हर सरकार को करंट लगाता है यह आयोग
रांची (ब्यूरो)। 2003 में जब पहली बार जेपीएससी ने सिविल सेवा की परीक्षा ली तब झारखंड में भाजपा की सरकार थी और बाबूलाल मरांडी सीएम थे। इसी साल से जेपीएससी की परीक्षाओं पर विवाद होना शुरू हो गया। अगली परीक्षा में 2005 में ली गई। उस वक्त भी भाजपा का ही शासन था, लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा बदल कर अर्जुन मुंडा कुर्सी पर बैठ चुके थे। पहली जेपीएससी के विवाद के बीच दूसरी जेपीएससी परीक्षा भी विवादों के घेरे में आ गई। पहले का निबटारा हुआ नहीं और दूसरे में भी गड़बड़ी के आरोप लगने लगे। 21 साल में नौ सीएम
21 सालों में झारखंड में नौ मुख्यमंत्री बदले। बाबूलाल मरांडी के बाद अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा, मधु कोडा, शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा, हेमंत सोरेन, रघुवर दास और वर्तमान में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं। लेकिन 21 सालों में किसी भी सरकार ने जेपीएससी के विवाद को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। इस मामले को मुद्दा बना कर अलग-अलग पार्टियों ने राजनीति जरूर की है। जिसमें पढऩे-लिखने वाले और काबिल बच्चों का भविष्य बनने के बजाय बिगड़ता गया। एक बार फिर इसे मुद्दा बनाकर राजनीति शुरू हो चुकी है। हेमंत सोरेन सरकार इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है तो विपक्ष इसपर अलग-अलग बयान जारी कर रहा है। स्टूडेंट्स का फ्यूचर खराबराज्य के होनहार स्टूडेंट्स आंखों में सपना लेकर दिन रात पढ़ाई करते हैं और सिविल सर्विसेस की तैयारी करते हैं। राज्य के अधिकारी बनकर ईमानदारी के साथ कर्तव्य निर्वहन करने का उनका सपना टूट जाता है। जेपीएससी सिविल सेवा की परीक्षाओं में असफल होने वाले अभ्यर्थी आंदोलन करते हंै। सड़क पर उतरते हैं, जांच और न्याय की मांग करते हैं। लेकिन हर बार सरकार और आयोग दोनों मौन धारण कर लेते हंै। अंत में मामला कोर्ट पहुंचता है लेकिन वहां भी तारीख दर तारीख बढ़ती जा रही है सभी मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं। जेपीएससी की परीक्षाओं में दो बार इंटरव्यू तक पहुंचने वाले मनोज यादव बताते हैं कि हर बार-बार जेपीएससी की परीक्षा पास करने के बावजूद करप्शन की भेंट चढ़ गया। मनोज यादव कहते हैं पढ़ाई-लिखाई में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद भी आज सड़क पर हूं। मेरे जैसे और भी स्टूडेंट्स हैं जिनका फ्यूचर जेपीएससी के करप्शन की भेंट चढ़ चुका है।