अरूणा शानबाग मामले में एक याचिका को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में दया मृत्‍यु को लीगल दर्जा तो दे दिया था लेकिन उन्‍हें दया मृत्‍यु की इजाजत नहीं दी थी। उस समय अरूणा शानबाग 38 सालों से मुंबई के एक अस्‍पताल में लाइफ सपोर्ट पर थीं।


पिंकी विरानी ने मांगी थी अरूणा के लिए दया मृत्युएक समाज सेविका और पत्रकार पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 38 सालों से कोमा में वेंटिलेटर पर जिंदा अरूणा शानबाग के लिए दया मृत्यु मांगी थी। अरूणा को अस्पताल के ही एक कर्मी ने दुष्कर्म के बाद चोट पहुंचाई थी। इस घटना ने उन्हें इतना जबरदस्त सदमा दिया कि वे कोमा में चली गईं। तभी से अस्पताल के कर्मचारी उनकी देखभाल कर रहे थे। उन्हें लाइफ सपोर्ट पर रखा गया था।सुप्रीम कोर्ट ने दया मृत्यु को दी कानूनी मान्यता


अरूणा शानबाग के दया मृत्यु वाली याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने 7 मार्च, 2011 को एक फैसला दिया। कोर्ट ने माना कि कुछ शर्तों के साथ पैसिव यूथेनेशिया द्वारा मरणासन्न मरीज को दया मृत्यु की इजाजत दी जा सकती है। शर्तों के मुताबिक या तो मरीज के मस्तिष्क की मौत यानी ब्रेन डेड हो चुका हो या फिर वह 'परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट' यानी उसका मस्तिष्क कोई प्रतिक्रिया न दे रहा हो बोले तो कोमा जैसी स्थिति। ऐसे मरीज को मेडिकल बोर्ड की सहमति के बाद दया मृत्यु पैसिव यूथेनेशिया द्वारा दी जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने दी इच्छा मृत्यु की वसीयत को मंजूरी, देश में पहले से ही लीगल है दया मृत्यु : जानें कौन कर सकता है अपीललेकिन अरूणा शानबाग को नहीं दी दया मृत्युहालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अरूणा शानबाग के लिए पत्रकार और समाजसेवी पिंकी विरानी की दया मृत्यु की याचिका ठुकरा दी थी। कोर्ट ने माना कि अरूणा शानबाग पैसिव यूथेनेशिया द्वारा दया मृत्यु की हकदार है लेकिन पिंकी उनकी कुछ नहीं लगती और वे उनकी तीमारदार भी नहीं हैं, इसलिए उनकी तरफ से यह मांग जायज नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अरूणा की तीमारदारी किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल स्टाफ पिछले 38 सालों से कर रहा है और वह चाहता है कि उन्हें इसी हालत में जीवित रखा जाए।

Posted By: Satyendra Kumar Singh