आधा गिलास पानी दिखाकर अकसर यह सवाल पूछा जाता है कि गिलास आधा भरा है या आधा खाली? यदि आपने कहा 'गिलास आधा भरा है' तो आपका इंप्रेशन आशावादी और सकारात्‍मक पड़ेगा. और यदि आपका जवाब 'गिलास आधा खाली है' तो सब गुड़गोबर. नकारात्‍मक और निराशावादी समझ कर आपकी उम्‍मीदवारी कैंसिल. क्‍लास में यही सवाल एक बच्‍चे से पूछा गया तो उसने आधे गिलास पानी का एक नया ही दर्शन समझा दिया. आशा-निराशा और सकारात्‍मक-नकारात्‍मक से अलहदा उसने ठहरे हुए आधे गिलास पानी में मोमेंटम बिल्‍ड कर दिया.


गिलास आधा भरा है या आधा खाली?क्लास में टीचर ने एक बच्चे ने पानी मंगाया. आधा पीने के बाद टेबल पर रखा और बच्चों से पूछा गिलास आधा भरा है या आधा खाली? कुछ बच्चों ने कहा, 'आधा खाली' तो कुछ ने कहा, 'आधा भरा'. टीचर ने देखा एक बच्चा खिड़की से बाहर देख रहा था. उसकी ओर चाक का एक टुकड़ा फेंकते हुए टीचर ने पूछा, 'तुम्हारा ध्यान कहां है? मैं यहां मैनेजमेंट पढ़ा रहा हूं और तुम बाहर क्या देख रहे हो?' बच्चे ने खिड़की की ओर ही देखते हुए कहा, 'क्या सर! आप भी वही बोरिंग आधे गिलास पानी में अटके हुए हैं. ये देखिए लाईव मैनेजमेंट.'बिल्ली और चिडि़यों का लाईव मैनेजमेंट
सारे बच्चे भागकर उस खिड़की के पास पहुंच गए. बाहर देखा कि एक चिडि़या और एक चिरौटा नन्हें से बच्चे को अपनी चोंच में दबा कर पेड़ के घोंसले में ले जाने की कोशिश में लगे थे. बाकी ढेर सारे पक्षी चिल्ला-चिल्ला कर एक बिल्ली को दूर भगाए हुए थे. तीन-चार प्रयासों के बाद बिना पंखों वाला लाल नन्हा बच्चा अपने घोंसले में पहुंच गया. सारा माहौल शांत हो गया. टीचर ने बच्चों को अपनी-अपनी सीट पर जाने को कहा और उस बच्चे को आधे भरे गिलास वाली बात एक्सप्लेन करने के लिए ईशारा किया.आधा खाली गिलास कैसे भरा जाए?बच्चे ने कहा, 'सर! गिलास आधा भरा है या आधा खाली. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. गिलास तो पूरा भरा ही था आपने पीकर आधा खाली किया था और इससे पहले भी जाएं तो पूरा खाली था. अब मैं यह कह दूं कि आधा भरा है तो आप मुझे आशावादी समझ लेंगे. आधा खाली बोला तो आप मुझे निराशावादी समझेंगे. दरअसल सवाल आधा भरे होने या खाली होने का नहीं बल्कि उससे आगे का है कि गिलास तो खाली होते रहेंगे भरेंगे कैसे?' टेबल पर रखे गिलास को उठाते हुए बच्चे ने कहा, 'मैं ये सोच रहा हूं कि यह आधा खाली गिलास कैसे भरा जाए?' इतना कहने के बाद उसने जग से उस गिलास को भर दिया.ऐसा पढ़ाएं कि काम मिले डिग्री नहीं


आज बच्चा रुकने के मूड में नहीं था. उसने कहा, 'आप हमें किताबों से बोरिंग ढंग से समझाते रहते हैं. ध्यान देने के लिए बार-बार डांटते रहते हैं. अब उस बिल्ली और चिडि़यों को ही ले लीजिए, चिडि़यों ने घोंसले में बच्चे को पहुंचाने के लिए गजब का मैनेजमेंट किया. आपने देखा ही. सब बच्चों ने चुपचाप ध्यान लगाकर बिल्ली और चिडि़यों का खेल देखा. उनका मैनेजमेंट भी समझ लिया. बिल्ली और चिडि़यों की सक्रियता देखी. यानी अब सक्रिय मैनेजमेंट की जरूरत है ताकी काम मिले ना कि डिग्री. हमें बोरिंग क्लास से बाहर निकाल कर सक्रिय काम की जगह ले जाकर समझाइए.'

Posted By: Satyendra Kumar Singh