RANCHI:पढ़ेगा नहीं तो कैसे बढ़ेगा इंडिया झारखंड के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र -छात्राओं की स्थिति कुछ ऐसी ही बनी हुई है। किताबें मिली ही नहीं तो पढ़ें कैसे और जब पढ़ ही नहीं पाए तो परीक्षा कैसे लिखें और करियर की राह में आगे कैसे बढ़ें। राज्य के कई सरकारी स्कूलों में अब तक किताबें वितरित ही नहीं की गई हैं। बच्चे किताब को तरस रहे हैं, शिक्षकों और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को सैकड़ों बार आग्रह कर चुके हैं लेकिन इसके बावजूद किताबें वितरित नहीं की गई हैं। विभाग द्वारा फरवरी माह में परीक्षा की तिथि भी घोषित कर दी गई है अब बच्चे समझ नहीं पा रहे कि जब किताबें मिली ही नहीं तो परीक्षा कैसे दे पाएंगे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सत्र में भी मैट्रिक का रिजल्ट विशेष सफलता नहीं प्राप्त कर पाएगा।

50 लाख बच्चों पर असर

स्कूलों में बच्चों को मुफ्त किताबें दी जाती हैं। शैक्षणिक सत्र एक अप्रैल से शुरू हो चुके हैं। लेकिन साल बीत जाने के बाद भी लगभग 50 लाख बच्चों को अब तक किताबें नहीं मिली हैं। अधिकारियों के मुताबिक अभी बच्चों तक किताबें पहुंचने में और वक्त लगेगा।

नहीं पहुंचीं पूरी किताबें, कई विषयों का टोटा

पहली और दूसरी की गणित, 8वीं की गणित और विज्ञान की किताबें नहीं आई हैं। कुल 70 हजार 626 किताबें आई थीं। कक्षा 9वीं की हिंदी, 11वीं और 12वीं की गणित, रसायन शास्त्र भाग - 2, 11वीं की कॉमर्स संकाय की सांख्यिकी की किताबें निगम से नहीं मिल सकी हैं। 10वीं में परिवर्तित गणित की 360 किताब नहीं मिल पाई हैं। हाई और हायरसेकंडरी स्तर पर अब तक कुल 35 हजार 811 किताबें बांटी गईं।

1, 2 व 8वीं की गणित की पुस्तकें नहीं आईं

सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं तक 57 हजार पुस्तकें छात्रों को उपलब्ध करानी था लेकिन अभी तक पूरी पुस्तकें छात्रों को नहीं मिलीं। शिक्षा केंद्र को 53 हजार पुस्तकें मिली थीं। इनमें चार हजार किताबें अब तक नहीं मिल पाई हैं। पहली दूसरी और आठवीं कक्षा की गणित, अंग्रेजी और उर्दू मीडियम की किताबें भी नहीं आई हैं। उर्दू मीडियम की किताबें मदरसा में भेजनी थीं और अंग्रेजी मीडियम की पहली से सातवीं कक्षा की किताबें ब्लॉक मुख्यालय के अंग्रेजी माध्यम स्कूल के छात्रों को देनी थी।

किताबें बांटने पर भी कमिशन का खेल

प्रकाशकों द्वारा छापी गई किताबों को विभिन्न स्कूलों में वितरित करने के लिए भी कमिशन का खेल खेला जाता है। चर्चा तेज है कि उन्हीं स्कूलों तक किताबें पहुंचायी जाती हैं जहां से कमिशन मिलता है। किताबों के वितरण के लिए एजेंसियां प्रयासरत रहती हैं।

किताबें बेचने का भी गोरखधंधा

एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका ने नाम नहीं छापने के अनुरोध पर बताया कि बच्चों की पुरानी किताबें जमा कर उसे अगली कक्षा में प्रवेश करने वाले बच्चों के बीच बांट दी गईं है लेकिन कमियां फिर भी बरकरार हैं। ऐसा करने से अगले सत्र की किताबें बच जाती हैं जिसे बेचकर करोड़ों का गोरखधंधा होता है।

वर्जन

सरकार को कई बार आगाह किया गया है पर बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ होता रहा है। पहले के कई वषरें में भी यही हाल रहा है। यही वजह है कि झारखंड की बुनियादी शिक्षा पर आने वाली रिपोर्ट चिंताजनक होती है।

एके सिंह, राज्य संयोजक, शिक्षा का अधिकार फोरम

क्या कहते हैं शिक्षा परियोजना निदेशक

झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद के निदेशक उमाशंकर सिंह कहते हैं कि किताबों की छपाई प्रक्रिया पूरी करने में देर होने की वजह से दिक्कतें हुई हैं। उनके अनुसार सितंबर में किताबें छप कर आ जानी चाहिए थी लेकिन कुछ विलम्ब होने के कारण कई स्कूलों में किताबों का वितरण संभव नहीं हो पाया है।

Posted By: Inextlive