा।

नवीन सोंधी

Posted By: Inextlive