RANCHI: अरे फेसबुक पर मेरी इतनी गंदी फोटो और इतने भद्दे कमेंट्स. लेकिन ये फेसबुक अकाउंट तो मेरा है ही नहीं. अब क्या करूं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है. मम्मी-पापा देखेंगे तो क्या कहेंगे. फेसबुक पर अपने दोस्त के साथ चैटिंग करने गई 17 साल की खुशी बदला हुआ नाम ने जब फेसबुक खोला तो अपना फेक अकाउंट देखते ही उसके होश उड़ गए. फेसबुक पर अपना फेक एकाउंट देखकर माथा पीटनेवाली खुशी अकेली लड़की नहीं है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े भी बताते हैँ कि साइबर क्राइम की 64 परसेंट विक्टिम लड़कियां होती हैं.

10 में से 9 केसेज गर्ल्स के
झारखंड पुलिस के साइबर क्राइम सेल सीडीआरसी के चीफ टेक्निकल ऑफिसर विनीत कुमार ने बताया कि सीडीआरसी को साइबर क्राइम को डेली 5-6 कंप्लेन मिलती है। हमें मिलनेवाले 10 में से 9 केसेज में लड़कियां साइबर शॉकिंग का शिकार बनती हैं। साइबर शॉकिंग में लड़कियों का फेक प्रोफाइल बनाकर अपलोड कर दिया जाता है और उन्हें हैरेस किया जाता है। जिन लड़कियों का फेक प्रोफाइल बनता है, उनमें स्कूल और कॉलेज गोइंग गल्र्स का परसेंटेज ज्यादा होता है।

64 परसेंट विक्टिम हैँ गर्ल्स
साइबर क्राइम पर काम करनेवाली श्रद्धानंद रोड स्थित वोल्ट टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर राहुल कुमार गुप्ता ने बताया कि साइबर क्राइम के केसेज में 64 परसेंट विक्टिम गल्र्स होती हैँ, वहीं 36 परसेंट विक्टिम ब्वॉयज होते हैं। राहुल ने बताया कि साइबर क्राइम के 95 परसेंट मामले दर्ज ही नहीं किए जाते। ऐसे केसेज में केवल 5 परसेंट केस रिपोर्ट की जाती है। वहीं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साइबर क्राइम के 75 परसेंट केसेज ब्वॉयज अंजाम देते हैं, वहीं 25 परसेंट मामले गल्र्स अंजाम देती हैं।

पर्सनली न मिलने जाएं
राहुल ने बताया कि कई बार फेसबुक और अन्य नेटवर्किंग साइट्स पर चैटिंग कर रही गल्र्स ऑनलाइन चैटिंग के बाद अपने ब्वॉयफ्रेंड से मिलने पहुंच जाती है। लेकिन ऐसा करना खतरनाक है। लड़कियों को ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। अगर वे मिलने जाती भी हैं, तो उन्हें अपनी सहेली को लेकर जाना चाहिए और पैरेंट्स को बताना चाहिए।

बढ़ गए हैं केसेज
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के लेटेस्ट डाटा के अनुसार झारखंड में एक साल के अंदर आइटी केस में दर्ज किए गए मामलों में इजाफा हआ है। साल 2011 में झारखंड में आइटी एक्ट में साइबर क्राइम के आठ मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2012 में बढ़कर ये 10 हो गए। इसी अवधि में यहां आइपीसी सेक्शन के तहत दर्ज मामलों में भी इजाफा हुआ है। 2011 में जहां आइपीसी के तहत 25 मामले दर्ज हुए, वहीं 2012 में भी 25 मामले दर्ज हुए। आइटी एक्ट में दर्ज मामलों में परसेंटेज वेरिएशन देखे तो यह 25 फीसदी है।

आठ लोग हुए थे अरेस्ट
एनसीआरबी का डेटा बताता है कि साइबर क्राइम के ज्यादातर केस 18 से 30 एज ग्रुप के लोग अंजाम देते हैं। इसके अनुसार आइटी एक्ट में झारखंड से जिन आठ लोगों को अरेस्ट किया गया था, वे 18 से 30 एज ग्रुप के थे। 2012 में साइबर क्राइम के आइपीसी सेक्शन के तहत झारखंड से जिन तीन लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, उनमें से एक 18 से 30 साल के एज ग्रुप का और दो 30 से 45 एज ग्रुप के थे। 2012 में झारखंड में साइबर क्राइम के जितने भी केसेज दर्ज किए गए, उनमें 21 केसेज क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट और फ्रॉड के थे। वहीं चार मामले फार्जरी के थे।

Posted By: Inextlive